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    नागपुर. करमरकर समिति की सिफारिश को लागू करने की मांग को लेकर करीब महीनेभर से मेडिकल कॉलेजों के प्राध्यापक आंदोलन कर रहे हैं. गुरुवार को वैद्यकीय शिक्षा व अनुसंधान विभाग के सचिव ने बैठक में आंदोलनकारी प्राध्यापकों को बर्खास्त करने की धमकी दे डाली. नाराज राज्यभर के प्राध्यापकों ने शुक्रवार को सामूहिक अवकाश आंदोलन का निर्णय लिया है. साथ ही महाराष्ट्र मेडिकल टीचर्स एसोसिएशन ने वैद्यकीय शिक्षा सचिव का निषेध किया है.

    करमकर समिति ने वैद्यकीय शिक्षकों के विविध भत्ते बढ़ाने सहित विविध शिफारशी की है. लेकिन सरकार द्वारा लागू नहीं की जा रही है. इससे राज्य के सभी मेडिकल कॉलेजों के प्राध्यापक, सहयोगी प्राध्यापक तथा सहायक प्राध्यापकों को आर्थिक नुकसान सहन करना पड़ रहा है. सरकार की इस नीति से नाराज प्राध्यापकों ने महीनेभर पहले ही स्नातकोत्तर के गाइड पद से इस्तीफा दे दिया. इस वजह से स्नातकोत्तर की क्लासेस बंद हो गईं.

    इस संबंध में महाराष्ट्र स्टेट मेडिकल टीचर्स एसोसिएशन के शिष्टमंडल ने गुरुवार को वैद्यकीय विभाग के सचिव से मुलाकात की. इस दौरान सचिव के साथ अपनी मांगों पर चर्चा भी की. यह बैठक पूर्व निर्धारित थी और बाकायदा समय लिया गया था.

    अशासकीय भाषा का प्रयोग

    बैठक के दौरान सचिव ने संगठन के सदस्यों को अपमानित कर अशासकीय भाषा का प्रयोग किया. कोरोना योद्धा के रूप में सम्मानित डॉक्टरों को बर्खास्त करने की धमकी दे डाली. इस घटना का राज्यभर के मेडिकल कॉलेजों के प्राध्यापकों ने विरोध किया है. प्राध्यापकों की प्रमुख मांगों में एम्स की तरह ही व्यवसाय रोध भत्ता देने, एम्स की तर्ज पर स्नातकोत्तर व शैक्षणिक भत्ता देने, जोखिम भत्ता बढ़ाने आदि का समावेश है.

    मरीजों के इलाज से लेकर अध्यापन तक का कार्य प्राध्यापक करते हैं. केंद्र व राज्य के प्राध्यापकों के वेतन में अंतर बना हुआ है. इसे दूर किया जाना चाहिए. आज भी प्राध्यापक विविध भत्तों से वंचित हैं. करमरकर समिति सरकार ने गठित की थी लेकिन सिफारिशों को लागू क्यों नहीं किया जा रहा है. अधिकारियों द्वारा अपमानजनक व्यवहार किया जाना निंदनीय है.

    – डॉ. समीर गोलावार, सचिव, राज्य वैद्यकीय शिक्षक संगठन