नागपुर. कोरोना के संकटकाल में सतरंजीपुरा क्षेत्र के लोगों पर हुए अन्याय तथा प्रशासन को सहयोग किए जाने के बावजूद दायर की गई एफआईआर को लेकर सदन से न्याय मांगने के लिए कांग्रेस के पार्षद नितिन साठवने की ओर से स्थगन प्रस्ताव रखा गया. इस स्थगन प्रस्ताव पूरजोर ढंग से अपनी पार्टी के पार्षद का सहयोग करने की बजाए अब इसे वापस लेने के लिए विपक्षी नेता तानाजी वनवे की ओर से पार्षद पर दबाव बनाया जा रहा है. इस संदर्भ में विपक्ष नेता वनवे की ओर से पार्षद को पत्र भी जारी किया. जिसमें पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष का हवाला देकर अनुशासनात्मक कार्रवाई करने के संकेत भी दिए.
तो पहले क्यों नहीं किया आगाह
जानकारों के अनुसार 20 जून को मनपा की आम सभा का आयोजन किया गया. हालांकि मनपा आयुक्त के सभा से चले जाने के कारण सभा को स्थगित तो किया गया, लेकिन इसी सभा के पटल पर कांग्रेस के पार्षद साठवने और शिवसेना के पार्षद मंगला गवरे द्वारा रखे गए स्थगन प्रस्ताव को रखा गया था. इस सभा में कांग्रेस के पार्षद द्वारा स्थगन प्रस्ताव दिए जाने की भलीभांति जानकारी विपक्ष नेता को थी. लेकिन 2 दिन बाद 22 जून को पार्षद को पत्र जारी कर 23 जून की सभा में स्थगन प्रस्ताव सदन के विचारार्थ आने की जानकारी देते हुए इसे वापस लेने को कहा गया. यहां तक कि स्थगन प्रस्ताव पर प्रदेश अध्यक्ष थोरात द्वारा नाराजगी जताए जाने की जानकारी भी पार्षद को दी गई. जानकारों के अनुसार चूंकि 20 जून की सभा में स्वयं विपक्ष नेता वनवे भी उपस्थित थे. ऐेसे समय इसी दिन पार्षदों की बैठक लेकर इस संदर्भ में अलग से चर्चा कर स्थगन प्रस्ताव वापस लेने के संदर्भ में रणनीति बनाई जा सकती थी. लेकिन पार्षद को पहले आगाह नहीं किया गया.
प्रस्ताव वापस लेना जटिल
जानकारों के अनुसार मनपा की सभा के संचालन के लिए नियम निर्धारित है. यदि किसी पार्षद को स्थगन प्रस्ताव वापस लेना हो, तो उसके लिए पुख्ता कारण देना जरूरी है. शिवसेना पार्षद मंगला गवरे द्वारा स्थगन प्रस्ताव वापस लेने का पत्र दिया गया था. जिस पर सदन में कड़ी आपत्ति जताई गई थी. भाजपा के वरिष्ठ पार्षदों का मानना था कि संसदीय कार्यप्रणाली में इस तरह से सदन में प्रश्न उपस्थित करना और बाद में वापस लेने के संदर्भ में सदस्य पर संदेह जताया गया था. यहां तक कि मंगला गवरे सदन में नहीं होने के बावजूद दोनों प्रस्तावों को एकसाथ मंजूरी देकर चर्चा शुरू की गई.