बोरी खुर्द में कब बनेंगी स्मशानभूमी; वनविभाग के जंगलों में होता है शवों पर अंतीम संस्कार

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    • वनविभाग की कारवाई की तलवार टंगी रहती है तलवार

    मारेगांव. देश को स्वतंत्रता मिलने के 7 दशक गुजर गए, लेकिन तहसील के बोरी खुर्द गांव में आज भी स्मशानभूमी नही बन पायी है. जिससे गांववासीयों को छिपछिपाकर अपने परिजनों के शवों पर वनविभाग के जंगलों में अंतीम संस्कार करना पडता है.अंतीम संस्कार करते हुए गांववासीयों को सतर्कता बरतनी पडती है.

    क्योंकी जंगल में आग लगने पर वनविभाग की कारवाई की तलवार हमेशा टंगी रहती है.जिससे इस गांव के लिए आखिरकार स्मशानभूमी कब बनेंगी, एैसा सवाल नागरिकों द्वारा उठाया जा रहा है.तहसील से केवल 5 किमी.दूरी पर बोरी खुर्द गांव बसा है. जिसकी जनसंख्या 600 है. यह बांव राजनितीक लिहाज से काफी उपेक्षीत होने के अलावा गांव की अनेक समस्याएं है.

    राजनितीक दलों के नेता चुनावों के दौर में यहां आकर वायदों की खैरात बांटकर चले जाते है, यह वास्तविकता है.हर वर्ष गांववासीयों कों भीषण जलसंकट का सामना भी करना पडता है. इसके अलावा यहां पर अनेक समस्याएं है. बोरी खुर्द में आज तक स्मशानभूमी न होने से शवों पर अंतीम संस्कार कैसें करें यह प्रश्न गांव में कीसी की मौत के बाद हर गांववासी के सामने हमेशा रहता है.

    गांव को स्मशानभूमि मिलें इसके लिए 40 बरसों से प्रशासन और जनप्रतिनिधीयों कों ज्ञापन और आवेदन दिए जा रहे है, लेकिन आज तक गांववासीयों को स्मशानभूमी की जगह आश्वासन ही मिल पाया. इस समस्या के कारण गांववासी को निकट के वनविभाग के जंगलों में कारवाई के डर के साए में और लुकछिपकर अंतीम संस्कार निबटाते है.

    जहां पर अंतीम संस्कार होते है, वहां पर सागौन के जंगल है, जिससे आग लगने से पेड नष्ट होने का डर होता है. वनविभाग के कर्मचारी आए दिन कारवाई का गांववासीयों को डर दिखाते है.आग की दुर्घटना होने पर उसका क्या परिणाम होंगा, यह डर भी गांववासीयों को सताता है. जिससे गांव में आखिरकार स्मशानभूमी कब बनेंगी. इसे लेकर गांववासी अब प्रशासन से सवाल कर रहे है.जिसका जवाब मारेगांव तहसील प्रशासन को देना होंगा.