Protest of doctors at JJ Hospital in Mumbai
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    नागपुर. राज्यभर के शासकीय वैद्यकीय महाविद्यालय व अस्पतालों के करीब 4,000 मेडिकल टीचर्स द्वारा स्वास्थ्य सेवा का बहिष्कार किए जाने से व्यवस्था चरमरा गई है. निर्धन व जरूरतमंद मरीजों को उचित उपचार नहीं मिल रहा है. इंटर्न और निवासी डॉक्टरों के भरोसे सेवा चलाई जा रही हैं. वैद्यकीय शिक्षा मंत्री से चर्चा के बाद लिखित आश्वासन मिलने की उम्मीद थी लेकिन 48 घंटे बीतने के बाद भी कोई हल नहीं निकल सका. चौथे दिन भी ऑपरेशन पर ब्रेक लगा रहा. मेडिकल, मेयो और सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल में 4  दिनों में 1,000 से अधिक ऑपरेशन नहीं हो सके. 

    वैद्यकीय शिक्षा मंत्री ने वैद्यकीय संचालक डॉ. दिलीप म्हैसेकर को लिखित आश्वासन देने के निर्देश दिए थे. गुरुवार की शाम तक महाराष्ट्र मेडिकल टीचर्स एसोसिएशन के पदाधिकारियों के हाथ में आश्वासन की कापी नहीं पहुंची. यही वजह है कि मेडिकल टीचर्स आंदोलन वापस लेने को तैयार नहीं हैं. वरिष्ठ डॉक्टर नहीं होने से निवासी डॉक्टरों को भी इलाज में दिक्कतें आ रही हैं. बिना विशेषज्ञों के ऑपरेशन नहीं किए जा सकते. पिछले 4 दिनों से ऑपरेशन थियेटर भी बंद पड़े हैं.

    निर्धन मरीजों के पास कोई विकल्प नहीं 

    सरकारी अस्पतालों में निर्धन व जरूरतमंद मरीज अधिक आते हैं. वहीं कई गंभीर मरीजों के तत्काल ऑपरेशन की आवश्यकता होती है. जिन मरीजों को 4 दिन पहले ऑपरेशन की तारीख दी गई थी उनके तो बुरे हाल हो गये हैं. दर्द और वेदना सहन करना भारी साबित हो रहा है. मरीजों के साथ ही उनके परिजनों की भी मुश्किलें बढ़ गई हैं. बाहर से आने वाले मरीजों के लिए एक-एक दिन निकालना मुश्किल हो रहा है. स्थिति यह हो गई है कि कई मरीजों की तबीयत गंभीर होती जा रही है. निर्धन मरीज निजी अस्पतालों में भी नहीं जा सकते. यही वजह है कि अब उनके सामने इंतजार के अलावा कोई पर्याय नहीं रह गया है. मरीजों का कहना है कि अपनी मांगों के लिए आंदोलन करना ठीक है लेकिन इस तरह मरीजों को उनके हाल पर छोड़ देना कहां तक उचित है.