खड़ी फसल पर ट्रैक्टर चलाना कितना सही? आखिर कब तक चलेगा किसान आंदोलन

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    केंद्र के कृषि कानूनों के (Agricultural Laws Bill) विरोध में 3 माह से चल रहा किसान आंदोलन (Indian Farmers Protest) आखिर और कितने दिनों तक चलेगा? आंदोलन को विपक्ष का सहयोग रहने से उसमें राजनीति आ गई है. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi)  बार-बार यही आरोप लगा रहे हैं कि मोदी सरकार ‘हम दो हमारे दो’ (Hum Do Hamare Do) की नीति पर चल रही है और बड़े उद्योगपति मित्रों को लाभ पहुंचाना चाहती है.

    दिल्ली के मुख्यमंत्री व आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने कृषि कानूनों को किसानों के लिए ‘डेथ वारंट’ होने का दावा किया है. उन्होंने स्वामीनाथन समिति की सिफारिशों के आधार पर 23 फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की घोषणा करने की केंद्र सरकार से मांग की है. कृषि कानूनों के किसान विरोधी होने का प्रचार इतना अधिक किया गया है कि केंद्रीय मंत्री भी किसानों की आशंकाएं दूर नहीं कर पाए. संदेह वहीं पैदा हो गया था जब सरकार ने संसद में चर्चा कराए बगैर इन कानूनों को आपाधापी से पारित करा लिया था और इतने महत्वपूर्ण विधेयकों को विचार के लिए चयन समिति के पास भेजना भी जरूरी नहीं समझा था.

    चर्चा के बिना समाधान कैसे

    कोई भी समस्या बगैर चर्चा के हल नहीं होती. संसद में पारित कानून पूरी तरह वापस लेने की किसान संगठनों की मांग घड़ी के कांटे उल्टे घुमाने के समान है. चर्चा में यह मुद्दा पेश किया जा सकता था कि कानूनों का कौन सा प्रावधान या धारा स्वीकार्य नहीं है और उससे कौन सा नुकसान हो सकता है? सरकार ने कृषि कानूनों का अमल डेढ़ वर्ष तक रोकने की तैयारी दर्शाई थी. इसे भी किसान नेता अपनी विजय मानकर आंदोलन स्थगित कर सकते थे. दिल्ली में कड़ाके की ठंड में खुले आसमान के नीचे महीनों धरना देना कितने ही किसानों के लिए जानलेवा साबित हुआ. सरकार ने कानून की एक-एक धारा (क्लाज) पर चर्चा की तैयारी दर्शाई थी लेकिन किसान नेता इसके लिए राजी नहीं हुए. सवाल यह भी उठता है कि क्या उन्होंने इन कानूनों को ध्यान से पूरी तरह पढ़ा है अथवा आंख मूंदकर विरोध करना तय किया है?

    अवधि भी तो तय हो

    किसान नेता राकेश टिकैत ने 2 अक्टूबर तक आंदोलन चलाने का संकेत दिया. क्या 7-8 महीने आंदोलन चलाना तर्कसंगत है? इससे स्वयं आंदोलनकारी किसानों को कितनी परेशानी उठानी पड़ेगी. इससे किसानों को फायदा होगा या दीर्घकालीन नुकसान? एक अन्य किसान नेता गुरनाम सिंह ने कहा कि 2 अक्टूबर तक आंदोलन चलाना राकेश टिकैत का व्यक्तिगत मत है. इस तरह संयुक्त किसान मोर्चा में भी इस मुद्दे को लेकर मतभेद बना हुआ है कि आंदोलन कब तक जारी रखा जाए. यह सवाल भी उठता है कि आंदोलन किसानों के हित के लिए है या मोदी सरकार को संकट में डालने के लिए?

    बढ़ती जा रही दिशाहीनता

    टिकैत के आवाहन पर पंजाब में एक किसान ने अपनी हरी-भरी खड़ी फसल पर ट्रैक्टर चलाकर उसे नष्ट कर दिया. जिस देश में कितने ही लोग अनाज को तरसते हैं, वहां फसल की बरबादी क्यों होनी चाहिए? बीज, खाद, सिंचाई और मेहनत से तैयार की गई फसल को मटियामेट कर देने में कौन सी बुद्धिमानी है? यह तो अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसी बात हो गई. ऐसा आत्मघाती कदम उठाने की सीख देने वाले को क्या नेता माना जाए? आंदोलन को समूचे भारत का बताया जा रहा है जबकि इसमें पंजाब, हरियाणा और कुछ यूपी के जाट बेल्ट के किसान ही हैं. कमान को वहीं तक तानना चाहिए कि वह टूटने न पाए. लंबा चलने वाला आंदोलन सभी के लिए नुकसानदेह होता है. किसानों को खेत-खलिहान में होना चाहिए, न कि कई महीनों तक धरनास्थलों में! महाराष्ट्र में कई दशक पहले दत्ता सामंत के नेतृत्व में मिल मजदूरों की हड़ताल कई महीनों तक चली थी. इससे मिलें बंद हो गईं और मजदूर बेरोजगार हो गए. उनके परिवारों का बुरा हाल हो गया. इसलिए किसी भी आंदोलन की एक मर्यादा रहनी चाहिए. हठवादिता से समाधान नहीं निकलता.