पिछले दो दशकों में भारत ने अफगानों से जो सद्भावना अर्जित की, वह तालिबान के सत्ता में आते ही खत्म हो जाएगी. अफगानिस्तान के राष्ट्र-निर्माण में योगदान करने के लिए भारत ने 3 अरब डॉलर से अधिक का जो निवेश किया, वह फिलहाल खतरे में है. भारत ने हेरात में बांध बनाने से लेकर कृषि विकास के क्षेत्र में पहल करने के अलावा अफगानिस्तान के संसद परिसर का भी निर्माण किया है.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने अब यह कहा है कि अमेरिका अफगानिस्तान में ‘राष्ट्र निर्माण’ के लिए नहीं आया था. अमेरिका ने अपने 2,500 लोगों को खोने और 10 खरब डॉलर खर्च करने के बाद यह स्वीकारोक्ति की है, इसलिए अमेरिका या किसी और के कहने पर या ‘हाइब्रिड’ युद्ध के हिस्से के रूप में अफगानिस्तान में सैन्य उपस्थिति जताने का कोई भी भारतीय प्रयास व्यर्थ और जोखिम भरा ही होगा. लिहाजा अफगानिस्तान के मामले में लंबे कूटनीतिक अनिश्चय को उसे स्वीकार कर लेना चाहिए.