Yavatmal Temple

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  • देवस्थान को तीर्थक्षेत्र का दर्जा देने की उठ रही मांग

आर्णी. तहसील के भानसरा से अंजनखेड रास्ते पर स्थित मांगुल मारोती देवस्थान को वनविभाग ने वनपर्यटन घोषित करते हुए श्रद्धालुओं के लिए शाम के समय देवस्थान के कपाटों को बंद कर दिया है. जिसके चलते श्रद्धालुओं में नाराजगी देखने को मिल रही है. इन दिनों देवस्थान को तीर्थक्षेत्र का दर्जा देने की मांग श्रद्धालुओं  द्वारा की जाने लगी है.

तहसील के भानसरा से अंजनखेड रास्ते पर मांगुल को उजाड गांव के रूप में पहचाना जाता है. यह गांव जंगल क्षेत्र में आने से उसका पुर्नवास किया गया है. उक्त गांव के गावठान क्षेत्र के परिक्षेत्र में 12 शिवा का मारोती मंदिर है. यहां के मारोती देवस्थान का दर्शन लेने के लिए प्रत्येक शनिवार को श्रद्धालु आते है. कुछ साल पहले उक्त गावठाण मंदिर कमेटी के कब्जे में था. इसीलिए बाहरी जिले के श्रद्धालु सुबह आरती करने के लिए मौजूद रहने की दृष्टी से रात में ही रुकने के उद्देश्य से पहुंचते है. यह गावठाण खुला होने से सुबह 7 बजे के दौरान देवस्थान के पुजारी शामराव महाराज सातपुते भी पहुंचते है.

सातपुते बीते 65 वर्षों से हनुमान मंदिर में अविरत सेवा दे रहे है. उनकी भक्ती वनक्षेत्र के उजाड गांव में वन बंदित रहनेवाले परिसर के मारोती मंदिर को देखकर अनेक श्रद्धालु यहां तल्लीन हो जाते है. महाराज ने वन परिक्षेत्र में अकेले रहकर ध्यान समाधि लेकर हनुमानजी की आराधना की. उक्त खाली जमीन का उपयोग वहां पर दुलर्भ वन औषधि युक्त पौंधे लगाकर उनका जतन किया. इसीलिए जिले में ही नहीं  तो बाहरी जिले के श्रद्धालु प्रत्येक शनिवार को मंदिर व महाराज के दर्शन के लिए आते है.

लेकिन वनविभाग ने गावठाण को वनपर्यटन क्षेत्र घोषित कर तार का कम्पाउंड बनाकर मंदिर सहित गावठाण परिसर को कैद कर लिया. इसीलिए शाम 6 बजे मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं को रूकने की अनुमति नहीं रहने से श्रद्धालुओं को वापस लौटना पड रहा है. उक्त परिसर को वनविभाग ने दो गेट भी जोड दिए है. दोनों गेट तालाबंद रहने से श्रद्धालुओं को परेशान होना पड रहा है. इसीलिए प्रशासन ने उक्त गावठाण को वनपर्यटन ना करते हुए तीर्थक्षेत्र घोषित करने की मांग सैंकडों श्रद्धालुओं ने उठायी है.

बीते 21 सालों से मंदिर में दर्शन के लिए निरंतर आ रहे है. कोरोना से दो साल तक हनुमान जन्मोत्सव खंडित हुआ था. लेकिन गुरुवार को हनुमान जन्मोत्सव पर सैंकडों की तादाद में शामिल हुए. वनविभाग श्रद्धालुओं पर यदि बंधन लादने का प्रयास कर रही है. जिसे सहन नहीं किया जाएगा. इसीलिए प्रशासन ने श्रद्धालुओं के लिए मंदिर शुरू करने के संबंध में योग्य पहल करनी चाहिए.

(विजय बाबर, शिवाजी वार्ड- पुसद)

बीते 1986 से अविरत मंदिर परिसर में दर्शन के लिए आ रहे है. महाराज ने परिसर में खुदाई काम कर कुंए का निर्माणकार्य किया. इससे पूर्व भी रात बेरात में मंदिर परिसर में कभी भी आराधना करने के लिए आते थे. लेकिन यहां पर वनपर्यटन घोषित होने से श्रद्धालुओं पर बंधन लाद दिए गए. इसीलिए श्रद्धालुओं का जमावडा कम हो गया. इसीलिए यहां पर वनपर्यटन ना बनाते हुए तीर्थक्षेत्र प्रशासन ने घोषित करना चाहिए.

(भाऊसाहेब माणिकराव देशमुख, बान्सी- पुसद)

श्रद्धालुओं पर वनविभाग ने जो बंधन लादे है, वह पूरी तरह से गलत है. नामस्मरण के लिए आनेवाले श्रद्धालु कभी भी भगवान से मिलने के लिए आ सकते है. लेकिन वनविभाग ने पर्यटन व मंदिर को बंदिस्त कर दिया है. जिससे श्रद्धालुओं में नाराजगी देखने को मिल रही है.

(मुरलीधर वंजे, वसमत- हिंगोली)