TRAIN
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    नागपुर. पिछले कई महीनों से ऐन त्योहार के समय रेलवे द्वारा बड़ी संख्या में आधारभूत निर्माण कार्य या ट्रैक मेंटेनेंस के नाम पर नियमित ट्रेनों को रद्द किया जा रहा है. हाल ही में नागपुर और पुणे रूट पर एक ही झटके में कई ट्रेनें रद्द कर दी गईं. अब इसी रूट पर दिवाली पूजा और छठ त्योहार का हवाला देते हुए स्पेशल ट्रेन की घोषणा की गई है. ऐसे में रेल यात्री संघ ने रेलवे की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाया है कि जिन ट्रेनों में लोगों ने महीनों पहले आरक्षण कराया, उन्हें रद्द कर स्पेशल ट्रेनें चलाना कितना सही है? इससे यात्री भ्रमित हो रहे हैं कि त्योहार मनाने घर जायें या नहीं क्योंकि न जाने कब ट्रेन रद्द हो जाये.

    …तो फिर नियमित ही क्यों की गईं ट्रेनें?

    रेल यात्री संघ के अध्यक्ष बृजभूषण शुक्ला ने कहा कि पिछले कई महीनों से रेलवे की कार्यप्रणाली यात्रियों की समझ से परे है. संभवत: देश के इतिहास में पहली बार ऐसा हो रहा है जब इतनी बड़ी संख्या में नियमित ट्रेनों को रद्द किया जा रहा है. हैरानी की बात है, ट्रेनों को रद्द करने की क्रोनोलॉजी है. हर बार ऐन त्योहार से पहले ही नॉन इंटरलॉकिंग काम शुरू होता है और प्रमुख रूटों की कई ट्रेनें एकाएक रद्द कर दी जाती हैं. वहीं स्पेशल ट्रेनों में यात्रियों से स्पेशल चार्ज के तौर पर किराया भी अधिक वसूला जाता है. यानी 90 प्रतिशत रिफंड प्राप्त यात्री को अब 10 से 15 प्रतिशत अधिक किराये में टिकट बुक करनी होती है. उसमें भी कन्फर्म टिकट मिले या नहीं, पता नहीं. सवाल यह है कि यदि रेलवे को स्पेशल ट्रेनें ही चलानी थीं तो फिर कोविड काल के बाद इन्हें नियमित ही क्यों किया गया? 

    यात्रियों की दुर्गति का जिम्मेदार है रेलवे

    शुक्ला ने आरोप लगाया कि इस प्रकार खचाखच भरी ट्रेनों में यात्रियों की दुर्गति की जिम्मेदार स्वयं रेलवे है. उन्होंने कहा कि एक ही रूट पर एक साथ कई ट्रेनें रद्द करने से बाकी बाकी रूटों पर चल रही ट्रेनों पर यात्रियों का दबाव बढ़ जाता है. 3 से 4 महीनों पहले रिजर्वेशन कराने वाले यात्रियों को यात्रा के कुछ दिन पहले पता चल रहा है कि उनकी ट्रेन रद्द कर दी गई है. ऐसे में यात्रियों को मजबूरन उपलब्ध ट्रेन या फिर अन्य रूट से चल रही ट्रेनों में सफर की मजबूरी हो जाती है. यानि पहले फुल चल रही ट्रेनों में यात्रियों की संख्या और बढ़ जाती है. इसी से यात्रियों की दुर्गति का अंदाजा लगाया जा सकता है क्योंकि कोच में पैर रखने तक को जगह नहीं मिलती.