प्रतिकारात्मक  तस्वीर
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    नाशिक : कोरोना महामारी (Corona Pandemic) के दौरान मरीजों (Patients) से खुलेआम लूट की कई घटनाओं के उदाहरण देखने और सुनने को मिले। अब इससे एक कदम आगे की घटना नाशिक में देखने को मिली है। अपने कर्तव्य पर तैनात पुलिस कर्मी (Police Personnel) को दिल का दौरा पड़ने के कारण उसे नाशिक शहर के एक निजी अस्पताल (Private Hospital) में भर्ती किया गया था, लेकिन इलाज के दौरान पुलिस कर्मी ने दम तोड़ दिया। जिसके बाद अलग-अलग बहाने बनाकर केवल एक हस्ताक्षर (Signature) के लिए अस्पताल प्रशासन (Hospital Administration) ने 5 से 6 घंटे तक शव परिजनों के कब्जें में देने से इंकार किया। इसके चलते पुलिस कर्मियों में आक्रोश व्याप्त हो गया है।

    इस दौरान कई पुलिस अधिकारियों ने इसमें मध्यस्थता की, लेकिन अस्पताल प्रशासन ने विशेष पुलिस महानिरीक्षक के हस्ताक्षर की रट लगाई। इसके बाद कुछ सामाजिक कार्यकर्ता मौके पर पहुंचे। जहां जमकर विवाद हुआ। आखिरकार अस्पताल प्रशासन ने शव परिजनों के हवाले किया। इससे नागरिकों में आक्रोश व्याप्त रहा। जलगांव के हरि विठ्‌ठल नगर निवासी पुलिस कर्मी  श्रीराम रामदास वानखेडे (53) रावेर में बंदोबस्त पर तैनात थे। दरमियान सुबह के दौरान उन्हें दिल का दौरा पड़ा। तत्काल जलगांव के अस्पताल में भर्ती किया गया। प्राथमिक इलाज के बाद अतिरिक्त इलाज के लिए नाशिक शहर के एक निजी अस्पताल में भर्ती किया गया, लेकिन शनिवार की मध्यरात्री इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई। इस अस्पताल में मेडिक्लेम की सुविधा है, लेकिन वानखेडे को मृत घोषित करने से पूर्व अस्पताल प्रशासन ने लगभग 35 दस्तावेजों में परिजनों के हस्ताक्षर लिए। इसके बाद मौत होने की जानकारी दी, लेकिन, शव कब्जे में देने सें इंकार  किया।

    शव न देने का कारण

    असल में वानखेडे का मेडिक्लेम था, लेकिन उसे मंजूर करने के लिए नाशिक परिक्षेत्र के विशेष पुलिस उपमहानिरीक्षक के हस्ताक्षर की आवश्यकता थी। इसके बजाए दस्तावेज पूर्ण होने मुश्किल होने का दावा अस्पताल ने किया। साथ ही, जब तक हस्ताक्षर नहीं मिलते शव कब्जें में देने से इंकार किया गया। अब, मध्यरात्री विशेष पुलिस उप महानिरीक्षक को मौके पर कैसे बुलाए इसका कोई मार्ग नहीं मिल रहा था। इसलिए अनेक पुलिस अधिकारियों ने अस्पताल को सुबह कार्यालय शुरू होने के बाद हस्ताक्षर लाकर देने का आश्वासन दिया, लेकिन अस्पताल प्रशासन कुछ भी सुनने के लिए तैयार नहीं था। दरमियान इसकी जानकारी सामाजिक कार्यकर्ताओं को मिलने के बाद वह मौके पर पहुंचे। जमकर बहस हुई। इसके बाद अस्पताल प्रशासन ने शव वानखेड़े परिवार को सौंपा। इस घटना से पुलिस कर्मियों में व्यापक आक्रोश व्याप्त हो गया था।