condition of the roads of Diva is pathetic

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    ठाणे. ठाणे महानगरपालिका (Thane Municipal Corporation) का एक हिस्सा दिवा (Diva) भी है, लेकिन यहां पर आज भी मूलभूत सुविधाओं (Basic Facilities) की कमी का सामना यहां के रहिवासी करते नजर आ रहे है। आलम यह है कि यहां के नागरिक आज भी कच्ची सड़कों (Roads) पर चलने के लिए मजूबर है। इतना ही नहीं जो भी सड़कें है उनकी हालात अत्यंत दयनीय बनी हुई है। पिछले चार सालों से शिवसेना (Shiv Sena) की सत्ता है और यहां पर आठ नगरसेवक भी इसी दल के है, लेकिन अब तक सड़कों की स्थिति न सुधारने को लेकर अब सत्तापक्ष शिवसेना पर भी प्रश्न उठने लगा है। 

    ठाणे महानगरपालिका की सीमा में आने वाले दिवा के मुख्य रास्ते जैसे साबे गांव रास्ता, दिवा आगासन रास्ता, मुंब्रा देवी कालोनी जैसे सड़कों की पिछले चार वर्षों में मरम्मत तक है किया गया है। इन सड़कों पर इतने धूल उड़ते हैं कि आम लोगों का आना-जाना दूभर हो गया है, लेकिन मनपा प्रशासन अब तक यहां के रहिवासियों को अच्छी सड़कें नहीं दे पाई है। ऐसा आरोप यहां के रहिवासी लगा रहे है। 

    नहीं कर पा रहे मूलभूत सुविधाओं को पूरा

    दिवा निवासी अर्जुन उपाध्याय का कहना है कि मनपा में यहां से चार नगरसेवक प्रतिनिधित्व करते है, लेकिन दिवा की हालत नहीं सुधार पा रहे है। ऐसे में इन नगरसेवकों का यह नकारापन सामने आ रहा है। सत्ता पक्ष में होने के बावजूद मूलभूत सुविधाओं को पूरा न करने के लिए मनपा के अधिकारी भी बराबर के जिम्मेदार है। 

    दिवा के  रहिवासियों के साथ अन्याय : नीलेश पाटिल 

    भाजपा के ठाणे उपाध्यक्ष और दिवा निवासी नीलेश पाटिल ने दिवा शहर की सड़कों की दुर्दशा के लिए सत्ताधारी शिवसेना के नगरसेवकों को जिम्मेदार ठहराया है। पाटिल का कहना है कि यहां पर पिछले चार सालों से शिवसेना के आठ नगरसेवक क्रमशः रमाकांत मढ़वी, शैलेश पाटिल, सुनीता गणेश मुंडे, अंकिता पाटिल और अमर ब्रह्मा पाटिल आदि प्रतिनिधित्व करते है, लेकिन ये आठों नगरसेवक मनपा में सत्ता में रहने के बावजूद दिवा का विकास करने में असफल रहे है। उपर्युक्त सड़कों का समय पर काम पूरा न होने और नियोजन का अभाव के कारण आम दिवा वासियों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। इसके लिए सत्ताधारी का गलत नियोजन जिम्मेदार है। साथ ही नीलेश पाटिल ने जल्द ही सड़कों की स्थिति को सुधारने की मांग की है और चेतावनी दी है कि यदि जल्द ही सड़कों के निर्माण की गति को बढ़ाया जाए नहीं तो उन्हें आंदोलन करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।