
चंद्रपुर. जून महीने की शुरूआत से मानसून अपनी रफ्तार में बढ रहा है. इसके चलते किसानों की बीज बुआई की गतिविधियां बढ गई है. धान उत्पादक क्षेत्र में धान फसल लेने का काम जोरदार से शुरू है. जिन क्षेत्र में रोवणी पध्दति से बुआई की जाती है इस क्षेत्र में धान के पौधे डालने का काम जोरों से शुरू है. धान पट्टे में पिछले तीन चार दिनों से जोरदार बारिश शुरू है.
बारिश किसानों के लिए वरदान साबित होने से परिसर में बुआई की शुरूआत हुई है. परंतु पिछले वर्ष की तुलना में इस बार की महंगाई से किसान काफी बेहाल हो गए है. बीज, खाद के दाम इतने बढ गए है कि किसानों का बजट नहीं बैठ पा रहा है.
इस वर्ष महंगाई आसमान पर है. पेट्रोल, डीजल के दामों ने आग लगा रखी है. इसी तरह कृषि, मशागत के वस्तूएं भी महंगी हो गई है. खेतों में मशागत के लिए उपयोगी ट्रैक्टर का किराया 800 से 1 हजार रुपये प्रतिघंटे लिया जा रहा है. बीजों के दाम कई गुना बढ गए है. खाद के दामों का भी यही हाल है. मजदूरों की मजदूरी भी 40 से 50 रुपये बढ गई है. उत्पादन खर्च पर विचार करे तो समाधानकारक भाव नहीं मिल पा रहा है.
खेतों में काम करनेवाले मजदूर का पारिश्रामिक 9 हजार रूपये प्रतिमाह के हिसाब से एक लाख 15 हजार रूपये वेतन प्रतिवर्ष बनता है खेत में काम करनेवाली महिला मजदूर प्रतिदिन 150 रूपये में मजदूरी करती है और सुबह 11 बजे से लेकर 5 बजे तक खेतों में कार्यरत रहेंकर घर लौटती है. हर वर्ष कृषि सामग्री के दाम बढ रहे है इसके साथ बीज के भाव, फवारणी दवाओं के भाव, खाद के भाव इस हिसाब से किसान के माल के भाव दिन ब दिन गिरते जा रहे है आज की युवा पीढी खेतों में काम करने को तैयार नहीं है.
वें कपड़ा, किराणा, पेट्रोलपंप आदि स्थानों पर तीन से चार हजार रूपये की नौकरी पसंद करते है. अन्य तहसीलों से मजदूर खेती में काम करने को आ रहे है उन्हें किसान द्वारा निवास के लिए जगह देनी पडती है इनके आने का प्रमाण कम मात्र में रहने के कारण पूरे किसानों को मजदूर नहीं मिल पाते है इस खींचतान में किसानों में स्पर्धा निर्माण होकर दूसरे किसान का खेतिहर मजदूर भाव बढाकर अपनी ओर खींचता है. खेती में काम करनेवाली महिला मजदूरों में स्पर्धा बढी है.
किसान रेट बढाकर मजदूरों को अपने यहां लेकर जाते है, मजदूरों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए किसान आटो, फोरव्हीलर तक उनके घरों तक पहुंचाते है इसी परेशानी में मजदूर नहीं मिल रहे है.किसान को भी दिन रात मेहनत करके बीज, खाद दवाई, मजदूरों का वेतन, बैंक का कर्ज, परिवहन खर्च आदि के बाद खेती पर निर्भर इन किसानों के सामने अपने परिवार का भी खर्चा होता है परिवार का अस्पताल, बच्चों की पढाई, बच्चों की शादी, रिश्तेदारी में शादी ब्याह आदि का खर्च किसानों को उठाना पड़ता है.
किसान के लिए कृषि उपज एवं उसके गिरते दाम के चलते उसका कुल कृषि का खर्च पूरा नहीं हो पा रहा है ऐसे में अपने परिवार का खर्च कैसे पूरा करें यह सवाल उसके सामने खड़ा है. परिवार के खर्च के लिए बैंक कर्ज तो नहीं देती है उसे ऐसे में साहूकारों के दरवाजे खटखटाने पड़ते है.
धान पट्टे में पूरी खेती मानसून पर निर्भर है. किसान हर वर्ष प्राकृतिक संकट तो कीड़ों और रोगों के संकमण से परेशान है. पिछले दो वर्षों से कोरोना का संकट छाया हुआ है. ऐसे स्थित में लॉकडाऊन लगा होने से बाजारपेठ बंद थे. किसान के खेतों में बोयी गई सब्जी भाजी की फसल बारिश के कारण सड़ गई. इसके चलते बीज खरीदी का खर्च नहीं निकल पाने से किसान चिंतित है.
इस वर्ष खरीफ की पैदावार शुरू हो गई है. पिछले वर्ष के खरीफ के धान का बोनस अब तक किसानों के खाते में जमा नहीं हुआ है. खाद, बीज, हल जुताई आदि का दर बढ गया है. मजदूरी बढ गई है. इसके चलते पिछले खरीफ मौसम में बोनस कम मिलेगा इस ओर किसानों का ध्यान लगा हुआ है.