Two direction pillars of British period found in Bhisi area

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    चंद्रपुर. ताडोबा अंधारी टाइगर रिजर्व में ब्रिटिशकालिन ‘स्तंभ’ है. अंतिम स्तंभ कोलारा गेट के पास होने का इतिहास है. परंतु कवडू लोहकरे ने इतिहास पर शोध कर चिमूर के कब्रिस्तान का ब्रिटिश काल के स्तंभ पर प्रकाश में लाया है. अब भिसी के किसान के खेत में ब्रिटिश काल के दो स्तंभों का शोध कर ब्रिटिश काल का इतिहास प्रकाश में लाया गया है.

    भारत पर अंग्रेजों का शासन था उस समय ब्रिटिश सरकार अपने शासन को निर्देशित करने और यात्रा के दौरान दिशा दिखाने के लिए ‘दिशादर्शक’ स्तंभ का उपयोग कर रहे थे. चंद्रपुर से नागपुर पहुंचने के लिए ताडोबा जंगल का इस्तेमाल किया जाता था. क्योंकि इस मार्ग पर नदियाँ नहीं थीं. क्योंकि अंग्रेज नदियों के माध्यम से नौकावहन नहीं कर सकते थे. 

    उस समय ब्रिटिश सरकार ने ताडोबा होते हुए चिमूर, खडसंगी कान्पा, भिसी, उमरेड, नागपुर का वन मार्ग तय किया. इस मार्ग पर आवाजाही करने हेतु दिशा दर्शक स्तंभ ब्रिटीशों ने खडा किया था. वह स्तम्भ आज भी स्तिथ प्रज्ञा के रूप में अपने अस्तित्व का साक्षी है. इस स्तम्भ के बिल्कुल सिरे पर एक यू-आकार का पत्थर है. 

    भिसी के एक किसान के खेत में लगे दो खंभों पर व्यक्तिगत रूप से जाकर कवडू लोहकारे को जानकारी ली. भिसी गांव से महज 1 किमी दूर वाढोना रोड से सटे खेत में स्थित है. कई साल पहले इस इलाके में घना जंगल था.  लेकिन समय के साथ ये खंभे कृषि के कारण नष्ट हो गए. आज भी दो स्तंभ ऊँचे खड़े होकर अंग्रेजों के जमाने के इतिहास की गवाही दे रहे हैं. 

    ब्रिटिश काल के दोनों स्तम्भ 'लाखोरी' ईंटों से जुड़े हुए हैं. स्तम्भ का निचला भाग काले पत्थरों से जड़ा हुआ है. मजबूती का एक अच्छा उदाहरण है. दो खंभे समाप्त होने के कगार पर हैं. दोनों खंभों को संरक्षित करने की जरूरत है.

    कवडू लोहकरे (प्राचीन प्रेमी (भिसी-चिमूर))