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  • केदार ही करेंगे नाम फाइनल

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नागपुर. जिला परिषद के इतिहास में पहली बार उपाध्यक्ष पद किसी महिला को मिलने की पूरी संभावना बनती दिख रही है. यह कहा जाए कि यह पक्का ही है तो भी कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी क्योंकि ओबीसी सीटों की मान्यता रद्द होने के बाद हुए उप चुनाव से स्थितियां बदल गई हैं. हालांकि यह सब पशु संवर्धन मंत्री सुनील केदार पर है कि वे किसका नाम इस पद के लिए फाइनल करते हैं. दरअसल जिप को इस बार पहली महिला उपाध्यक्ष मिलने की संभावना इसलिए बलवती हो गई है क्योंकि इस पद पर केदार के बेहद करीबी समझे जाने वाले मनोहर कुंभारे बैठे थे. दुर्भाग्य से उनकी भी सीट ओबीसी मान्यता रद्द होने के चलते बलि चढ़ गई. इतना ही नहीं, महिला के लिए आरक्षित हो गई. पार्टी ने उनके साथ न्याय करते हुए उनकी पत्नी सुमित्रा कुंभारे को टिकट दी. वे चुनाव जीत भी गई हैं. इसलिए अब मनोहर कुंभारे की जगह उनकी पत्नी को उपाध्यक्ष बनाए जाने की चर्चा जोरों पर है. हालांकि 29 अक्टूबर को विशेष सभा में चुनाव होगा और तब यह क्लीयर हो जाएगा. 

1962 से केवल पुरुषों को मौका

वर्ष 1962 में जनपद की जगह जिला परिषदों का गठन किया गया था. तब से अब तक कांग्रेस और भाजपा और कई बार गठबंधन की सत्ता आई लेकिन किसी भी पार्टी ने महिला सदस्य को उपाध्यक्ष नहीं बनाया था. मतलब 1962 से लेकर 2020 में हुए चुनाव के बाद तक पुरुष सदस्य ही इस कुर्सी पर आसीन किए गए हैं. हां, अध्यक्ष पद पर जरूर महिलाओं को अवसर मिला है. पिछले 3 टर्म से तो महिला आरक्षण के चलते अध्यक्ष पद पर महिलाएं ही आसीन होती रही हैं. अभी भी रश्मि बर्वे ही अध्यक्ष हैं लेकिन अब उप चुनाव के बाद ऐसे हालात बने हैं कि उपाध्यक्ष पद पर भी महिला को काम करने का मौका मिलने वाला है. उपाध्यक्ष के पास सबसे महत्वपूर्ण स्वास्थ्य और बांधकाम विभाग के सभापति पद की भी जिम्मेदारी होती है. जिप के इतिहास में अब तक 16 उपाध्यक्ष हो चुके हैं और सभी पुरुष सदस्यों को ही इस पद की जिम्मेदारी मिली है, जबकि 6 बार महिला अध्यक्ष बन चुकी हैं और उन्होंने अपना कार्यकाल पूरी जिम्मेदारी से और सकारात्मक तरीके से निभाया भी है.  

अब तक जिन्होंने निभाई जिम्मेदारी

जिप के पहले उपाध्यक्ष पद पर एनडी दखने को बिठाया गया था. उसके बाद आरवी मेश्राम, डीजे कुंभलकर, डीएन रडके, सदानंद निमकर, बंडोपंत उमरकर, चरणसिंह ठाकुर, रमेश मानकर, शेषराव रहाटे, ज्ञानेश्वर साठवने, तापेश्वर वैद्य, नितिन राठी, चंद्रशेखर चिखले, शरद डोणेकर ने जिम्मेदार निभाई. उसके बाद मनोहर कुंभारे को उपाध्यक्ष बनाया गया लेकिन 4 मार्च को ओबीसी आरक्षण रद्द होने के चलते उनकी सदस्यता ही रद्द हो गई. अब उनकी पत्नी को भी उपाध्यक्ष पद की जिम्मेदारी की चर्चा चल रही है लेकिन फाइनल केदार ही करने वाले हैं. 

और भी चल रहे कुछ नाम

हालांकि उप चुनाव के बाद जो भी उपाध्यक्ष बनेगा उसका कार्यकाल 6-7 महीने का बचा हुआ है. हर ढाई वर्ष में कार्यकाल बदलता है. मनोहर कुंभारे को मान्यता रद्द होने के चलते अधिक कार्य करने का अवसर नहीं मिल पाया. अब जो उपाध्यक्ष बनेगा उसका कार्यकाल कुंभारे के पूरा किए गए अब तक के कार्यकाल में ही जुड़ेगा. यही कारण है कि इतने कम समय के लिए कोई दूसरा सदस्य इस पद पर बैठने की मानसिकता में भी नजर नहीं आ रहा है. फिर भी कुछ नाम चल रहे हैं जिनमें कुंदा राऊत, शांता कुमरे, नाना कंभाले, दूधराम सव्वालाखे, प्रकाश खापरे का समावेश है. अगर सुमित्रा कुंभारे को उपाध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपी गई तो जिप में केवल कृषि सभापति तापेश्वर वैद्य को छोड़कर सभी पदाधिकारी महिलाएं होंगी. यह भी जिप के इतिहास में पहला अवसर ही होगा.