ऐसा महसूस किया जा रहा है कि जिस समस्या की जटिलता को देखते हुए सोनिया गांधी और राहुल उसमें हाथ डालना नहीं चाहते, वहां कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा उसे सुलझाने की पहल लेती दिखाई देती हैं. यह प्रियंका का नेतृत्व गुण है जो संकटमोचक के रूप में सामने आती हैं और सार्थक चर्चा व सूझबूझ से गुत्थी हल करने का प्रयास करती हैं. इसके पहले भी प्रियंका ने संकट के वक्त पर कांग्रेस का बेड़ा पार लगाने की पहल की थी और उनके प्रयासों को काफी हद तक सफलता मिली थी.
राजस्थान में जब सचिन पायलट और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बीच विवाद बढ़ गया था और सचिन पायलट के कांग्रेस छोड़ने के आसार नजर आने लगे थे तब प्रियंका ने गहलोत व पायलट के बीच सुलह करवाई थी. पायलट की नाराजगी इस बात को लेकर थी कि विधानसभा चुनाव उनके नेतृत्व में कराए गए लेकिन मुख्यमंत्री पद गहलोत को सौंप दिया गया. गहलोत के पुत्र चुनाव हार गए तो इसके पीछे पायलट का हाथ बताया गया. यदि प्रियंका हस्तक्षेप नहीं करतीं तो ज्योतिरादित्य सिंधिया के समान पायलट भी बीजेपी का दामन थाम सकते थे. इसके बाद अध्यक्ष पद व संगठन चुनाव कराने की मांग को लेकर सोनिया गांधी को पत्र लिखनेवाले कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं (जी-23) को भी प्रियंका ने अपने तरीके से मनाया था. उन्होंने गुलाम नबी आजाद को कोरोना काल में बड़ी जिम्मेदारी सौंपी. इसके बाद इन नेताओं का उबाल काफी हद तक कम हो गया.
पंजाब के मामले में पहल
पंजाब में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदरसिंह और असंतुष्ट नेता नवजोतसिंह सिद्धू के बीच विवाद चरम पर है. प्रतापसिंह बाजवा, सुखविंदरसिंह रंधावा भी कैप्टन से संतुष्ट नहीं हैं. चरणजीतसिंह चन्नी के खिलाफ पुराना मामला खुलने से कुछ विधायक उनके समर्थन में आ गए हैं. मुख्यमंत्री पर आरोप है कि वे बेअदबी मामले में अकाली नेता बादल पर कार्रवाई नहीं कर रहे हैं. सिद्धू उपमुख्यमंत्री या प्रदेशाध्यक्ष बनना चाहते थे लेकिन कैप्टन इसके खिलाफ हैं. अब कैप्टन सरकार और कांग्रेस नेताओं के बीच चल रहे घमासान को रोकने के लिए प्रियंका गांधी ने मुख्यमंत्री अमरिंदरसिंह से मामले को जल्द से जल्द सुलझाने की अपील की है. प्रियंका ने समझाया है कि आरोप-प्रत्यारोप से विवाद को बढ़ाना कांग्रेस की संस्कृति का हिस्सा नहीं है. देखना होगा कि प्रियंका के प्रयास क्या रंग लाते हैं.