नागपुर. रेलवे प्रशासन हाल ही में गोंदिया के पास ट्रेन हादसा होने के बावजूद सबक लेने के लिए तैयार नहीं है. दक्षिण-पूर्व-मध्य रेलवे के नागपुर डिवीजन में ट्रेन की तेज रफ्तार के कारण हादसा हुआ था. अधिकारियों का कहना था कि लोको पायलट ट्रेन की स्पीड को नियंत्रित नहीं कर पाया, जिसके कारण ट्रेन मालगाड़ी से टकरा गई. इस घटना के लिए जिम्मेदार 2 लोको पायलट को निलंबित भी कर दिया गया है. अभी इस घटना को एक हफ्ते भी नहीं बीता है कि बुधवार को सेंट्रल रेलवे के नागपुर डिवीजन ने नया फरमान जारी करते हुए राजधानी और दुरंतो ट्रेनों में चलने वाले 2 लोको पायलटों में से 1 लोको पायलट को हटा दिया.
नागपुर डिवीजन के अंतर्गत करीब 16 राजधानी और दुरंतो ट्रेनें संचालित होती हैं. ऐसे में एक साथ 16 लोको पायलट को कम कर दिया गया. इससे रेलवे कर्मचारियों में हड़कंप मच गया. रेलवे यूनियन के नेता इस आदेश के विरोध में उतर आए. वे लोग गुरुवार को वरिष्ठ मंडल विद्युत अभियंता (परिचालन) पवन जयंत से मिलकर आदेश को वापस लेने की मांग की.
अधिकारी का कहना था कि रेलवे बोर्ड के आदेश के अनुसार यह कटौती की गई है. परंतु यूनियन के नेता इसे यात्रियों की सुरक्षा से खिलवाड़ बता रहे थे. उनका कहना था कि इस मामले में फेडरेशन के नेताओं के साथ रेलवे बोर्ड के अधिकारियों की बातचीत चल रही है. इसलिए फिलहाल इस आदेश को लागू नहीं किया जाए. इसके बाद पवन जयंत ने आदेश को वापस ले लिया.
यात्रियों की सुरक्षा से खिलवाड़
सीआरएमएस के कार्यकारी अध्यक्ष वीरेंद्र सिंह ने बताया कि रेलवे के नियम के अनुसार 110 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाली राजधानी और दुरंतो ट्रेनों में 2 लोको पायलट की ड्यूटी लगाई जाती है. इनके स्टॉपेज काफी कम होते हैं, जिसके कारण करीब 500 किमी का सफर एक बार में तय करना होता है. इस दूरी को तय करने में करीब 6 घंटे लगते हैं. इनमें सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए डिवीजन के सबसे सीनियर लोको पायलट की ड्यूटी लगाई जाती है.
लोको पायलट की सुपर साइको टेस्ट होती है, जिसे पास करने के बाद ही उन्हें यह जिम्मेदारी सौंपी जाती है. उन्होंने कहा कि हाल ही में राजधानी और दुरंतो ट्रेनों को 130 किमी प्रति घंटे की स्पीड से चलाने का आदेश जारी किया गया है, दूसरी तरफ 1 लोको पायलट को हटाया जा रहा है. ऐसा करना संरक्षा और यात्रियों की सुरक्षा से खिलवाड़ करना है.
15 साल में बनता है लोको पायलट
रेलवे में असिस्टेंट लोको पायलट के पद पर बहाली होती है. इसके बाद मालगाड़ी लोको पायलट, फिर पैसेंजर लोको पायलट और अंत में मेल एक्सप्रेस ट्रेन का लोको पायलट बनने का गौरव प्राप्त होता है. यहां तक पहुंचने में कम से कम 15 साल का समय लगता है. इस दौरान कई तरह के प्रशिक्षण और लिखित परीक्षा को उत्तीर्ण करना पड़ता है. इसके अलावा 110 किमी प्रति घंटे की रफ्तार में चलने वाली ट्रेनों में तैनात होने के लिए मेडिकल का सुपर साइको टेस्ट पास करना आवश्यक होता है.
रेलवे के नए आदेश के अनुसार लोको पायलट की जगह असिस्टेंट लोको पायलट को जिम्मेदारी सौंपी जा रही है. रेलवे यूनियन के नेताओं का कहना है कि असिस्टेंट लोको पायलट प्रशिक्षित नहीं हैं और सुपर साइको टेस्ट पास भी नहीं हैं. ऐसे में प्रशिक्षित लोको पायलट की जगह अप्रशिक्षत असिस्टेंट लोको पायलट को नियुक्त करना पूरी तरह अनुचित है.