nit, Nagpur

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    • 19 एकड़ जमीन का है मसला
    • 71 करोड़ का चूना लगाने के है आरोप

    नागपुर. प्रन्यास की ओर से खेती के लिए दी गई जमीन पर लेआउट तैयार कर 71 करोड़ का चूना लगाए जाने का मामला पुलिस में दर्ज किया गया. शुरुआती दौर में बिल्डर सहित कुछ अन्य लोगों के खिलाफ भले ही मामला दर्ज किया गया हो, किंतु भूमाफियाओं के साथ अब प्रन्यास के कुछ अधिकारियों का नाम जुड़ने से इन पर जल्द ही आंच आने की संभावना सूत्रों ने जताई. उल्लेखनीय है कि वाठोड़ा स्थित चांदमारी में प्रन्यास की 19.10 एकड़ जमीन है. पांड्या तेली नामक किसान इसका मूल मालिक था. ड्रेनेज एवं सीवरेज डिस्पोजल स्कीम के तहत प्रन्यास ने वर्ष 1953 में इसका अधिग्रहण किया. लेकिन लंबे समय तक योजना साकार नहीं हो सकी. जिससे वर्ष 1969 में प्रन्यास ने यह जमीन महिपत शेंदरे, गजानन शेंदरे, सारजाबाई बावनकर को खेती के लिए लीज पर दी. इसे लेकर प्रन्यास ने एग्रीमेंट भी किया. 

    फिर सुर्खियों में आया धर्मदास रामानी

    उल्लेखनीय है कि चंद्रकांत शेंदरे, कमलेश शेंदरे, मंदा शेंदरे और प्रेमचंद शेंदरे की मदद से जमीन अपने नाम होने के फर्जी दस्तावेज तैयार किए. बिल्डर धर्मदास रामानी, शेख मेहमूद और मुकुंद व्यास को आमुख्त्यार पत्र बनाकर जमीन बेच दी. जिसके बाद इन तीनों ने जमीन पर प्लॉट डालकर इसे बेच दिया. अब तक इस जमीन पर लगभग 400 मकान तैयार हो चूके हैं. केवल कुछ ही प्लॉट रिक्त पड़े हैं. ओपन प्लॉट को लेकर कुछ विवाद होने से मामला पुलिस के पास पहुंचा. पुलिस ने कई बार प्रन्यास को सूचना देकर मसला हल करने का अनुरोध किया. किंतु अधिकारियों ने इसे नजरअंदाज कर दिया. प्रन्यास की जमीन होने के बावजूद प्रन्यास के अधिकारियों ने कानों पर हाथ रख लिए. मामला अधिक बिगड़ जाने के कारण पुलिस ने तो मामला दर्ज कर लिया, साथ ही पुलिस ने प्रन्यास की मदद से ओपन प्लॉट पर बने कुछ मकानों पर बुलडोजर चला दिया. 

    प्रन्यास की कार्यप्रणाली पर संदेह

    बताया जाता है कि पुलिस की ओर से कई बार प्रन्यास को पत्र भेजकर इस संदर्भ में वास्तविकता उजागर करने को कहा गया था. प्रन्यास के पास पूरे मामले के दस्तावेज होने के बाद भी पुलिस को सहयोग नहीं किया गया. सूत्रों के अनुसार इस जमीन में से कुछ हिस्सा अलग-अलग बिल्डरों को बेचा गया था. कई बार इसकी खरीदी-बिक्री हुई है. जिसमें प्रन्यास के अधिकारी के नाम भी लिए जा रहे हैं. पुलिस के अनुरोध के बावजूद प्रन्यास द्वारा पूरे मामले को नजरअंदाज किए जाने से प्रन्यास की कार्यप्रणाली पर संदेह जताया जा रहा है.

    जमीन का यूजर बदलने की कवायद

    सूत्रों के अनुसार उक्त जमीन सीवरेज डिस्पोजल स्कीम के तहत आरक्षित रही है. आरक्षित जमीन होने के कारण इस पर लेआउट या प्लॉट तैयार करना संभव नहीं था. जिससे इस जमीन का यूजर बदलने की भी कवायद की गई. अधिकारियों की मदद से ही इस तरह का कारनामा किया गया. उल्लेखनीय है कि इसी तरह का एक मामला हाई कोर्ट के विचाराधीन है. जिस पर हाई कोर्ट की ओर से एक कमेटी का गठन किया गया. कमेटी की ओर से आरक्षित जमीनों पर हुए निर्माण को लेकर जांच की जा रही है. एक ओर जांच चल रही है वहीं दूसरी ओर अब प्रन्यास का यह मामला उजागर होने से पूरा प्रशासन सकते में है.