कृषि कानूनों पर अमल रोकेगा सुप्रीम कोर्ट, सरकार की विफलता उजागर

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मामला किसानों और सरकार के बीच का था लेकिन सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में चला गया. गतिरोध तोड़ने का काम सरकार का था, न कि अदालत का! फिर भी जो स्थिति है, इसके लिए सरकार भी कम जिम्मेदार नहीं है. कृषि सुधार कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन (Farmer Protests) से उत्पन्न राजनीतिक पेचीदगी से उबरने के लिए सरकार सुप्रीम कोर्ट की ओर उन्मुख हुई.

गत शुक्रवार को चर्चा विफल हो जाने पर सरकार के प्रतिनिधियों ने किसान यूनियनों से कहा कि वे अदालत जा सकते हैं जहां अनुरोध करने पर इन कानूनों की संवैधानिक वैधता तय करने के लिए दैनिक सुनवाई हो सकती है. कृषि मंत्री नरेंद्रसिंह तोमर (Narendra Singh Tomar) ने कहा कि संसद द्वारा पारित कानून की समीक्षा करने का सुप्रीम कोर्ट को अधिकार है. किसान नेताओं ने यह प्रस्ताव ठुकराते हुए कहा कि यह सरकार का नीतिगत विषय है तथा किसान यूनियन अदालत में जाने की इच्छुक नहीं है. यह विवाद सरकार की राजनीतिक विफलता को दर्शाता है जिसने जल्दबाजी में तीनों कृषि कानून पास कराए. पहले अध्यादेश जारी किया और फिर मसौदे पर किसानों की राय जाने बिना संसद में बगैर किसी चर्चा के कानून पारित करा लिए.

विशेषज्ञ पैनल नियुक्ति का प्रस्ताव

सरकार बार-बार कह रही है कि कानूनों का उद्देश्य अच्छा है. किसानों को सरकार नियंत्रित मंडियों के बंधन से मुक्त किया जाएगा. ठेके की खेती (कांट्रैक्ट फार्मिंग) समझौते के लिए कानूनी ढांचा तैयार किया जाएगा. उपज की आवाजाही की बाधाएं हटाई जाएंगी. सरकार कानूनों की एक-एक उपधारा पर चर्चा के लिए तैयार है व संशोधन भी कर सकती है. यह सारी बातें सरकार इन विधेयकों को संसद में पेश करते समय भी तो कह सकती थी! एक ओर तो सरकार ने कृषि विधेयकों को जांच के लिए संसद की चयन समिति के पास भेजने से इनकार कर दिया था लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने गतिरोध को तोड़ने के लिए एक निष्पक्ष विशेषज्ञ पैनल की नियुक्ति का प्रस्ताव रखा है. यह भी एक अजीब बात होगी कि संसद में पारित कानून पर कोर्ट द्वारा नियुक्त कोई पैनल अपना निर्णय दे. इसके क्या परिणाम होंगे और कैसी मिसाल कायम होगी? ऐसे समय, जबकि गणतंत्र दिवस और संसद का बजट सत्र निकट आ रहा है, भीषण ठंड के बावजूद खुले आसमान के नीचे किसानों का आंदोलन जारी है. सरकार की यह धारणा विफल रही है कि आंदोलनकारी किसान खुद ही थक कर चले जाएंगे.

समाधान कर रहे हैं या समस्या बढ़ा रहे हैं

सुप्रीम कोर्ट ने किसान आंदोलन से जुड़ी सभी याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कड़े शब्दों में सरकार की खिंचाई की. न्यायमूर्ति एसएस बोपन्ना और न्या. वी सुब्रमण्यम ने सरकार से कहा कि या तो आप इन कानूनों के अमल पर रोक लगाएं या फिर हम लगा देंगे. नए कृषि कानूनों को लेकर जिस तरह से सरकार और किसानों के बीच बातचीत चल रही है, उससे हम बेहद निराश हैं. हम नहीं जानते कि आप समाधान का हिस्सा हैं या समस्या का हिस्सा हैं. आपने इसे उचित ढंग से नहीं संभाला है, हमें इस पर एक्शन लेना ही होगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमारे पास एक भी ऐसी याचिका नहीं है जो यह बताए कि यह कानून किसानों के हित में है.

कोर्ट के अधिकार पर सरकार की दलील

अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि अदालत तब तक संसद में पारित कानून पर रोक नहीं लगा सकती जब तक कानून विधायी क्षमता के बगैर पास हुआ हो या फिर कानून से मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता हो. इस पर कोर्ट ने कहा कि हम कृषि कानूनों को निरस्त नहीं कर रहे हैं, बल्कि उनके अमल (लागू होने) पर रोक लगा रहे हैं. याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि सिर्फ विवादित हिस्सों पर ही रोक लगाई जाए तो कोर्ट ने कहा कि हम पूरे कानून पर रोक लगाएंगे. कोर्ट ने आगे कहा कि उनके द्वारा गठित समिति के समक्ष वार्ता को सुविधाजनक बनाने के लिए कृषि कानूनों के अमल पर रोक लगाई जा सकती है.