Special teams sent to 9 states and union territories of the country affected by dengue, efforts intensified to control the increasing cases
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  • प्रशासकीय लापरवाही से प्रति वर्ष तेजी से फैलती है बीमारी
  • 3,000 मरीज विभाग में मिले 
  • 12 की अब तक मौत 
  • 2,000 से अधिक मरीज नागपुर जिले में 
  • 04 प्रकार के होते हैं डेंगू 

नागपुर. बारिश के दिनों में हर वर्ष डेंगू कहर बरपाता है. भले ही डेंगू से मरने वालों का आंकड़े ज्यादा न हों लेकिन पीड़ितों की संख्या अधिक रहती है. शारीरिक और आर्थिक रूप से परेशान करने वाले डेंगू को लेकर प्रशासन की उदासीनता साफ देखी जा सकती है. डेंगू होने पर सिरोटाइप नामक टेस्ट की जाती है लेकिन टेस्ट की सुविधा नागपुर सहित समूचे विदर्भ में नहीं है. जबकि विदर्भ में 7 शासकीय मेडिकल कॉलेज है जिनमें हजारों डेंगू मरीजों का इलाज किया जाता है. पहली बार डेंगू से स्वस्थ होने के बाद दूसरी बार फिर से डेंगू हो सकता है. डेंगू से रक्त में शामिल प्लेटलेट नामक घटक तेजी से कम होता है यदि स्थिति में जल्द सुधार नहीं हुआ तो फिर मौत भी हो सकती है.

दूसरी बार डेंगू होने पर सिरोटाइप टेस्ट की जाती है लेकिन इसकी सुविधा विदर्भ में नहीं है. मरीजों के नमूनों को पुणे की प्रयोगशाला में भेजा जाता है. इस वर्ष की जनवरी से लेकर अब तक विभाग में डेंगू के 3,000 मरीज मिले है. इनमें से करीब 12 मरीजों की मौत हो गई. जबकि 2,000 डेंगू मरीज अकेले नागपुर जिले में ही मिले हैं. डॉक्टरों की मानें तो डेंगू से लड़ने के लिए शरीर में ‘डेंगू शॉक सिंड्रोम’की प्रतिरोधक क्षमता विकसित नहीं होने से ही मृत्यु होती है. 

डेन-4 से सबसे ज्यादा खतरनाक 

एडिस नामक मच्छर के काटने से होने वाले डेंगू के भी चार प्रकार होते हैं. स्वास्थ्य विभाग और महानगर पालिका केवल डेंगू पॉजिटिव और निगेटिव की जांच करती है. जबकि अन्य प्रकारों की जांच की सुविधा उपलब्ध ही नहीं है. मेयो के सुष्मजीवशास्त्र विभाग की ओर से डेंगू के टाइप डेन-१, डेन-२, डेन-3 और डेन-४ प्रकार के 100 मरीजों के सिरोटाइप नमूने पुणे की प्रयोगशाला में भेजे गेये हैं. प्राय: डेंगू में डेन-१ और डेन -3 मरीज अधिक मिलते हैं. जबकि डेन-२ और डेन-४ यह वायरल स्ट्रेन है. इसका मतबल यह है कि यह प्रकार सबसे अधिक प्राण घातक होता है. इसे ‘ब्रेक बोन फीवर’ भी कहा जाता है. टाइप-१ में सामान्य तौर पर जुकाम होता है. टाइप-२ में शॉक सहित रक्तस्राव होता है. टाइप-3 में शॉक रहित जुकाम आता है. टाइप-४ जानलेवा होता है. 

दोबारा डेंगू हो सकता है जानलेवा

स्वास्थ्य विभाग मलेरिया के सेवानिवृत सहसंचालक डॉ.मिलिंद गणवीर बताते हैं कि डेंगू से स्वस्थ होने वाले व्यक्ति को यदि दोबारा डेंगू होता है तो बेहद खतरनाक होता है क्योंकि दूसरी दफा जुकाम के विषाणु पहले बार होने वाले जुकाम से तैयार होने वाली एंटीबॉडिज से संयोग करते हैं. इसके दुष्परिणाम जानलेवा होते हैं. इसमें रक्त से प्लाज्मा कम होने लगता है रक्तदाब भी कम होता है. पेट और छाती में भारी भरता है. वहीं कई मरीजों में लीवर, कीडनी को नुकसान पहुंचता है.

उपचार में देरी

मरीजों का तुरंत जांच हो जाये तो उपचार में आसानी हो जाती है लेकिन डेंगू के अन्य टाइप की जांच की सुविधा नागपुर में नहीं है. नमूने पुणे की प्रयोगशाला भेजे जाते हैं. रिपोर्ट आने तक समय लगता है. ऐसे में मरीज की हालत तेजी से बिगड़ती जाती है. विदर्भ में हर वर्ष डेंगू कहर बरपाता है इसके बाजूद प्रशासन द्वारा तैयारी नहीं की जाती. जिससे मरीजों को मानसिक और आर्थिक रूप से परेशानी झेलना पड़ता है.