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म्यूनिख: कम आय वाले समुदायों के लोग शहरों में गर्मी का किस तरह सामना कर रहे हैं, ये तरीके भविष्य में प्रचंड गर्मी से परेशान नागरिकों के अनुसरण के लिए उदाहरण स्थापित कर सकते हैं। जैसे-जैसे दुनिया के शहर गर्म हो रहे हैं, प्राधिकारें और सरकारें अक्सर लोगों को घर के अंदर रहने या बिजली के पंखे या एयर कंडीशनर जैसे प्रशीतन प्रणाली का उपयोग करने के लिए कहती हैं। लेकिन आप इस सलाह का पालन कैसे करते हैं जब आपका घर स्क्रैप धातु और लकड़ी से बना होता है, बिजली तक आपकी पहुंच प्रति दिन लगभग चार घंटे होती है, या आपकी मामूली आय पहले से ही भोजन पर खर्च होती है और इसे ठंडा करने के लिए बढ़ाया नहीं जा सकता है? वर्ष 2050 तक, एक अरब से अधिक लोग, जिनमें धरती के कुछ सबसे गरीब हिस्सों में रहने वाले लोग भी शामिल हैं, अत्यधिक गर्मी का सामना कर सकते हैं, जैसा कि दर्ज मानव इतिहास में किसी ने भी नहीं किया है। 

 4,564 निवासियों पर किए गए सर्वेक्षण 

विशेषज्ञ, जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) से पूछ रहे हैं: ये आबादी कैसे अनुकूल होगी? कराची, जकार्ता, हैदराबाद और डौला में लोग कैसे गर्म परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं, इसका अध्ययन करके मानवविज्ञानी, भूगोलवेत्ताओं, इंजीनियरों, शहरी योजनाकारों, वास्तुकारों और महामारी विज्ञानियों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम कुछ जवाब जुटा रही है। इन शहरों में, बहुत से लोगों की गुणवत्तापूर्ण आवास, पानी, बिजली, आश्रय और शेड तक पहुंच नहीं होती। महामारी ने उन्हें और अधिक सीमित कर दिया, गर्मी से जुड़ी बीमारियों के अलावा ठंड के मौसम के दौरान बीमारियों से जूझने को वे मजबूर हुए। कम आय वाले 4,564 निवासियों पर किए गए एक सर्वेक्षण में केवल सात लोगों ने एयर कंडीशनिंग इकाई घर में होने या उपयोग करने की सूचना दी; और केवल 34% उत्तरदाताओं ने गर्मी होने पर प्राथमिक प्रशीतन विधि के रूप में बिजली के पंखे का इस्तेमाल करने की सूचना दी। सभी उत्तरदाताओं में से करीब 40% के पास प्रति दिन 12 घंटे से कम बिजली की उपलब्धता थी। पनी की भी कमी थी, जो कोविड-19 के दौरान और घट गई थी। गर्मी से संबंधित बीमारी के लक्षणों जैसे धुंधली दृष्टि का इससे करीबी जुड़ाव था। 

 ठंडा रखने के लिए ये रणनीतियां बेकार नहीं होती

इंडोनेशिया, पाकिस्तान, भारत और कैमरून में सर्वेक्षण किए गए उत्तरदाताओं में धातु की छत वाले लोगों की अन्य छत वाले लोगों की तुलना में गर्मी से बचने के लिए बाहर जाने की संभावना 43% अधिक थी। वे कैसे मुकाबला करते हैं, इस पर अगर नजर डालें तो वे भविष्य की प्रचंड गर्मी से निपटने के लिए उदाहरण स्थापित कर सकते हैं। जैसे कि वायु प्रवाह या वेंटिलेशन बढ़ाना, सड़क किनारे लगे पेड़ या फ्लाईओवर जैसे शहरी बुनियादी ढांचे वाली छायादार जगहों पर आश्रय लेना। अन्य अनौपचारिक रणनीतियों में पड़ोसियों या रिश्तेदारों के यहां चले जाना और उनके यहां से पानी की व्यवस्था करना शामिल है। इनमें से कई प्रथाएं शहर के प्राधिकारों या सरकारों द्वारा शहर में गर्मी से निपटने की योजनाओं में शायद ही कभी मौजूद होती हैं। ठंडा रखने के लिए ये रणनीतियां बेकार नहीं होती हैं। वे सामाजिक, सांस्कृतिक, तकनीकी और आर्थिक संरचनाओं की एक श्रृंखला द्वारा सक्षम हैं जो उन्हें संभव या स्वीकार्य बनाती हैं। उदाहरण के लिए, सांस्कृतिक मानदंडों और बाहर निकलने पर सुरक्षा चिंताओं के कारण अक्सर महिलाओं को छायादार और ठंडे सार्वजनिक स्थानों तक कम पहुंच होती है। कराची, जकार्ता, हैदराबाद और डौला में गर्मी बढ़ने पर पानी का उपयोग बहुत अलग तरीके से किया जाता है। पाकिस्तानी शहर कराची में स्नान करना सबसे आम रणनीति है (आबादी का लगभग पांचवां हिस्सा इस तरीके का इस्तेमाल करता है), जबकि संसाधन की उपलब्धता और अन्य सांस्कृतिक कारण भारत के शहर हैदराबाद में आबादी ने इस तरीके को आजमाने का उल्लेख नहीं किया। नीति निर्माता निम्न-आय वाले समुदायों में पहले से ही उपयोग की जा रही निम्न-तकनीकी, ऊर्जा-कुशल और जल-कुशल रणनीतियों की मदद ले रहे हैं।

बिजली की पहुंच बेहद जरूरी

जैसे कि इस पर विचार करना होगा कि पंखे से कब मदद मिल सकती है और पानी की कम मात्रा या बर्फ से घर या शरीर को ठंडा रखने में सहायता मिल सकती है। ऐसी धारणा है कि बिजली, पानी और आश्रय जैसी बुनियादी जरूरतें हमेशा उपलब्ध रहती हैं, यह ठीक नहीं है। अत्यधिक गर्मी के दौरान नीति का ध्यान केवल पानी, बिजली और आश्रय के आपातकालीन प्रावधान पर नहीं होना चाहिए। प्रचंड गर्मी कुछ समय की घटना नहीं है वैश्विक स्तर पर आबादी हर मौसम में पूरे वर्ष प्रभावित होती है। हर समय पानी, बिजली और आश्रय की उपलब्धता बेहद जरूरी है। बिजली की पहुंच बेहद जरूरी है। उदाहरण के लिए अनौपचारिक बिजली कनेक्शन (सीधे ग्रिड से आपूर्ति या आसपास की व्यवस्था के जरिए) ने कम आय समूहों में ऊर्जा प्रदान करने और गर्मी का असर घटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अवैध कनेक्शन’ के खिलाफ कार्रवाई पर जोर के बजाए प्राधिकारों को सामुदायिक कनेक्शन का समर्थन करना चाहिए जिससे आसान पहुंच के साथ सुरक्षा भी सुनिश्चित होती है।

2050 तक कई क्षेत्रों में ऐसे हालात नहीं होंगे

कम तकनीक वाले हस्तक्षेप जलवायु परिवर्तन के लिए असरदार नहीं हैं। किसी पेड़ की छाया, पंखों का उचित उपयोग, या घरों का बेहतर वेंटिलेशन तभी तक काम करता है जब तक कि बाहरी परिस्थितियां रहने योग्य रहती हैं। 2050 तक कई क्षेत्रों में ऐसे हालात नहीं होंगे। वर्तमान 1-1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा पर हम अभी भी वैश्विक स्तर पर गरीबों को गर्मी से बचा सकते हैं, लेकिन 2 डिग्री सेल्सियस पर ऐसा नहीं होगा, जब तापमान मानव शरीर के सहन करने के लिए बहुत अधिक हो जाएगा। 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रहने का मतलब है कि कम तकनीक वाले उपकरणों के काम करने की संभावना अधिक होती है। इससे ज्यादा तापमान पर उनकी प्रभावकारिता तेजी से घटती है। रोजमर्रा की रणनीतियों पर ध्यान देना अभी और भविष्य में अत्यधिक गर्मी से पैदा होने वाले स्वास्थ्य जोखिम को कम करने की बुनियाद है। हालांकि तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने से ही यह मुमकिन होगा। (एजेंसी)