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पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, चीन की एक 6 वर्षीय बालिका से एक टीवी चैनल संवाददाता ने पूछा कि वह आगे चलकर क्या बनना चाहेगी तो उसने जवाब दिया कि मैं तो भ्रष्ट अधिकारी बनूंगी. हमें आश्चर्य है कि क्या बच्चे भी ऐसी बातें कह सकते हैं?

हमने कहा, ‘‘क्यों नहीं कह सकते? बच्चे भी तो समाज का हिस्सा हैं. वे जो भी देखते-समझते हैं, वह बात उनके कोमल मन-मस्तिष्क पर अंकित हो जाती है. उस बच्ची ने भ्रष्ट लोगों के घरों में ऐसी तमाम महंगी वस्तुएं देखी होंगी जो बच्चों को आकर्षित करती हैं. उसने कुछ ऐसे बच्चों को देखा होगा जो आलीशान घर में रहते होंगे, महंगी गाड़ियों में सैर करते होंगे और जिनके पास महंगे खिलौने होंगे. उन बच्चों के मुंह से कोई ख्वाहिश निकली तो माता-पिता तुरंत पूरी करते होंगे. ऐसे बच्चों के बारे में जब उस बालिका ने अपने अभिभावकों से कहा होगा तो उन्होंने बताया होगा कि वे किसी भ्रष्ट अधिकारी की संतान हैं इसलिए उनके पास सबकुछ है. बालिका ने तुरंत तय कर लिया कि वह बड़ी होकर भ्रष्ट अधिकारी बनेगी ताकि सबकुछ हासिल कर सके.’’

पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, यह बहुत गलत बात है. उसके माता-पिता को चाहिए था कि अपनी बच्ची को समझाते कि भ्रष्टाचार करना अपराध है. पकड़े जाने पर भ्रष्टाचारी को जेल की हवा खानी पड़ती है. ऊपर से बदनामी होती है सो अलग. बच्चों को शुरू से ही नैतिक मूल्यों की शिक्षा दी जाए तो वे बड़े होकर भ्रष्टाचार से दूर रहेंगे.’’

हमने कहा, ‘‘शायद आप सपनों की दुनिया में रहते हैं. सभी बच्चे स्कूलों में महापुरुषों, शहीदों और राष्ट्रभक्तों की जीवनी पढ़ते हैं लेकिन जब यही बच्चे बड़े होकर नेता या अफसर बनते हैं तो सब भूल जाते हैं. दौलत की चकाचौंध उन्हें सम्मोहित कर लेती है वे समझ जाते हैं कि आज धन से इज्जत मिलती है. संपन्नता सारे पापों पर पर्दा डाल देती है. नैतिकता, सादगी आदर्शों व जीवन मूल्यों की कोई कीमत नहीं रह गई है. सामाजिक मान्यता और प्रतिष्ठा के लिए पैसा जरूरी होता है फिर वह चाहे जहां से आए!’’

हमने कहा, ‘‘भष्ट्राचार विश्वव्यापी है. कहीं कम तो कहीं ज्यादा! बालिका को जो लगा, उसने बेखौफ कह दिया. आखिर बच्चे मन के सच्चे होते हैं. आप सदाचारी समाज की रचना करें तो ऐसा कोई नहीं कहेगा.’’