नागपुर. लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली में जनसंख्या के आधार पर प्रत्येक वर्ग को चुनाव में हिस्सेदारी देने के उद्देश्य से संविधान की धारा 332 (3) में प्रावधान किया गया है. इसी के तहत सीटों के आरक्षण का प्रावधान कर निकट भविष्य में होने जा रहे विधानसभा के चुनावों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति की सहभागिता सुनिश्चित करने के आदेश चुनाव आयोग को देने की मांग करते हुए पूर्व पार्षद प्रमोद तभाने ने हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की. सुनवाई के बाद न्यायाधीश अतुल चांदूरकर और न्यायाधीश वृषाली जोशी ने परिसीमन आयोग को प्रतिवादी के रूप में शामिल करने की स्वतंत्रता प्रदान की. साथ ही अदालत ने परिसीमन आयोग को नोटिस जारी कर जवाब दायर करने के आदेश दिए. याचिकाकर्ता की ओर से अधि. आनंद परचुरे, अधि. पवन सहारे, केंद्रीय चुनाव आयोग की ओर से अधि. नीरजा चौबे, केंद्र सरकार की ओर से अधि. नंदेश देशपांडे और राज्य सरकार की ओर से अति. सरकारी वकील आनंद फुलझेले ने पैरवी की.
कानून में किया है संशोधन
केंद्रीय चुनाव आयोग की ओर से हलफनामा दायर कर बताया गया कि डीलिमिटेशन एक्ट 2002 की धारा 8 (ए) के प्रावधानों के अनुसार अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के लिए सीटें आरक्षित करने का निर्णय लिया जाता है. इस कानून में ही 2001 की जनगणना के आंकड़ों को शामिल किया गया है जिसकी वजह से वर्ष 2011 की जनगणना को लागू नहीं किया गया था. अब धारा 8(ए) में संशोधन किया गया है जिसके अनुसार वर्ष 2011 के आंकड़ों को शामिल किया गया है. याचिकाकर्ता की ओर से बताया गया कि संविधान की धारा 332 (3) के अनुसार जनगणना की गई है जिसे लेकर अक्टूबर 2017 में रिपोर्ट भी प्रकाशित कर दी गई. इससे चूंकि जनसंख्या के अनुसार जातियों की गणना भी हो चुकी है, अत: इसी आधार पर चुनावों के दौरान सीटों के भी आरक्षण का पुनर्गठन किया जाना चाहिए. पुरानी जनसंख्या के आधार पर ही लंबे समय से आरक्षण निर्धारित कर चुनाव कराए जा रहे हैं.
29 की जगह हो सकती हैं 36 सीटें
याचिकाकर्ता ने याचिका में बताया कि वर्तमान में विधानसभा की 288 सीटों में अनुसूचित जाति-जनजाति के लिए केवल 29 सीटों का आरक्षण रखा गया है. पुरानी जनसंख्या के आधार पर यह आंकड़ा भले ही सही हो लेकिन नई जनगणना के उजागर हुए आंकड़ों के अनुसार सीटें बढ़कर 36 होनी चाहिए. याचिकाकर्ता की ओर से सुनवाई के दौरान बताया गया कि वर्ष 2014 में भी इस संदर्भ में याचिका दायर की गई थी लेकिन उस दौरान चुनाव कार्यक्रम घोषित होने के कारण हाई कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करने से साफ इनकार किया था लेकिन अब होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए चुनाव कार्यक्रम घोषित नहीं किया गया. अत: समय रहते पहले आरक्षण निर्धारित करने के बाद चुनाव कार्यक्रम घोषित किया जाना चाहिए.