131 सिंचाई प्रकल्पों को नहीं मिल रही पर्याप्त निधि; विदर्भ का बैकलाग पूरा करने में उदासीनता

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    • 4,900 करोड़ का भेजा था प्रस्ताव
    • 2,500 करोड़ को ही मंजूरी
    • 5,800 करोड़ गोसीखुर्द को चाहिए
    • 1,000 करोड़ का ही किया प्रावधान

    नागपुर. विदर्भ के साथ पश्चिम महाराष्ट्र के नेता दशकों से भेदभाव करते ही आए हैं. अब 3 दलों की सरकार भी उसी राह पर चल रही है. मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने पिछले वर्ष गोसीखुर्द प्रकल्प का दौरा किया था और उन्होंने इस प्रोजेक्ट को 3 वर्ष में पूरा करने की घोषणा की थी. इसके लिए विभाग ने 5,800 करोड़ रुपयों की मांग का प्रस्ताव भेजा था, ताकि प्रकल्प की अधूरी और जरूरत की नहरों का निर्माण किया जा सके. लेकिन उपमुख्यमंत्री व वित्त मंत्री अजीत पवार ने गोसीखुर्द के लिए मात्र 1,000 करोड़ रुपयों का प्रावधान किया. विदर्भ में लगभग 131 लघु, मध्यम व बड़े सिंचाई प्रकल्प ऐसे हैं जिनके कार्य तो शुरू किए गए लेकिन निधि के अभाव में अब आधे-अधूरे ठप पड़े हैं.

    बीते वर्ष 2021-22 में इन सभी प्रकल्पों के कार्य के लिए 4,900 करोड़ रुपयों की मांग सिंचाई विभाग द्वारा की गई थी. उनमें से 2,500 करोड़ प्राप्त होने की जानकारी अधिकारियों ने दी है. हर वर्ष प्रकल्प की लागत बढ़ती ही जा रही है. गोसीखुर्द की लागत तो 380 करोड़ रुपयों से बढ़कर 18,500 करोड़ से भी ऊपर पहुंच गई है. बावजूद इसे पूरी निधि देकर तेजी से पूर्ण करने का कार्य नहीं किया जा रहा है. अधिकारियों का कहना है कि पूरी निधि मिल जाए तो तेज गति से कार्य किए जा सकते हैं.

    फिर मांगे 5,280 करोड़

    विभाग ने विदर्भ के गोसीखुर्द सहित 131 सिंचाई प्रकल्पों के लिए चालू वित्त वर्ष 2022-23 में और 5,280 करोड़ रुपयों की मांग का प्रस्ताव तैयार कर भेजा है. नागपुर करार के अनुसार तो सरकार की तिजोरी से 23 प्रतिशत निधि विदर्भ को हर बजट में मिलनी ही चाहिए लेकिन आज तक ऐसा नहीं हुआ. पश्चिम महाराष्ट्र के नेताओं वाली सरकारों ने विदर्भ के संसाधनों से अपने इलाकों को समृद्ध करने का कार्य किया. जब महाविकास आघाड़ी सरकार बनी और सीएम ठाकरे गोसीखुर्द पहुंचे तो ऐसा लगा था कि 3 वर्षों में इसे पूरा कर लिया जाएगा. उनके कार्यकाल को ढाई वर्ष तो हो ही गए हैं लेकिन कार्य जहां था वहीं अटका हुआ है. नहरों के कार्य पूर्ण होने पर विदर्भ के किसानों को खेतों में भरपूर पानी उपलब्ध हो पाएगा लेकिन किसानों की चिंता भी सरकार को नहीं है. 

    विदर्भवादियों में रोष

    विदर्भवादियों में सरकार के इस रवैये पर भारी रोष है. उनका कहना है कि पश्चिम महाराष्ट्र के नेताओं की मानसिकता पर कोई भी राज्यपाल नियंत्रण नहीं लगा पाए जिसके कारण ही विदर्भ आज नैसर्गिक संसाधनों के होते हुए भी पिछड़ा है. सिंचाई का अभाव, नैसर्गिक आपदा के चलते करीब 40,000 से अधिक विदर्भ के किसान अब तक सुसाइड कर चुके हैं. विदर्भ के किसानों को पर्याप्त बिजली तक नहीं दी जा रही है. राज्यपाल को चाहिए कि वे सरकार को विदर्भ का सारा बैकलाग पूरा करने का निर्देश दें.