वास्तविक पात्र लोग आवास पाने से वंचित, फर्जी लोगों का सूची में नाम

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    •  असली लाभार्थी कोई एवं कागज पर नाम किसी और का
    • गाँवों में उठ रही है जाँच की माँग लेकिन व्यवस्था के स्तर पर कोई सुनने को तैयार नहीं

    सालई खुर्द : जिस प्रधानमंत्री आवास योजना के जरिये हर गरीब को छत मुहैया कराने का दावा किया गया था. लेकिन अब यही योजना रास्ते से भटकी नजर आ रही है, यूं कहें कि अपने फायदे के लिए लोगों ने इसे रास्ते से भटका दिया है. लेकिन लाभार्थी अभी भी उम्मीद भरी निगाहों से देखे जा रहे हैं कि कभी तो किसी की नजर उन पर पड़ेगी और कभी तो उनके सिर पर छत आयेगी.

    सरकार ने इसी उम्मीद के साथ प्रधानमंत्री आवास योजना शुरू की थी कि 2022 तक प्रत्येक गरीब व पात्र व्यक्ति को रहने के लिए पक्का आशियाना उपलब्ध करा दिया जाएगा. गरीब भी यहीं उम्मीद लगाए बैठे हैं कि उनके सर पर अब पक्की छत होगी. लेकिन सच तो यह हैं कि आज भी गरीब व पात्र व्यक्ति तो योजना का लाभ लेने के लिए सरकारी दफ्तरों का चक्कर काटना पड़ता है. मगर गरीब व पात्र व्यक्ति तो अभी भी उक्त योजना में अपना नाम जुड़वाने व लाभ पाने के लिए धक्के ही खा रहे हैं. कई लोगों ने  बीडीओ से शिकायत की एवं मामले की जांच करने की मांग की. इसपर नियमों का हवाला देकर जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ लिया. यहीं नहीं एक ही मकान में रहने वाले पिता ,पुत्र का नाम सूची में नाम दर्ज हैं.

    दावे और हकीकत में अंतर

    सरकारी दावा चाहे जो भी हो, लेकिन प्रधानमंत्री आवास योजना में लूट मची है. ऑपरेटर से लेकर सरकारी मुलाजिम तक चढ़ावे के बगैर लाभार्थियों को आवास योजना का लाभ नहीं देते हैं. सूत्रों की मानें तो आवास योजना कि जब जांच टीम गांव में जांच करने पहुंचती है. जिन्हे गांव में किसी तरह की जानकारी नहीं होती की किसे आवास की जरूरत है एवं कौन पात्र नहीं है.

    नतिजन पात्र  लाभार्थियों को छोड़कर जिन्हे आवास की जरूरत नहीं है ऐसे लोगों को तथा जिनके पक्के मकान है, ऐसे लोगों को सूची में शामिल किया जाता है. बारिश के मौसम में खुले आसमान के नीचे टूटी-फूटी कच्ची झोपड़ियों में रात गुजारने वाले पात्र लाभार्थियों को  छोड़कर, फर्जी तौर पर बनाए गए चूल्हे एवं चारपाई के पास खड़े होकर फोटो खिंचवाते हैं इसी कारण से वास्तविक पात्र लोग आवास पाने से वंचित रह जाते है.

    जबकि कई परिवार ऐसे भी हैं, जिन्हें बारिश के मौसम में खुले आसमान के नीचे टूटी-फूटी कच्ची झोपड़ियों में रात गुजारनी पड़ती है. हैरान करने वाली बात यह है कि पंचायत समिति स्तर पर इस बात की जानकारी प्रखंड विकास पदाधिकारी (बीडीओ)को देने के बावजूद भी,आम आदमी को नियमों का हवाला देकर जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ लिया है.