Indian and British scientists will study the effect of antibiotic in the India's rivers

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लंदन: विनिर्माण संयंत्रों से निकलने वाले एंटीबायोटिक का भारत की नदियों पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन करने के लिए भारतीय और ब्रिटिश विशेषज्ञ साथ मिलकर काम करेंगे। बर्मिंघम विश्वविद्यालय ने बृहस्पतिवार को यह जानकारी दी। विश्वविद्यालय ने कहा कि दोनों देशों के वैज्ञानिक, नदियों में गिरने वाले एंटीबायोटिक का संक्रामक रोगों के फैलने पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन करेंगे।

बर्मिंघम विश्वविद्यालय और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) हैदराबाद के विशेषज्ञों को अनुसंधान के लिए 12 लाख पाउंड के अतिरिक्त भारत से अनुदान दिया गया है। इस अनुसंधान से यह पता लगाया जाएगा कि भारत की नदियों में मौजूद एंटीबायोटिक का रोगाणुओं पर क्या प्रभाव पड़ता है।

परियोजना में शामिल बर्मिंघम विश्वविद्यालय के डॉ जान केफ्ट ने कहा, “हम नहीं जानते कि पर्यावरण में एंटीबायोटिक पदार्थ कितनी जल्दी नष्ट होते हैं और वर्षा के कारण और नदियों में जाकर कितना घुलते हैं। हमारी परियोजना में हम इसका पता लगाएंगे कि कारखानों से निकलने वाले एंटीबायोटिक का नदियों में मौजूद बैक्टीरिया पर क्या प्रभाव पड़ता है। हम इस पर अनुसंधान करेंगे कि एंटीबायोटिक नदियों के साथ कितनी दूर तक बहकर जाते हैं और बाढ़ आने पर उनका विस्तार कहां तक होता है। इससे हम यह जान पाएंगे कि जलाशयों में एंटीबायोटिक की कितनी मात्रा सुरक्षित और कितनी खतरनाक हो सकती है।” परियोजना के तहत भारतीय और ब्रिटिश विशेषज्ञ हैदराबाद की मुसी नदी और चेन्नई की अडयार नदी पर अनुसंधान करेंगे। (एजेंसी)