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    -राजेश मिश्र

    लखनऊ : देश में सर्वाधिक धान (Paddy) का उत्पादन करने वाले सूबे उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में कमजोर मानसून (Monsoon) ने किसानों (Farmers) के माथे पर चिंता की रेखाएं गहरी कर दी हैं। पूरा जुलाई और अगस्त का पहला हफ्ता बीत जाने के बाद भी अभी प्रदेश में 25 से 30 फीसदी रकबे में धान की बोआई (Sowing) नहीं की जा सकी है। सिंचाई और मानसून के सहारे बोआई कर लेने वाले किसानों के सामने फसल बचाने का संकट है तो मक्का काट कर लेट वैराइटी धान की फसल लगाने वालों के सामने खेत खाली रखने की मजबूरी खड़ी हो सकती है। 

    उत्तर प्रदेश में धान का कटोरा कहे जाने वाले जिलों गोंडा, बहराइच, मऊ, बस्ती, संतकबीरनगर, श्रावस्ती और बलिया में सामान्य से 40 फीसदी बारिश ही हुयी है। सरकार का कहना है कि प्रदेश के 19 जिलों में सामान्य से 40 फीसदी कम तो 30 जिलों में 40 से 60 फीसदी बारिश हुयी है। प्रदेश में केवल 16 जिलों में ही सामान्य के मुकाबले 60 से 80 फीसदी बारिश हुयी है। पानी की अधिकता वाले धान, मैंथा की फसलों के लिए मशहूर रामपुर जिले में तो सामान्य के मुकाबले महज 18 फीसदी बारिश ही हुयी है। 

    खरीफ की बुवाई का लक्ष्य 96.03 लाख हेक्टेयर

    मौसम विभाग के आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में एक जून से लेकर 30 जुलाई तक केवल 170 मिलीमीटर बारिश हुयी जो कि सामान्य स्तर 342.8 मिलीमीटर का करीब 50 फीसदी ही है। कृषि विभाग के अधिकारियों के मुताबिक इस बार उत्तर प्रदेश में 96.03 लाख हेक्टेयर खरीफ की बोआई का लक्ष्य रखा गया था। किसानों को बीते साल मिली अच्छी कीमतों के उपजे उत्साह के चलते माना जा रहा था कि बोआई लक्ष्य के पार 100 लाख हेक्टेयर तक जा सकती है। हालांकि अभी तक 81.49 लाख हेक्टेयर में ही बोआई हुयी है। यह लक्ष्य का 85 फीसदी है। इसमें भी धान की बोआई का रकबा 60 लाख हेक्टेयर अनुमानित था जिसके मुकाबले अभी लगभग 70 फीसदी बोआई हो सकी है। प्रदेश सरकार का कहना है कि अभी बोआई की चाल सुस्त जरुर है पर यह तोजी पकड़ रही है और सीजन खत्म होने तक धान की बोआई लक्ष्य के 90 फीसदी तक जा सकती है। 

    कृषि वैज्ञानिक डा. सुशील कुमार सिंह बताते है कि बोआई पिछड़ी है तो इसका उत्पादन पर भी असर होगा। इस बार तो कमजोर मानसून के चलते आधा जुलाई बीत जाने पर भी प्रदेश में धान के कुल संभावित रकबे के एक चौथाई में भी बोआई का काम पूरा नहीं हो सका था। उनका कहना है कि अगर मानसून इसी तरह प्रदेश से रूठा रहा तो जरुर रबी की फसल कमजोर हो जाएगी। धान की अगैती प्रजाति की खेती करने वाले किसानों को नुकसान हो ही चुका है हालांकि उनकी तादाद उत्तर प्रदेश में बहुत ज्यादा नहीं है। प्रदेश के बड़े हिस्सों में किसान मक्के की फसल लेने के बाद धान की खेती करते हैं। 

    कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि सिंचाई की सुविधा के साथ जिन किसानों ने जुलाई में ही बोआई पूरी कर ली थी उनके सामने तापमान ने दिक्कत खड़ी कर दी।  सावन शुरु होने के बावजूद प्रदेश के ज्यादातर जिलों का तापमान जुलाई के आखिरी के दो हफ्तों में 40 डिग्री के आसपास पहुंच गया था जो फसल के लिए नुकसानदायक है। बंगाल की खाड़ी से बहने वाली पुरवा हवाओं के चलते सिंचाई कर धान की रोपाई करने वालों के खेत भी जल्दी सूख रहे हैं। 

    नर्सरी से धान की रोपाई में 40 से 50 दिन का समय लग

    विशेषज्ञों का कहना है कि जून में हुयी आंशिक बारिश और सिंचाई के सहारे तमाम किसानों ने धान की नर्सरी तो लगा ली पर बाद में उन्हें रोपाई के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं मिला। आमतौर पर नर्सरी लगाने के बाद धान की रोपाई 25 से 30 दिन के भीतर कर ली जाती है। रोपाई में देरी होने पर धान की फसल पर इसका असर होता और उत्पादन कम हो जाता है। इस बार बारिश कम होने के चलते नर्सरी से धान की रोपाई करने में 40 से 50 दिन का समय लगा है, जिसके चलते उत्पादन भी प्रभावित होगा। 

    मानसून ने मक्का और अरहर जैसी फसलों को भी प्रभावित किया

    हालांकि किसानों का कहना है कि बोआई के लक्ष्य के करीब पहुंचने से ज्यादा बड़ा संकट फसल को बचाने का है। बलरामपुर जिले के उन्नत किसान कर्ण सिंह का कहना है कि बोआई के तुरंत बाद कुछ दिन और फिर पकने के समय ज्यादा बारिश की जरुरत होती है। अभी जो हालात हैं उसमें बोआई के बाद फसल को बचाना मुश्किल है और आगे का कोई भरोसा नहीं है। सिंह कहते हैं कमजोर मानसून का असर अकेले धान पर ही नहीं बल्कि मक्का और अरहर जैसी फसलों पर भी हुआ है। खासकर मक्के की बालियां तो अंकुर फूटने के बाद सूख गयी हैं। अरहर में दाने पड़ रहे थे और पानी न मिलने से वो भी सूख रहे हैं।