अवसर विशेष: बापू ने सेवाग्राम में बिताए थे 12 साल, गांधी के जीवन दर्शन को समझने के लिए यह स्थान परिपूर्ण है

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    वर्धा. अपनी जिंदगी में महात्मा गांधी देशभर में घूम-घूम कर अहिंसा का पाठ पढ़ाते रहे, लेकिन उनकी जिंदगी के 12 साल सेवाग्राम आश्रम में बीते थे. महात्मा गांधी की कर्मभूमि कहे जाने वाला वर्धा जिले का सेवाग्राम आश्रम अपने आप में एक अनोखी जगह है़ जहां आकर आत्मशांति और गांधी दर्शन की अच्छी जानकारी मिलती है़  सेवाग्राम आश्रम गांधी के जीवन दर्शन को समझने के लिए पर्याप्त है. ये वही पावन भूमि है जहां से गांधी ने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष का नेतृत्व किया था और अंग्रेजी सरकार की जड़ों को उखाड़ने का काम किया था. 1930 में महात्मा गांधी गुजरात के साबरमती आश्रम से दांडी यात्रा पर निकले.

    यात्रा पर निकलने से पहले उन्होंने प्रण लिया कि जब तक आजादी नहीं मिलेगी तब तक मैं साबरमती आश्रम वापस नहीं आऊंगा. दांडी यात्रा के दौरान ब्रिटिश हुकूमत द्वारा गांधी को गिरफ्तार करके येरवाडा जेल में कैद कर दिया गया. जेल से निकलने के बाद गांधी हरिजन यात्रा पर निकल गए, क्योंकि आजादी नहीं मिली थी इसलिए वह वापस साबरमती आश्रम नहीं जा सके. 1934 में देश के जाने माने व्यवसायी जमनालाल बजाज से गांधी को वर्धा आने का प्रस्ताव मिला. और गांधी वर्धा में आए. वर्धा आने के बाद डेढ़ साल तक वें मगनवाड़ी में रहे. उसके बाद 1936 में सेवाग्राम आश्रम की स्थापना की. आश्रम की स्थापना के समय यहां केवल एक कुटी थी, जिसे आदि निवास के नाम से जाना जाता था, लेकिन आवश्यकता के अनुसार इस आश्रम में कुटियों की संख्या बढ़ती चली गयी.

    ‘आदि निवास’ सबसे पहली कुटी

    आदि निवास इस आश्रम की सबसे पहली कुटी है, जिसे गांधी ने स्थानीय लोगों की मदद से बनवाया था. ऐसी कुटी में गांधी अपने साथियों के साथ रहते थे. वर्तमान में इस आश्रम में गांधी के उपयोग की वस्तुएं रखी हैं, जिसमें उनके नहाने का टब और रसोईघर है. बापू अपना लेखन, पठन पाठन, चिंतन और सूत कताई का काम करते थे.

    बा-कुटी व बापू कुटी

    बा-कुटी को कस्तूरबा गांधी की कुटी भी कहते हैं. शुरुआत में कस्तूरबा महात्मा गांधी के ही साथ आदि निवास में रहती थी, लेकिन इसमें हमेशा लोगों का आना जाना लगा रहता था. इसलिए उनको नहाने और सोने के लिए असहजता होती थी. तदुपरान्त जमनालाल बजाज ने गांधी की अनुमति से कस्तूरबा के लिए एक अलग से कुटी बनवाई. वर्तमान में इस कुटी में कस्तूरबा के उपयोग की वस्तुएं रखी है. आश्रम में जैसे-जैसे भीड़ बढ़ती गयी वैसे-वैसे कुटियों की संख्या भी बढ़ती गयी. बापू कुटी इस आश्रम की सबसे आकर्षण वाली कुटी है. इसमें उनके सहयोगी राजकुमारी अमृत कौर, प्यारे लाल जैसे लोग साथ रहते थे. इस कुटी में बापू के बिस्तर, पढ़ने के लिए गीता, बाइबिल और कुरान उपलब्ध है. 

    आखरी निवास, बजाज ने स्वयं के लिये बनाया 

    आखरी निवास कुटी जमनालाल बजाज ने अपने रहने हेतु बनवाई थी, लेकिन वर्धा में रुकने के बाद उनका व्यापार घाटे में जाने लगा तब वो वहां से चले गए. उस समय गांधी को अस्थमा की बीमारी हुई. डाक्टर ने गांधी को किसी ऊंचे स्थान पर सोने के लिए कहा. आखरी निवास उस आश्रम की सबसे ऊंची कुटी थी. इसलिए गांधी उसी में रहने लगे. देश के विभाजन के समय बंगाल के नोआखाली में साम्प्रदायिक दंगे भड़के हुए थे. गांधी अंतिम बार इस कुटी से बंगाल के लिए रवाना हुए और फिर कभी वापस नहीं आ सके.