पर्यावरण रक्षा या जलवायु परिवर्तन जैसे अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दे पर समृद्ध पश्चिमी राष्ट्रों का दोहरा रवैया गहरी चिंता का विषय है. इनकी कथनी और करनी में जमीन-आसमान का फर्क है. स्काटलैंड के ग्लासगो शहर में जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन हो रहा है जिसमें प्रदूषण कम करने के उपायों तथा ग्लोबल वार्मिंग के खतरे जैसे गंभीर प्रश्नों पर चर्चा होगी.
दुनिया भर में इसे लेकर गहरी चिंता है कि कॉर्बन फूटप्रिंट कैसे कम किए जाएं, ग्रीन हाउस गैसेस के उत्सर्जन को किस प्रकार नियंत्रित किया जाए? आश्चर्य और दुख का विषय है कि पर्यावरण पर बात करने ग्लासगो पहुंचे अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के बहुत बड़े काफिले ने यूरोप दौरे में लगभग 1,00,000 टन कार्बन का उत्सर्जन किया है.
इससे तो अच्छा होता कि बाइडन वाशिंगटन में ही टिके रहते, कम से कम यूरोप में इतना भयंकर प्रदूषण तो नहीं फैलता! जब अमेरिकी राष्ट्रपति वेटिकन सिटी में पोप फ्रांसिस से मिलने पहुंचे तो उनके शाही काफिले में 85 से अधिक गाड़ियां थीं. जो बाइडन इटली और ब्रिटेन के दौरे में अपने आलीशान विमान एयरफोर्स वन के अलावा 3 और ट्रांसपोर्ट प्लेन भी ले गए हैं.
इनमें प्रेसीडेंट की कैडिलॉक द बीस्ट नामक बख्तरबंद कार है जो 1 लीटर पेट्रोल में सिर्फ 3 किलोमीटर चलती है. पोप से मिलने पहुंचे बाइडन के काफिले से 8.75 पाउंड कार्बन प्रति मील का उत्सर्जन हुआ. यह किसी भी औसत कार से 10 गुना ज्यादा कार्बन उत्सर्जन है. कारों के पूरे काफिले ने 7 किलोमीटर की यात्रा में 373 पाउंड कार्बन का उत्सर्जन किया. बाइडन के 4 विमानों से 2.16 मिलियन पाउंड कार्बन उत्सर्जन होगा.
बाकी उत्सर्जन उनके काफिले की गाड़ियों से होगा. आखिर यह क्या तमाशा है? पर्यावरण को स्वच्छ रखने, कार्बन उत्सर्जन पर रोक लगाने की चर्चाएं क्या हवा में हैं? अन्य देशों के नेता भी अपनी गाड़ियों के काफिले के साथ आएंगे, इससे पर्यावरण प्रदूषण और बढ़ेगा. फिर यह दिखावा किसलिए? क्यों नहीं वीडियो कान्फ्रेसिंग के जरिए ऐसे सम्मेलन कर लिए जाते? ऐसे सम्मेलनों में विकसित हो चुके समृद्ध राष्ट्र दुनिया के विकासशील देशों को सीख देते हैं कि कोयले पर आधारित उद्योग बंद करो, प्रदूषण मत फैलाओ! यह उनका दोहरा मापदंड है जो किसी पाखंड से कम नहीं है.