Gyanvapi case
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इलाहाबाद. ज्ञानवापी मस्जिद मामले (Gyanvapi Mosque Case) में मुस्लिम पक्ष (Muslim Side) को करारा झटका लगा है। इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने बुधवार को वाराणसी में ज्ञानवापी परिसर में श्रृंगार गौरी की नियमित पूजा-अर्चना के लिए दायर याचिका की पोषणीयता के खिलाफ अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद द्वारा दायर याचिका खारिज कर दी है। पिछले साल दिसंबर में जस्टिस जेजे मुनीर की बेंच ने दोनों पक्षों के वकीलों को विस्तार से सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

मस्जिद परिसर में हिंदू देवी देवताओं की पूजा की मांग थी

गौरतलब है कि पांच हिंदू महिलाओं ने बनारस की एक कोर्ट में याचिका दायर कर मस्जिद परिसर में मौजूद हिंदू देवी देवताओं की पूजा का अधिकार की मांग की थी। महिलाओं ने खासतौर पर श्रृंगार गौरी की हर दिन पूजा करने की इजाजत मांगी थी। महिलाओं का कहना था कि 1993 तक मस्जिद में मौजूद मां श्रंगार गौरी, भगवान गणेश और अन्य देवी देवताओं की पूजा का अधिकार हिंदुओं को था। लेकिन 1993 के बाद से इसे साल में एक दिन तक सीमित कर दिया गया। हालांकि, मुस्लिम पक्ष ने हिंदू महिलाओं की तरफ से दायर सूट की मेंटेनबिलिटी को लेकर याचिका दायर की थी। उनका कहना था कि अदालत इसे स्वीकार न करे।

मुस्लिम पक्ष का विरोध

ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करने वाली अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद ने हिंदू पक्ष के दावे का यह कहते हुए विरोध किया था कि निचली अदालत में यह वाद, पूजा स्थल कानून, 1991 के तहत पोषणीय नहीं है जोकि यह व्यवस्था देता है कि 15 अगस्त, 1947 को मौजूद किसी भी धार्मिक स्थल के परिवर्तन की मांग करते हुए कोई वाद दायर नहीं किया जा सकता।

वाराणसी के जिला जज ने 12 सितंबर, 2022 को एआईएम की वह दलील खारिज कर दी थी जिसमें पांच हिंदू वादकारियों द्वारा दायर मुकदमे की पोषणीयता को चुनौती दी गई थी। जिला जज ने कहा था कि पांच हिंदू महिलाओं द्वारा दायर वाद पूजा स्थल कानून, 1991, वक्फ कानून, 1995 और यूपी श्री काशी विश्वनाथ मंदिर अधिनियम, 1983 के प्रावधानों के दायरे में नहीं आता।

याचिकाकर्ता के वकील एसएफए नकवी ने अदालत में दलील दी थी कि हिंदू पक्ष का यह दावा कि उन्हें 1993 में ज्ञानवापी की बाहरी दीवार पर श्रृंगार गौरी और अन्य देवी देवताओं की पूजा करने से रोक दिया गया था, एक कृत्रिम दावा है और तत्कालीन राज्य सरकार द्वारा 1993 में लिखित में ऐसा कोई आदेश पारित नहीं किया गया था। उन्होंने यह दलील भी दी थी वह स्थान जहां ज्ञानवापी मस्जिद स्थित है, वह वक्फ की संपत्ति है। इसलिए किसी भी शिकायत के मामले में वक्फ ट्राइब्यूनल के समक्ष दावा पेश किया जाना चाहिए।

हिंदू देवी देवताओं की मौजूदगी प्रदर्शित

वहीं हिंदू पक्ष के वकीलों ने अपनी दलील में कहा कि पुराने नक्शों में ज्ञानवापी मस्जिद पर हिंदू देवी देवताओं की मौजूदगी प्रदर्शित होती है और हिंदू भक्त लंबे समय से श्रृंगार गौरी और अन्य देवी देवताओं की पूजा अर्चना कर रहे थे। उन्होंने दावा किया कि वर्ष 1993 में तत्कालीन सरकार ने नियमित पूजा पर रोक लगा दी और भक्तों को महीने में केवल एक बार पूजा करने की अनुमति दी गई। इसलिए, वर्ष 1991 का कानून इन पर लागू नहीं होता। उन्होंने यह भी कहा कि इसके अलावा, विवादित स्थान वक्फ की संपत्ति नहीं है।

HC का ऐतिहासिक फैसला, यह हिंदू पक्ष की बड़ी जीत

हिंदू पक्ष का प्रतिनिधित्व कर रहे विष्णु शंकर जैन ने कोर्ट के फैसले को ऐतिहासिक बताया है। उन्होंने कहा, “यह एक ऐतिहासिक फैसला है। कोर्ट ने साफ कहा है कि अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी की याचिका पोषणीय नहीं है और इसे खारिज कर दिया।”

वाराणसी में हिंदू पक्ष का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील सुभाष नंदन चतुर्वेदी ने कहा, “यह हिंदू पक्ष की बड़ी जीत है। हम अंजुमन इंतजामिया मस्जिद समिति द्वारा दायर आदेश 7 नियम सीपीसी याचिका को खारिज करने के अदालत के फैसले का स्वागत करते हैं, जिसमें ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर पूजा करने के अधिकार की मांग करने वाली पांच हिंदू महिला उपासकों के मुकदमे की स्थिरता को चुनौती दी गई थी।”

कोई बड़ी जीत नहीं: मुस्लिम पक्ष

उधर, ज्ञानवापी मामले में मुस्लिम पक्ष का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील मोहम्मद तौहीद खान ने इस हाई कोर्ट के फैसले को हिंदू पक्ष के लिए कोई बड़ी जीत नहीं होने की बात कही है।  उन्होंने कहा, “यह (हिंदू पक्ष के लिए) कोई बड़ी जीत नहीं है क्योंकि अदालत ने अंजुमन इंतजामिया मस्जिद समिति द्वारा दायर आदेश 7 नियम सीपीसी याचिका पर ही फैसला सुनाया। हम पुनर्विचार याचिका दाखिल कर सकते हैं और सुप्रीम कोर्ट भी जा सकते हैं। आदेश पढ़ने के बाद आगे की कार्रवाई तय की जाएगी।” (एजेंसी इनपुट के साथ)