Governor inaugurates Tribal and Regional Language Museum of Kolhan University through video conferencing

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    ओमप्रकाश मिश्र 

    रांची. राज्यपाल (Governor) रमेश बैस (Ramesh Bais) ने विडियो कॉन्फ्रेंसिंग (Video Conferencing) के माध्यम से आज कोल्हान विश्वविद्यालय (Kolhan University) के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा संग्रहालय का विधिवत उद्घाटन किया। इस अवसर पर उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि प्राकृतिक एवं विभिन्न खनिज संपदा (Natural and Various Mineral Wealth) से परिपूर्ण इस क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के जनजाति प्राचीन काल से निवास करते आ रहे हैं। उनकी कला, संस्कृति, लोक साहित्य, परंपरा एवं रीति-रिवाज  अत्यंत समृद्ध है और इसकी विश्व स्तर पर पहचान है। यहां की जनजातीय गीत एवं नृत्य बहुत मनमोहक है। जनजातीय समुदाय  प्रकृति प्रेमी होते हैं। इसकी झलक उनके पर्व-त्यौहारों में भी दिखती है। 

    राज्यपाल ने कहा कि विभिन्न अवसरों पर देखा जाता है कि इनके गायन और नृत्य इनके समुदाय तक ही सीमित नहीं है, बल्कि औरों को भी उस पर झूमने पर मजबूर कर देती है। यह प्रसन्नता का विषय है कि कोल्हान क्षेत्र में निवास करने वाले जनजाति समाज के साथ-साथ अन्य समुदाय के लोग आरंभ से ही प्रकृति प्रेमी रहे हैं। प्रकृति ईश्वर की सबसे अनुपम देन है। इसके साथ चलने और इसे बचाये रखने से ही हम मनुष्य भी बचे रह सकते हैं। आदिवासी समाज की चेतना में प्रकृति के साथ घनिष्टता की भावना एक विराट जीवन दृष्टि की प्रतीक है।

    मुंडारी की भी पढ़ाई होती है

    उन्होंने कहा कि मुझे यह जानकर प्रसन्नता हो रही है कि इस क्षेत्र की भाषा एवं संस्कृति की महत्व को देखते हुए वर्ष 2011 में विश्वविद्यालय द्वारा जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग नाम से एक अलग स्वतंत्र विभाग की स्थापना की गई है जिसके अर्न्तगत वर्तमान स्नातकोत्तर स्तर में तीन भाषाएँ हो, संथाली एवं कुड़माली की पढ़ाई होती है और स्नातक स्तर में विभिन्न अंगीभूत महाविद्यालयों में हो, संथाली एवं कुड़माली के अलावा कुड़ुख एवं मुंडारी की भी पढ़ाई होती है।

    उपकरणों को संरक्षित करना अत्यंत आवश्यक 

    आदिवासी भाषा, साहित्य और संस्कृति का व्यवस्थित अध्ययन के साथ-साथ इनसे जुड़े तमाम उपकरणों को संरक्षित करना अत्यंत आवश्यक है। प्रसन्नता है कि इसी कड़ी में जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग द्वारा यहां की परम्परागत भाषा एवं संस्कृति को संरक्षित एवं इसे बढ़ावा देने के लिए एक संग्रहालय की स्थापना की गई है।

    संथाली एवं कुड़माली में लिखी गई

    उन्होंने यह भी कहा कि मुझे अवगत कराया गया कि संग्रहालय में प्रयुक्त सभी समानों का नाम अपनी-अपनी भाषा हो, संथाली एवं कुड़माली में लिखी गई है। इसकी स्थापना में जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के शिक्षकों एवं विद्यार्थियों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। मैं उन सभी शिक्षकों एवं विद्यार्थियों को बधाई और शुभकामनाएं देता हूं।

    वोकल फॉर लोकल

    हमारे समाज के लोगों में भिन्न-भिन्न प्रकार की कला निहित है, वे विभिन्न कलाकृतियों में निपुण हैं। चाहे वह बाँस या मिट्टी से  बनी सामग्री हो या हस्तकरघा, वे हर क्षेत्र में दक्ष हैं। प्रधानमंत्री  नरेन्द्र मोदी ने उनकी विशिष्ट कलाकृति को देखते हुए “वोकल फॉर लोकल” का आह्वान किया है। मैं आप सभी से आह्वान करता हूं कि आपलोग इस मुहिम में जुटे तथा समाज एवं राष्ट्र के सशक्तिकरण में अपनी सक्रिय भूमिका अदा करें।

    राज्यपाल ने कला को व्यवसाय से जोड़ते हुए कहा कि यहाँ के व्यक्तियों को कौशल विकास से जोड़कर उनका सामाजिक एवं आर्थिक उन्नयन किया जा सकता है। इसके साथ ही  लघु एवं कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहित करने की दिशा में भी कार्य किया जा सकता है । जनजातियों की मौलिक सांस्कृतिक आधार को समझने के लिए उनके द्वारा हस्त-निर्मित वस्तुओं को संग्रह करना चाहिए। उनकी कला-संस्कृति को संरक्षण प्रदान तथा उसका प्रचार-प्रसार करना करना हम सभी का दायित्व होना चाहिए।

    अपने संबोधन के अंत में उन्होंने कहा कि इस अवसर पर मैं यह भी कहना चाहूँगा कि अधिक-से-अधिक युवा उच्च शिक्षा प्राप्त करें, आपके विश्वविद्यालय का ऐसा प्रयास हो। साथ ही हमारे शिक्षण संस्थान गुणात्मक शिक्षा प्रदान करने की दिशा में सदैव समर्पित रहे। सर्वत्र ज्ञान का माहौल हो, हमें ऐसा प्रयास करना चाहिए।