नागपुर. मौजूदा अदालती फैसलों को देखते हुए न्यायिक व्यवस्था में भी आरक्षण की जरूरत महसूस की जाने लगी है. पूर्व मंत्री और एनसीपी नेता जितेंद्र आव्हाड़ ने बड़ा बयान देते हुए कहा कि बाबासाहब आंबेडकर ने न्यायपालिका में आरक्षण नहीं दिया था. इसे एक ‘चूक’ की तरह ही देखा जा सकता है.
वे मंगलवार को देशपांडे हॉल में बहुजन मंच की ओर से आयोजित सामाजिक न्याय सम्मेलन में बोल रहे थे. महाराष्ट्र में सत्ता संघर्ष और विधानसभा अध्यक्ष के हालिया फैसले की पृष्ठभूमि में आव्हाड़ के बयान को नये विवाद के रूप में देखा जा रहा है. लैटिन भाषा में आरक्षण शब्द का अर्थ सुरक्षा होता है. बाबासाहब ने आरक्षण देते समय देश के वंचितों और कमजोरों की सुरक्षा के बारे में सोचा लेकिन आरक्षण शब्द बोलते ही कुछ लोगों के पेट में दर्द होने लगता है. इस आरक्षण को ख़त्म करने के लिए ही निजीकरण की योजना बनाई गई है. बाबासाहब ने आरक्षण देते समय जाति का ध्यान नहीं रखा लेकिन इस देश का बहुजन समाज इस बात को समझने को तैयार नहीं है. संविधान की वजह से ही ओबीसी समुदाय को आरक्षण मिला है.
ओबीसी समुदाय की आबादी 50 फीसदी से ज्यादा है. हालांकि आरक्षण केवल 27 प्रतिशत ही दिया गया है. दरअसल इस अधिनियम के अस्तित्व में आने के बाद से ही ओबीसी को आरक्षण मिलने की उम्मीद थी लेकिन देश का एक वर्ग स्वयं आरक्षण के विरोध में है, इसलिए उन्होंने समितियों और आयोगों की नियुक्ति करके समय बर्बाद कर दिया. वीपी सिंह द्वारा मंडल कमीशन लागू करने के बाद ओबीसी को आरक्षण का लाभ मिला.
ओबीसी समुदाय हाल ही में बार काउंसिल में दिखना शुरू हुआ है. 70 साल तक न्यायपालिका की सत्ता पर कुछ खास लोगों का कब्जा रहा. ओबीसी आरक्षण के बाद अब बार काउंसिल और सरकारी नौकरियों में ओबीसी समुदाय के कर्मचारी आ रहे हैं. ओबीसी समाज को यह सीखने की जरूरत है कि संविधान ही उनकी सुरक्षा है.