US Troops in Afghanistan: About 650 soldiers will be present even after the withdrawal of US Troops from Afghanistan, this is the reason...
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    वाशिंगटन: विशेषज्ञों (Experts) ने अमेरिका (America) और नाटो (NATO) के सैनिकों (Soldiers) को अफगानिस्तान (Afghanistan) से वापस बुलाये जाने के फैसले पर चिंता जताते हुए कहा है कि क्षेत्र में तालिबान (Taliban) का फिर से पांव पसारना और अफगानिस्तान की जमीन को आतंकवादियों (Terrorists) द्वारा पनाहगाह के रूप में इस्तेमाल किया जाना भारत (India) के लिए चिंता का विषय होगा। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन (Joe Biden) ने बुधवार को घोषणा की कि अफगानिस्तान में करीब दो दशक के बाद इस साल 11 सितंबर तक अफगानिस्तान से सभी अमेरिकी सैनिकों को वापस बुला लिया जायेगा।

    डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन में राष्ट्रपति की उपसलाहकार और 2017-2021 के लिए दक्षिण एवं मध्य एशिया मामलों में एनएससी की वरिष्ठ निदेशक रहीं लीज़ा कर्टिस ने ‘पीटीआई’ से कहा, ‘‘अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों को वापस बुलाये जाने से क्षेत्र के देश, तालिबान के फिर से उभरने से खासकर भारत को चिंता होगी।”

    कर्टिस ने कहा, ‘‘1990 के दशक में अफगानिस्तान में जब तालिबान का नियंत्रण था तब उसने अफगानिस्तान से धन उगाही के लिए आतंकवादियों को पनाह दी, उन्हें प्रशिक्षित किया तथा आतंकवादी संगठनों में उनकी भर्ती की। लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद समेत कई आतंकवादियों को भारत में 2001 में संसद पर आतंकवादी हमले को अंजाम देने जैसे हमलों के लिए प्रशिक्षित किया गया।”

    अमेरिका सरकार में 20 साल से अधिक सेवा दे चुकीं और विदेश नीति एवं राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों की विशेषज्ञ कर्टिस वर्तमान में सेंटर फॉर न्यू अमेरिकन सिक्योरिटी (सीएनएएस) थिंक-टैंक में हिंद-प्रशांत सुरक्षा कार्यक्रम की सीनियर फेलो और निदेशक हैं। उन्होंने कहा, ‘‘भारतीय अधिकारियों को दिसंबर 1999 में एक भारतीय विमान का अपहरण करने वाले आतंकवादियों और तालिबान के बीच करीबी गठजोड़ भी याद होगा। अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल भारत विरोधी आतंकवादी नहीं करें, यह सुनिश्चित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र के मौजूदा प्रयास की तर्ज पर देश में शांति एवं स्थिरता के लिए भारत क्षेत्रीय प्रयासों में अपनी भूमिका बढ़ा सकता है।”

    अमेरिका के लिए पाकिस्तान के पूर्व राजदूत और वर्तमान में हडसन इंस्टीट्यूट थिंक-टैंक में दक्षिण एवं मध्य एशिया मामलों के निदेशक हुसैन हक्कानी ने ‘पीटीआई’ से कहा, ‘‘तालिबान के कब्जे वाले क्षेत्र के फिर से आतंकवादियों के लिए पनाहगाह बनने से भारत चिंतित होगा।”

    उन्होंने कहा कि वास्तविक सवाल यह है कि क्या सैनिकों को वापस बुलाये जाने के बाद भी अमेरिका अफगानिस्तान सरकार को मदद जारी रखेगा ताकि वहां के लोग तालिबान का मुकाबला करने में सक्षम हों। तालिबान ने अब तक शांति प्रक्रिया में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है और दोहा में हुई वार्ताओं में उसने अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी की बात को ही दोहराया है।

    वाशिंगटन पोस्ट ने अपने संपादकीय में कहा है कि अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों को वापस बुलाने की बाइडन की योजना क्षेत्र के लिए घातक हो सकती है। वाशिंगटन पोस्ट ने कहा, ‘‘राष्ट्रपति बाइडन ने अफगानिस्तान से हटने का सबसे आसान तरीका चुना लेकिन इसके नतीजे खतरनाक हो सकते हैं।”

    ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने कहा कि लंबे समय तक आतंकवादी संगठनों पर रोक लगा पाना मुश्किल हो सकता है। ऐसा ही कुछ विचार वाल स्ट्रीट जर्नल ने भी प्रकाशित किया है। दोहा में अमेरका-तालिबान के बीच जिस समझौते पर हस्ताक्षर हुआ है उसके मुताबिक अमेरिका 14 महीने के भीतर अपने सैनिकों की वापसी पर सहमत हुआ है। (एजेंसी)