Historic Trains of Central Railway
पंजाब मेल और डेक्‍कन क्‍वीन

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    मुंबई: मध्य रेलवे (Central Railway) की दो ऐतिहासिक ट्रेनें (Historic Trains) 1 जून को अपनी वर्षगांठ मना रहीं हैं। भारतीय रेलवे (Indian Railway) की सबसे पुरानी ट्रेनों (Oldest Trains) में से एक पंजाब मेल (Punjab Mail) 110  साल पूरे कर 1 जून को 111 वें वर्ष में कदम रख रही है तो महाराष्‍ट्र के दो प्रमुख शहरों मुंबई-पुणे के बीच चलने वाली प्रीमियम ट्रेन डेक्‍कन क्‍वीन (Deccan Queen) भी 1 जून को 92 वर्ष की होने जा रही है।

    1 जून 1930 को ‘डेक्‍कन क्‍वीन’ का शुभारंभ ग्रेट इंडियन पेननसुला रेलवे के माध्यम से हुआ। मध्‍य रेलवे पर शुरू की गई इलेक्ट्रिक लोको वाली पहली डीलक्‍स ट्रेन थी, जिसे ‘क्‍वीन ऑफ डेक्‍कन’ (दख्‍खन की रानी) भी कहा जाता है।

    इग्लैंड में बने थे रेक

    इस गाडी को 7 डिब्‍बों के दो रेक के साथ चलाया गया जिनमे से एक रेक को स्‍कारलेट मोलडिंग सहित सिलवर कलर में पेंट किया गया था और दूसरे रेक को गोल्‍ड लाइनों के साथ रॉयल ब्‍ल्‍यू कलर मे पेंट किया गया था। मूल रेकों के डिब्‍बो के अंदर फ्रेम्‍स का निर्माण इंग्‍लैंड मे किया गया था, जबकि डिब्‍बों का निर्माण जीआईपी रेलवे के मांटुगा कारखाने में किया गया था। इस समय ट्रेन 17 डिब्बों के साथ चलती है। 91 वर्ष बाद भी यह ट्रेन यात्रियों की पहली पसंद बनी हुई है। डेक्कन क्वीन में पुश-पुल इंजन लगा हुआ है।

    22 जून से एलएचबी रेक

    मध्य रेलवे के सीपीआरओ शिवाजी सुतार ने बताया कि 22 जून से डेक्कन क्वीन एलएचबी रेक के साथ दौड़ेगी। 4 एसी चेयर कार,1 विस्टाडोम कोच, 8 सेकेंड क्लास चेयर कार,1 जनरल सेकेंड क्लास सह गार्ड ब्रेक वान और जनरेटर कार होंगे।

    1911 में शुरू हुई पंजाब मेल

    तत्कालीन बॉम्बे से पेशावर तक पंजाब मेल 1911 में शुरू की गई। कहा जाता है कि पंजाब मेल फ्रंटियर मेल से भी 16 वर्ष पुरानी है। पंजाब लिमिटेड मुंबई के बेलार्ड पियर मोल स्‍टेशन से जीआईपी रूट के माध्‍यम से निश्चित डाक दिनों पर सीधे पेशावर तक की 2,496 किलोमीटर की दूरी 47 घंटों में तय करती थी। गाडी में 6 डिब्‍बे थे। 3 यात्रियों के लिए और 3 डाक के सामान या चिट्ठियों के लिए। सवारी डिब्‍बों की क्षमता केवल 96 थी।

    सबसे तेज ट्रेन

    विभाजन के पहले पंजाब लिमिटेड ब्रिटिश भारत की सबसे तेज रफ्तार गाडी थी। पंजाब लिमिटेड का मार्ग जीआईपी रेल पथ से इटारसी, आगरा, दिल्‍ली, अमृतसर और लाहौर से गुजर कर पेशावर छावनी तक जाता था। बाद में इसे पंजाब लिमिटेड के स्‍थान पर पंजाब मेल कहा जाने लगा।1930 के मध्‍य में पंजाब मेल में तृतीय श्रेणी का डिब्‍बा लगाया गया। 1914 में बांबे से दिल्‍ली का जीआईपी रूट 1,541 किलोमीटर था, इसे यह गाडी 29 घंटा 30 मिनट में पूरा करती थी। 1920 के प्रारंभ में समय को घटाकर 27 घंटा 10 मिनट किया गया। पंजाब मेल मुंबई से फिरोजपुर छावनी तक की 1930 किलोमीटर की दूरी 32 घंटों 35 मिनट में पूरी करती है। यह  52 स्टेशनों पर रुकती है

    1945 में एसी कोच

    1945 में पंजाब मेल में एसी स्लीपर कोच लगाया गया।1 मई 1976 से पंजाब मेल को डीजल इंजन लगाकर चलाया गया। घाट के विद्युतीकरण के पश्‍चात इस गाडी को बंबई वीटी से मनमाड तक विद्युत इंजन द्वारा चलाया जाता था, जबकि मनमाड से डब्‍ल्‍यू पी श्रेणी के भाप इंजन द्वारा यह गाडी सीधे फिरोजपुर तक जाती थी। 1968 में इस गाडी को डीजल इंजन से झॉंसी तक चलाया जाने लगा। डिब्‍बों की संख्‍या 12 से 15 कर दी गई। बाद में डीजल इंजन नई दिल्‍ली तक चलने लगा और 1976 में यह फिरोजपुर तक जाने लगा। डिब्‍बों की संख्‍या 18 कर दी गई।

    एलएचबी कोच

    पंजाब मेल मुंबई से फिरोजपुर छावनी तक की 1930 किलोमीटर तक की दूरी 34 घंटों 15 मिनट में पूरी करती है। पंजाब मेल को 1 दिसंबर 2021 से एलएचबी कोच में तब्दील कर दिया गया है।