नवी मुंबई. सेटेलाईट सिटी नवी मुंबई से सटे पनवेल के सैकड़ों गांव आजादी के 75 साल बाद भी पक्की सड़क की बाट जोह रहे हैं. गांव में बसने वालों के लिए पक्की सड़क आज भी एक सपना है. आजादी के पहले भी यहां कच्ची सड़कें थीं और आज भी यहां लोग कच्चे रोड पर चल रहे हैं. कुछेक गांवों तक पक्की सड़क जरूर पहुंची है लेकिन अधिकांश गांव इससे अछूते हैं. ऐसे में अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि इन गांवों तक कितना विकास पहुंचा है. आज यहां न पक्के मकान हैं और न ही शौचालय की सुविधा है. ऐसी हालत में संसाधनों के लिए ग्रामीण कैसे जद्दोजहद करते हैं, यह समझना कठिन नहीं है.
71 ग्रामपंचायतों में रोड की मुसीबत
रायगड़ के पुरातन पनवेल तहसील के कुछ शहरी इलाकों में पक्के रोड देखकर इस मुगालते में मत रहिए कि यहां विकास हो रहा है. अधकच्ची सड़कों पर लालपरी एसटी दौड़ती जरूर है लेकिन यहां के बस स्टॉफ के नाम पर एक लोहे का डंडा गड़ा रहता है जहां धूप और गर्मी में खड़े रहना ग्रामीणों की मजबूरी है.मिली जानकारी के अनुसार तहसील में 71 ग्राम पंचायते ऐसी हैं जिनके 210 गांवों में पक्की सड़क नहीं पहुंच सकी है. दलित और आदिवासी इलाकों का हाल इससे भी बुरा है. वहां पहुंचना अपने आप एक चुनौती है. देश भर में पीएम आवास योजना चल रही है लेकिन पनवेल के इन गांवों तक योजना की परछाई तक नहीं पहुंच पा रही है.इससे विकास की सच्चाई को आसानी से समझा जा सकता है.
वाकड़ी-दुंदुरे संपर्क मार्ग को मंजूरी
फिलहाल तमाम मांगों और शिकायतों के बाद मुख्यमंत्री सड़क परियोजना में वाकडी-शिवणसई-दुंदरे वाया रिटघर मार्ग को निर्मित करने की मंजूरी मिली है.15 वर्षों से इस गांव के लिए संपर्क सड़क की मांग की जा रही थी. इसके लिए पनवेल संघर्ष समिति के कांतिलाल कड़ू, जिप सदस्य शेखर शेलके एवं विलास फडके, पंचायत सभापति समेत तमाम नेता, विधायक प्रयास करते रहे हैं. पालकमंत्री अदिति तटकरे एवं सांसद श्रीरंग बारणे से भी शिकायत कर हस्तक्षेप की मांग की गयी थी. पक्की सड़कें बनाने का वादा चुनावी मुद्दा भी बनता रहा है. सच ये है कि एमएमआरडीए, पनवेल मनपा और जिलापरिषद प्रशासन किसी को भी इन गांवों की हालत की चिन्ता नहीं है. स्थानीय नागरिक सिर्फ सड़क ही नहीं बल्कि पीने का पानी, बिजली और चिकित्सा सेवाओं के लिए भी मोहताज हैं.