सरकार के उपेक्षापूर्ण रवैये के कारण ही संसद में भड़ास निकालता है विपक्ष

    Loading

    संसदीय लोकतंत्र में जितना सत्तापक्ष का महत्व है, उतना ही विपक्ष का भी है. सरकार में इतनी सहिष्णुता होनी चाहिए कि वह विपक्षी सदस्यों द्वारा उठाए गए मुद्दों को ध्यान से सुने, स्वस्थ बहस का पूरा अवसर दे और तत्पश्चात जनहित में निर्णय ले. विपक्ष की उपेक्षा करना, उसकी मांग व सुझावों पर ध्यान नहीं देना और मनमाने तौर पर एकांगी फैसले करने की सरकार की नीति लोकतंत्र में कदापि सुसंगत नहीं है. ताली दोनों हाथों से बजती है. यदि सरकार का रवैया कुछ उदार हो और वह विपक्ष से उचित व्यवहार करे तो फिर विपक्ष भी संयत आचरण करेगा. यह देखा गया है कि जबसे केंद्र में भारी बहुमत वाली मोदी सरकार बनी है, तब से प्रधानमंत्री और अन्य मंत्रीगण विपक्ष के आमने-सामने नहीं आते. प्रश्नों की अनसुनी करते हैं और समस्याओं पर जवाब नहीं देते. ऐसे में विपक्ष अपने मन की भड़ास संसद में नहीं तो और कहां निकाले?

    नए मंत्रियों का परिचय नहीं करा पाए

    प्रधानमंत्री मोदी इस बात से खिन्न हैं कि वे मंत्रिमंडल विस्तार के बाद नए मंत्रियों का परिचय संसद में नहीं करवा पाए. नियमानुसार वे परिचय कराना चाहते थे लेकिन विपक्ष के भारी हंगामे की वजह से ऐसा कर पाने में असमर्थ रहे. पीएम ने नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि बड़ी तादाद में किसान, दलित, पिछड़े व आदिवासी समुदाय के साथी और महिलाएं मंत्री बने हैं लेकिन विपक्ष को यह रास नहीं आ रहा है. यदि उनका स्वागत होता तो सबको खुशी होती लेकिन यह बात विपक्ष को हजम नहीं हो रही है, इसलिए वह उनका परिचय नहीं होने दे रहे हैं. वास्तव में हुआ यह कि कांग्रेस, एनसीपी, शिवसेना, टीएमसी, बसपा, अकाली दल सहित विपक्षी पार्टियों ने देश में बेतहाशा बढ़ रही महंगाई तथा केंद्र सरकार के 3 कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसानों के आंदोलन के मुद्दे पर चर्चा के लिए नोटिस दिया था, जिसे लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला और राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू ने मंजूरी नहीं दी. ऐसे में विपक्ष की नाराजगी स्वाभाविक थी. सदन में ज्वलंत मुद्दों पर बहस नहीं कराने से क्षुब्ध विपक्षी दलों के सदस्यों ने सदन के अंदर व बाहर जोरदार नारेबाजी की.

    एकपक्षीय निर्णय लेने की प्रवृत्ति

    यह समझ पाना कठिन है कि सरकार विपक्ष और देश की जनता के प्रति अपने उत्तरदायित्व के प्रति गंभीर क्यों नहीं है? विपक्ष के सदस्य भी अपने चुनाव क्षेत्रों की जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं. उन्हें अपनी बात रखने से क्यों रोका जाता है? लोकतंत्र में विपक्ष को पूरी तरह नजरअंदाज कर एकपक्षीय निर्णय लेने की प्रवृत्ति क्यों होनी चाहिए? केंद्र ने जिन 3 किसान कानूनों को बनाया, उन पर संसद में बहस नहीं कराई गई. इन कानूनों का मसौदा भी विचारार्थ चयन समिति के पास नहीं भेजा गया. सदन में मत विभाजन न कराते हुए आपाधापी में ध्वनिमत से यह बिल पास करा लिए गए थे. न विपक्ष को विश्वास में लिया गया, न किसान संगठनों की राय ली गई. इसके पहले भी सरकार ने नोटबंदी और जीएसटी लागू करने जैसे अहम फैसले एकांगी तौर पर किए. विपक्ष की उसे तनिक भी परवाह नहीं है. इतना होने पर भी वह विपक्ष पर तोहमत लगाती है कि संसद के इतिहास में कभी ऐसा नहीं हुआ. प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के समय से नए मंत्रियों का सदन में परिचय कराने की परंपरा चली आ रही है, लेकिन इस बार विपक्ष ने हंगामा करके ऐसा होने नहीं दिया.

    विपक्ष को अवसर देते थे नेहरू

    प्रधानमंत्री मोदी ने नेहरू के समय की दुहाई दी तो यह भी कहना होगा कि नेहरू ब्रिटिश पार्लियामेंट्री डेमोक्रेसी के अनुरूप ही लोकतांत्रिक प्रणाली अपनाते थे. वे अपनी और सरकार की आलोचना करने का विपक्ष को पूरा अवसर देते थे. कुछ मुद्दों पर काफी लंबी बहस चलती थी. डा. राममनोहर लोहिया, आचार्य एनजी रंगा, भूपेश गुप्त, मीनू मसानी, फिरोज गांधी जैसे विपक्षी सदस्य सरकार की नीतियों व कदमों की तीखी आलोचना करते थे जिसे नेहरू धैर्यपूर्वक सुनते थे और फिर उसका उत्तर भी देते थे. क्या वर्तमान सरकार में इतनी सहनशीलता और उदारता है? तब नेहरू और लोहिया के बीच एक बहस काफी चर्चित हुई थी.

    नेहरू का कहना था कि गरीब की आय 15 आना रोज है, जबकि लोहिया ने आंकड़ों से सिद्ध किया था कि गरीब 3 आना रोज में गुजर-बसर करने पर मजबूर है. फिरोज गांधी की तीखी बहस का नतीजा था कि टीटी कृष्णमाचारी को भ्रष्टाचार के आरोप में केंद्रीय मंत्री पद खोना पड़ा था. चीन के हमले के बाद नेहरू अपने प्रिय रक्षा मंत्री वीके कृष्ण मेनन को भी नहीं बचा पाए थे. जब 1957 के चुनाव में पहली बार निर्वाचित होकर अटलबिहारी वाजपेयी लोकसभा में पहुंचे थे तो उनके भाषण पर नेहरू ने बधाई देते हुए शुभकामना व्यक्त की थी और कहा था कि यह युवक आगे चलकर देश का प्रधानमंत्री बन सकता है. अब कहां रह गई ऐसी सहिष्णुता और उदारता? सरकार विपक्ष की अवहेलना करेगी तो वह भी मौका पाकर अपनी भड़ास निकालने में पीछे नहीं रहेगा.