नागपुर. भाजपा इस लोकसभा चुनाव में अपने ‘400 पार’ वाले टारगेट से किसी तरह का समझौता करती नजर नहीं आ रही है. उसका लक्ष्य येन-केन प्रकारेण यह संख्याबल प्राप्त करना ही है जिसके चलते महाराष्ट्र में भी वह इसी रणनीति पर कार्य कर रही है. हालांकि यहां एकनाथ शिंदे शिवसेना व अजीत पवार राकां के साथ महायुति है बावजूद इसके वह ऐसी सीटों पर भी अपना उम्मीदवार चाहती है जिसकी जीत सुनिश्चित हो. खासकर विदर्भ की उन चार सीटों में उसकी गिद्ध नजर लगी हुई है जो शिवसेना की है और शिंदे गुट की हो चुकी है. पहली सीट रामटेक है जहां से कृपाल तुमाने दो बार शिवसेना-भाजपा युति से सांसद चुने गए.
बीजेपी दावा कर रही है कि शिवसेना के टूटने से यहां वह कमजोर हुई है. अगर उद्धव ठाकरे की शिवसेना यूबीटी ने अपना उम्मीदवार खड़ा किया तो वोटों का विभाजन हो जाएगा. इसलिए यह सीट वह कमल चिन्ह पर लड़ाना चाहती है. इसके साथ ही वह कांग्रेस को भी यहां से तगड़ा झटका देना चाहती है जिसके चलते कांग्रेस विधायक राजू पारवे को अपने पाले में लाकर उन्हें उम्मीदवार बनाने के लिए डोरे डाल रही है. शुक्रवार को भी राजू पारवे की डीसीएम देवेन्द्र फडणवीस से करीब आधे घंटे की मीटिंग हुई और खबर फैल गई कि पारवे कभी भी पाला बदल सकते हैं.
हालांकि बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले ने इसका खंडन करते हुए स्पष्ट किया कि राजू पारवे डीपीसी निधि संबंधी चर्चा के लिए फडणवीस से मिले क्योंकि वे पालक मंत्री हैं. इसके बावजूद राजनीतिक महकमे में पारवे के पाला बदलने की चर्चा जोरों पर है. वहीं कृपाल तुमाने फिलहाल पिक्चर से गायब नजर आ रहे हैं. एक दिन पूर्व ही हुए एक भूमिपूजन कार्यक्रम में भी वे मंच पर नजर नहीं आए जबकि उनके मतदान क्षेत्र का आयोजन था.
यवतमाल में एकजुटता नहीं
यवतमाल लोकसभा सीट पर शिवसेना का कब्जा रहा है. भावना गवली यहां से 3 बार लगातार सांसद रही हैं. शिवसेना में टूट के बाद वे शिंदे गुट के साथ आ गई हैं. अब इस सीट से उनकी ही पार्टी के संजय राठोड़ टिकट का दावा ठोक रहे हैं. बीते दिनों जब राठोड़ ने दावा ठोंका तो भावना ने यह कहते हुए कड़ी चेतावनी दे दी कि वह अपनी झांसी किसी भी सूरत में नहीं छोड़ेंगी. उसके बाद से ही बीजेपी की नजर शिवसेना की इस सीट पर गड़ी हुई है. बीजेपी का मानना है कि शिवसेना में एकजुटता नहीं होने के चलते उसे आगामी लोस सीट में नुकसान न हो जाए. वहीं तीन बार सांसद रहने के चलते एंटी इनकम्बेंसी कहीं नुकसान न कर दे. वह इस सीट से अपना उम्मीदवार उतारने की जुगत बना रही है. वैसे भी महायुति में केवल बीजेपी ने महाराष्ट्र से 20 सीटों के उम्मीदवारों के नाम घोषित किये हैं. शेष सीटों पर मित्र दलों के साथ चर्चा व सौदेबाजी चल रही है. बताते चलें कि इस सीट में शिवसेना और कांग्रेस में सीधी टक्कर होती रही है. गवली कांग्रेस के माणिकराव ठाकरे, शिवाजीराव मोघे और हरिसिंह राठोड़ को पराजित कर चुकी हैं.
बुलढाना के बदले दूसरी सीट
बुलढाना सीट पर शिवसेना का बीते 5 चुनावों से कब्जा बरकरार रहा है. तीन बार से तो प्रतापराव जाधव यहां से लगातार विजयी होते रहे हैं. यहां मुख्य प्रतिद्वंदी राष्ट्रवादी कांग्रेस रही है. राकां के उम्मीदवार राजेन्द्र शिंगणे और कृष्णराव इंगले को जाधव मात दे चुके हैं. भाजपा का मानना है कि शिवसेना व राकां में टूट के कारण दोनों ही पार्टियों के मतों का विभाजन होना निश्चित है. इस सीट से मविआ भी अपना उम्मीदवार निश्चित ही उतारेगी ऐसी स्थिति में महायुति के उम्मीदवार को नुकसान हो सकता है. वह चाहती है कि इस सीट से कमल चिन्ह पर उम्मीदवार उतार कर शिवसेना को इसके बदले कोई ऐसी दूसरी सीट दी जाए जहां उसकी जीत की गारंटी हो.
अमरावती में राणा को ‘कमल’
बीते चुनाव में शिवसेना से उसकी सीट छीनने वाली निर्दलीय उम्मीदवार नवनीत राणा को भाजपा अमरावती से कमल चिन्ह पर मैदान में उतारना चाहती है. राणा दंपति ने मुंबई मातोश्री के सामने हनुमान चालीसा पाठ कर तहलका मचाया था. शिवसेना से सांसद रहे आनंदराव अड़सूल शिंदे गुट में हैं और अब अपने बेटे अभिजीत अड़सूल को प्रोजेक्ट करने की जुगत में हैं लेकिन भाजपा का मानना है कि नवनीत राणा को अगर कमल चिन्ह पर उतारा जाए तो जीत सुनिश्चित है और एक सदस्य यहां से पक्का होगा. वह 2014 के चुनाव में राष्ट्रवादी पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़ी थीं और अड़सूल से पराजित हुई थीं. उसके बाद जब पार्टी ने टिकट नहीं दिया तो 2019 में निर्दलीय मैदान में उतरीं और जीत हासिल की. शिवसेना यूबीटी बागी शिंदे गुट को सबक सिखाने के लिए हर उस सीट पर उम्मीदवार खड़ा करने को उतारू है जहां से शिंदे गुट का उम्मीदवार खड़ा किया जाएगा. ऐसे में वोटों का विभाजन सीट छीन जाने का कारण बन सकता है.