मुंबई: कर्नाटक मैसूर के निवासी पेशे से कंप्यूटर इंजीनियर 44 वर्षीय दक्षिणा कृष्ण कुमार मूर्ति (Dakshina Krishna Kumar Murthy ) आज किसी पहचान के मोहताज नहीं है उन्हें कलयुग (Kalyug) का श्रवण कुमार (Shravan Kumar) कहा जाता है। जो अपने माता को स्कूटर पर तीर्थ (Pilgrimage) यात्रा करा रहे हैं। कृष्ण कुमार इस समय मुंबई में अपनी माता को मंदिर और मठों का दर्शन करा रहे हैं। इस दौरान उन्होंने अपनी इस यात्रा के बारे में जानकारी नवभारत के साथ साझा की है।
मुंबई के मंदिर और मठों का दर्शन करने मां संग पहुंचे कृष्ण कुमार
बातचीत के दौरान कृष्ण कुमार ने बताया कि वह मुंबई से सटे मीरा रोड के बालाजी मंदिर और इस्कॉन मंदिर में मां को दर्शन करा चुके हैं। ठाणे के राघवेंद्र स्वामी मंदिर और शिव मंदिर भी गए थे। इतना ही नहीं वह अंधेरी में अदमारु मठ भी जा चुके हैं। इसके अलावा मुंबई में उनका शंकर मठ जाने का भी प्लान बना हुआ है।
मां के साथ अब तक की देशभर में 77186 किलोमीटर की यात्रा
उन्होंने यह भी बताया कि वह मां को लेकर देश भर में 77186 किलोमीटर की यात्रा अब तक कर चुके हैं। मुंबई में मंदिर और मठों के दर्शन के बाद वह फिर अपने निवास स्थान कर्नाटक चले जाएंगे। यह पूरी यात्रा वह स्कूटर पर ही बैठकर अपनी मां के साथ करते हैं।
मां को कन्याकुमारी से कश्मीर तक का दर्शन कराया
कृष्ण कुमार ने बताया कि उन्होंने अपनी मां को कन्याकुमारी से कश्मीर तक का दर्शन कराया है। मंदिर और मठों में दर्शन के अलावा पुण्य नदियों में पुण्य स्नान भी कराया है। कृष्ण कुमार ने बताया कि उनकी यह यात्रा 16 जनवरी 2018 में शुरू हुई थी। उन्होंने मैसूर से इसकी शुरुआत की थी जिसके बाद वह केरल, तमिलनाडु, पांडिचेरी, महाराष्ट्र, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू कश्मीर, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, अंडमान निकोबार और देश लगभग सभी राज्यों में अपनी यात्रा की। इस यात्रा में वह अब तक 77,186 किलोमीटर का सफर तय कर चुके हैं।
कृष्ण कुमार ने ठुकराया चंदे का ऑफर
बातचीत के दौरान कृष्ण कुमार ने एक दिलचस्प बात बताई कि उन्हें कई जगह से चंदा देने का ऑफर भी किया जाता है। लेकिन वह अपनी मां को तीर्थ कराने के लिए किसी और का पैसा नहीं लेना चाहते हैं। इसलिए 13 साल की अपनी नौकरी में उन्होंने जो धनराशि जमा की है उसी के बल पर अपनी मां को तीर्थ करा रहे हैं।
नहीं थमेगा मां के तीर्थ यात्रा का सिलसिला
कृष्ण कुमार ने यह भी बताया कि वह जब तक जीवित रहेंगे उनका माताजी को तीर्थ करने का सिलसिला चलता रहेगा। क्योंकि भारत और दुनिया भर में तीर्थ स्थान की कमी नहीं है ऐसे में कभी भी इस यात्रा का समापन नहीं होने वाला है हां बीच-बीच में वह विराम जरूर लेते हैं। क्योंकि इसकी उन्हें और मां दोनों को जरूरत होती है।
माता-पिता की सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है
कृष्ण कुमार के मुताबिक माता-पिता की सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है यानी ‘मातृ-पिता सेवा परमो धरम’, मृत्यु के पश्चात माता-पिता का सम्मान करना या उनकी तस्वीर पर फूल माला चढ़ाना जरूरी नहीं है। उनके जीते जी हमें उनका सम्मान और उनकी सेवा करनी चाहिए।
माता पिता हैं भगवान का साक्षात अवतार
कृष्ण कुमार मानते हैं कि माता पिता चलते फिरते भगवान हैं। वह ऐसे भगवान है जिन्हें हम देख सकते हैं, सुन सकते हैं और महसूस कर सकते हैं। बातचीत के दौरान कृष्ण कुमार ने यह भी बताया कि उनकी जो स्कूटर है उस पर उनके पिता का खास आशीर्वाद है क्योंकि यात्रा के दौरान वह स्कूटर कभी भी उन्हें धोखा नहीं देती है।
स्कूटर को वहां नहीं पिता मानते हैं कृष्ण कुमार
आपको बता दें कि उनकी यह स्कूटर 25 साल पुरानी है और उनके पिता ने उन्हें यह उपहार के तौर पर दी थी। ऐसे में वो उस स्कूटर को अपने पिता के समान ही मानते हैं और उनका यह मानना है कि जब वह अपनी मां के साथ इस स्कूटर पर तीर्थ पर होते हैं तो उन्हें ऐसा लगता है कि पिता भी उनके साथ हैं।
मां के तीर्थ के लिए छोड़ी नौकरी, नहीं की शादी
कृष्ण कुमार ने यह भी बताया कि साल 2016 तक वह नौकरी में थे और वह बेंगलुरू स्थित एक मल्टीनेशनल कंपनी में कॉर्पोरेट लीडर के तौर पर काम किया करते थे। लेकिन एक दिन मां ने उन्हें यह बताया कि उन्होंने भारत को अब तक नहीं देखा है। पिता का निधन हो चुका था ऐसे में मां की इस इच्छा को पूरा करने का जिम्मा कृष्ण कुमार ने उठाया और 2018 में वह मां को लेकर भारत भ्रमण की यात्रा पर निकल चुके हैं। उन्होंने शादी भी नहीं की है। उम्मीद है कि कलयुग के श्रवण कुमार से देश के युवाओं को माता-पिता की सेवा की प्रेरणा जरूर मिलेगी।