फिर बजेगी चुनावी बिगुल, जिले की चार महानगरपालिकाओं में होगा चुनाव

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    ठाणे: प्रशासनिक शासन के साये में चार महानगरपालिकाओं (Four Municipalities) का कामकाज चल रहा है। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने राज्य के महानगरपालिकाओं और नगर पालिकाओं का चुनाव (Elections) दो महीने के भीतर कराने का आदेश दिया है। इससे अब जिले के चार महानगरपालिकाओं ठाणे (Thane), कल्याण-डोंबिवली (Kalyan-Dombivli), उल्हासनगर (Ulhasnagar) और नवी मुंबई (Navi Mumbai) में जल्द ही आम चुनाव का बिगुल बज सकता है। हालांकि राज्य चुनाव आयोग (State Election Commission) का अब तक इस संदर्भ में कोई निर्णय नहीं आया है। लेकिन इसके बावजूद एक बार फिर सभी राजनीतिक दलों (Political Parties) समेत ‘इच्छुक’ (Keen) उम्मीदवारों की चुनाव लड़ने की उम्मीद फिर जाग गई है। 

    गौरतलब है कि वैश्विक कोरोना महामारी के चलते कल्याण-डोंबिवली और नवी मुंबई महानगरपालिका का चुनाव पहली बार टाला गया। इसलिए वहां पिछले ढाई साल से प्रशासनिक शासन शुरू है। उसके बाद, कोरोना के प्रभाव में कम होने के बाद ठाणे जिले का सबसे बड़ा ठाणे महानगरपालिका का चुनाव फरवरी 2022 में निर्धारित समय में होने की उम्मीद थी और चुनाव कार्यक्रम की घोषणा ने संकेत दिया गया था लेकिन पहले चार की जगह तीन सदस्यीय पैनल के गठन को लेकर भी विवाद हुआ था। लेकिन सदस्यीय प्रभाग संरचना की गई। लेकिन इसी बीच चुनाव ओबीसी आरक्षण के बिना होने की भनक लगते ही राज्य सरकार ने कड़ा रुख अपनाया और कैबिनेट में निर्णय लेकर चुनावों को स्थगित कर दिया। नतीजतन, कल्याण-डोंबिवली, नवी मुंबई, ठाणे और उल्हासनगर महानगरपालिका के प्रभाग संरचना को रद्द कर दिया और नए सिरे से प्रभाग संरचना करने और प्रभागों को आरक्षित करने का आदेश दिया गया था। ऐसे में पिछले दो महीनों से प्रशासनिक शासन लागू है। वहीं, राज्य सरकार ने पहले चुनाव के लिए दिसंबर 2022 तक की अवधि मांगी थी। लेकिन कोर्ट ने इंकार कर दिया था और फिर सरकार ने मानसून को एक अवधि मांगा था उसे भी इनकार कर दिया था। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य चुनाव आयोग को दो सप्ताह के भीतर महानगरपालिका चुनाव घोषित करने का निर्देश देते हुए कहा है कि समय सीमा नहीं बढ़ाई जा सकती। हालाँकि कोर्ट के इस आदेश को लेकर महानगरपालिका प्रशासन का कोई भी अधिकारी कुछ भी बोलने से बचता नजर आ रहा है। लेकिन कोर्ट के इस आदेश पर राजनीतिक दलों के नेताओं अलग-अलग प्रतिक्रिया व्यक्त की है। 

    ‘सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब गेंद राज्य चुनाव आयोग के पाले में है। यदि चुनाव होता है तो इसके राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी तैयार है, लेकिन इससे पहले ओबीसी आरक्षण के संदर्भ में उचित निर्णय लिया जाना चाहिए। क्योंकि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी हमेशा ओबीसी के साथ खड़ी है और यदि बिना ओबीसी आरक्षण के चुनाव होता है तो यह ओबीसी समुदाय के साथ अन्याय होगा।’ : आनंद परांजपे (अध्यक्ष राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, ठाणे)

    ‘महाविकास आघाडी सरकार की भूमिका थी कि बिना ओबीसी आरक्षण के चुनाव न कराया जाए, लेकिन यदि अब सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव दो महीने के भीतर कराने का निर्देश चुनाव आयोग को दिया है। ऐसे में अब निर्णय राज्य चुनाव आयोग को लेना है, रही बात पार्टी की तैयारी की तो शिवसेना पार्टी 80 फीसदी समाज सेवा और 20 फीसदी राजनीति के तहत 24 घंटे काम करती है। इसलिए पार्टी चुनाव के लिए पूरी तरह सज्ज है।’ : नरेश म्हस्के (शिवसेना जिला प्रमुख, ठाणे)   

    ‘सरकार ने कोर्ट में अपना पक्ष सही तरीके से नहीं रखा। जिसके कारण एक बार फिर महाविकास आघाडी को मुंह की खानी पड़ी है। मेरा मानना है कि बिना ओबीसी आरक्षण के चुनाव न कराए जाए। लेकिन इसके बावजूद यदि चुनाव आयोग निर्णय लेता है तो स्वागत है। बीजेपी एक संगठन बेस पार्टी है और पार्टी प्रत्येक घर-घर तक पहुँच चुकी है। इसलिए वह चुनाव के लिए तैयार है।’ : निरंजन डावखरे (अध्यक्ष-ठाणे बीजेपी इकाई) 

    ‘सुप्रीम कोर्ट के आदेश से राज्य सरकार को डरना नहीं चाहिए उसे फिर ओबीसी आरक्षण के संदर्भ में रिव्यू पिटीशन दाखिल करना चाहिए और केंद्र और अर्जी सरकार को छह महीने का समय मांगना चाहिए। क्योंकि यदि बिना ओबीसी आरक्षण के एक बार चुनाव आयोग ने चुनाव करा दिया तो हमेशा के लिए ओबीसी आरक्षण खत्म हो जाएगा। ऐसे में ओबीसी के साथ अन्याय होगा। साथ ही केंद्र सरकार को अपनी भूमिका स्पष्ट करनी चाहिए और उसे ओबीसी के संदर्भ में कैबिनेट में एक अध्यादेश निकालना चाहिए। वैसे पार्टी कभी भी और किसी भी चुनाव के लिए तैयार है।’ : विक्रांत चव्हाण (अध्यक्ष-ठाणे कांग्रेस)