कभी बराबरी वाले नीतीश अब‍ BJP की गोद में

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यद्यपि नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने 7वीं बार बिहार के मुख्यमंत्री पद (Bihar CM) की शपथ ली है लेकिन जदयू के इस नेता में पहले जैसा उत्साह या जोश नहीं रह गया. 243 सदस्यीय विधानसभा में जदयू की सिर्फ 43 सीटें हैं जबकि बीजेपी की 76 सीटें हैं. नीतीश सीएम भले ही बन गए हैं लेकिन बीजेपी की गोद में रहना उनकी मजबूरी है. कहा जा सकता है कि यह बीजेपी की ही सरकार है और नीतीश सिर्फ मुखौटा बन कर रह गए हैं. तारकिशोर प्रसाद (Tarkishore Prasad) और रेणु देवी (Renu Devi) के रूप में 2 उपमुख्यमंत्री राज्य में विभिन्न वर्गों के बीच बीजेपी को मजबूत बनाने का काम करेंगे. मंत्रियों के महत्वपूर्ण विभाग भी बीजेपी के पास रहेंगे. नीतीश को केंद्र सरकार और बीजेपी नेतृत्व के निर्देशों का पालन करना होगा. उनके पास दूर-दूर तक कोई विकल्प बाकी नहीं रहा. उनकी पार्टी विधानसभा में तीसरे नंबर पर आ गई. यह भी एक अजूबा है कि अपनी पार्टी की इतनी कम सीटों के बावजूद बीजेपी की कृपा से नीतीश कुमार सीएम बन गए.

BJP ने कोई एहसान नहीं किया

बीजेपी नेतृत्व कह रहा है कि चुनाव के पहले ही तय था कि नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री बनेंगे. चुनाव उन्हीं के नेतृत्व में लड़ा गया था. 76 सीटें जीतने के बाद भी बीजेपी की बदकिस्मती है कि उसके पास मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी पार्टी का कोई लोकप्रिय चेहरा नहीं है. सुशील मोदी में उतना दम नहीं था. नीतीश को सामने रखना बीजेपी की विवशता है, लेकिन यह भी तय है कि बीजेपी के हाथ में रिमोट कंट्रोल रहेगा और नीतीश को उसके इशारों पर चलना होगा. अप्रत्यक्ष रूप से बिहार बीजेपी का ही हो गया है. कभी बराबरी वाले नीतीश अब बीजेपी की गोद में बैठने को मजबूर हो गए हैं. उनकी नीतियों, निर्देशों व कदमों को बीजेपी तय करेगी. बीजेपी के लिए लाभ की बात यह भी है कि बंगाल में कुछ माह बाद चुनाव है और बंगाल की सीमा से लगे बिहार पर उसका कब्जा हो चुका है. इसलिए वह एक कदम और आगे बढ़ने का उत्साह कायम रखकर तृणमूल का मुकाबला करेगी.

कोई विकल्प भी नहीं था

नीतीश कुमार के लिए बीजेपी छोड़कर कोई आश्रय स्थल नहीं है. पिछली बार लालू पुत्रों तेजस्वी और तेज प्रताप के दबाव से मुक्त होने के लिए उन्होंने सीएम पद से इस्तीफा दिया था और फिर बीजेपी से सहयोग लेकर नई सरकार बना ली थी. उनका प्रगतिशील व सेक्यूलर चरित्र वहीं खत्म हो गया था. महागठबंधन में नीतीश कुमार अस्वीकार्य हैं. महाराष्ट्र जैसा राजनीतिक खेल बिहार में दोहराना संभव नहीं था. महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव हैं. वहां जाकर भी नीतीश को कुछ मिलने वाला नहीं था. खास बात यह कि बीजेपी ने अपना वादा निभाते हुए उन्हें फिर बिहार का सीएम बनाया. यह बात अलग है कि वे बीजेपी के रहमोकरम पर निर्भर एक मजबूर और पावरलेस सीएम बने रहेंगे. इसी स्थिति में उन्हें अपना कार्यकाल पूरा करना होगा क्योंकि और कहीं वे जा भी नहीं सकते.

मजबूत विपक्ष से निपटना होगा

यदि कांग्रेस कमजोर नहीं पड़ती तो तेजस्वी यादव का सितारा चमकने ही वाला था. कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा और सिर्फ 19 सीटों पर सिमट कर रह गई. जिस तरह यूपी में अखिलेश यादव को कांग्रेस के साथ गठबंधन से नुकसान उठाना पड़ा था, वही अनुभव तेजस्वी यादव को भी बिहार में आया. कांग्रेस के लिए महागठबंधन में ज्यादा सीटें छोड़ने का खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा. इतने पर भी 110 सीटों के साथ महागठबंधन मजबूत विपक्ष की भूमिका निभाएगा और सरकार को धार पर रखेगा. समय-समय पर विपक्ष विविध मुद्दों पर नीतीश सरकार की किरकिरी भी कर सकता है. आखिर आरजेडी सदन में सबसे बड़ी पार्टी जो है और तेजस्वी भी तेजतर्रार नेता हैं.

बीजेपी ने ही नीतीश को कमजोर किया

नीतीश कुमार और उनकी जदयू का सारा खेल लोजपा नेता चिराग पासवान ने बिगाड़ दिया. चिराग को बीजेपी का अप्रत्यक्ष प्रोत्साहन था. चिराग खुद को मोदी का हनुमान कहते थे. खुद तो लोजपा को 1 ही सीट मिल पाई लेकिन यह पार्टी जदयू के वोट खा गई. लोजपा के कारण ही नीतीश की पार्टी 43 सीटों पर अटक कर रह गई. कहना होगा कि बीजेपी ने नीतीश को कमजोर करने के लिए चिराग पासवान के कंधे पर रखकर बंदूक चलाई. सब कुछ जानने के बाद भी नीतीश कुमार बीजेपी की इस चाल का विरोध करने की स्थिति में नहीं थे. अभी तो बीजेपी उन्हें और भी विवश करती रहेगी. पता नहीं वे इस दबाव में 5 वर्ष कैसे निकालेंगे!