पहले टीके निर्यात कर छवि बनाने की कोशिश अब विदेश से मंगाने की जरूरत

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    सरकार की यह कैसी अदूरदर्शी नीति है कि 130 करोड़ देशवासियों की टीके की जरूरत पूरी करने की बजाय दरियादिली दिखाते हुए अन्य देशों को कोरोना वैक्सीन (Coronavirus Vaccine) का निर्यात किया और जब देश में टोटा पड़ गया तो विदेशों से वैक्सीन मंगाने की जरूरत पड़ गई. हमें स्वहित का और अपनी आवश्यकताओं का ध्यान रखने को प्राथमिकता देनी चाहिए थी लेकिन विश्व में भारत (India) का नाम हो और उसकी उदारता की गूंज हो, यह सोचकर दुनिया के विभिन्न देशों को धड़ल्ले से वैक्सीन भेजी गई. विश्व के अन्य किसी देश ने ऐसा नहीं किया किंतु हमने तो राजा बलि और दानवीर कर्ण की परंपरा निभाई. खुले हाथ से जिसने भी मांगा, उसे वैक्सीन भेजते चले गए. यह भी नहीं सोचा गया कि जब अपनी गरज पड़ेगी तो उस वक्त क्या करेंगे?

    वैक्सीन की कमी पड़ी

    कोरोना के तेजी से बढ़ते मामलों के बीच सरकार ने विदेश से वैक्सीन मंगाने का फैसला कर लिया. अब अमेरिका, (America) यूके, जापान तथा रूस में विकसित व निर्मित टीकों के भारत में उपयोग की इजाजत दी जाएगी. इसके लिए सरकार क्लीनिकल ट्रायल के नियम में रियायत देगी. इन देशों के अलावा विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से स्वीकृत कोरोना के अन्य टीकों को भी भारत में उपयोग की अनुमति दी जाएगी.

    विदेशी टीके कैसे सुरक्षित रह पाएंगे

    भारत के गर्म मौसम में माइनस 70 के तापमान में रखी जाने वाली यूरोप व अमेरिका की वैक्सीन का क्या हाल होगा? यहां इस वैक्सीन को कैसे विभिन्न स्थानों पर भेजा जा सकेगा? इसके लिए डीप फ्रीजर जरूरी होगा. सामान्य फ्रिज में यह सुरक्षित नहीं रह सकती. हमारे कितने टीका केंद्रों या परिवहन वाहनों में माइनस 70 वाले डीप फ्रीजर की सुविधा है?

    स्पूतनिक वैक्सीन को मंजूरी

    अब औषधि महानियंत्रक (ड्रग कंट्रोलर जनरल) ने रूस निर्मित स्पूतनिक वैक्सीन को आपातकालीन उपयोग के लिए मंजूरी दे दी है. इसे डा. रेड्डी लैब आयात करेगी. स्पूतनिक वैक्सीन, भारत की कोवैक्सीन के समान यहां के तापमान के अनुकूल है. उसे अमेरिका व यूके की वैक्सीन के समान माइनस 70 में रखना जरूरी नहीं है. विदेश से वैक्सीन मंगाना इसलिए भी जरूरी हो गया था क्योंकि कोविशील्ड (Covishield) व कोवैक्सीन की कमी हो चली थी. वैक्सीन का उत्पादन बढ़ाने के लिए सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के अदार पूनावाला ने 3000 करोड़ की मांग की थी. जो लोग वैक्सीन के लिए पैसा देने में समर्थ हैं, उनसे रकम लेकर और सरकार अपने खजाने से रकम देकर ऐसा कर सकती है. ऐसा करने के बजाय उसने विदेश से वैक्सीन आयात करना जरूरी समझा. इससे सीरम इंस्टीट्यू (Serum Institute of India) और भारत बायोटेक पर पड़ रहा टीका उत्पादन का दबाव कम होगा.

    अब तक 10 करोड़ लोगों को टीका

    अब तक देश के 10 करोड़ लोगों को टीका लगाया जा चुका है. यह एक बड़ी उपलब्धि है लेकिन सच तो यह है कि भारत की 8 प्रतिशत आबादी को अभी एक टीका लगा है. इसकी तुलना में अमेरिका व यूके में 50 प्रतिशत आबादी को वैक्सीन लग चुकी है. कोरोना के प्रसार को रोकने के लिए देश में तेजी से टीकाकरण करना होगा. गत सप्ताह सरकार ने घोषणा की कि वैक्सीनेशन सेंटर 24 घंटे खुले रहेंगे. किसी कार्यस्थल पर 100 कर्मचारी हों तो उनके टीकाकरण का इंतजाम किसी टीका केंद्र पर हो सकता है. ग्रुप में टीका लगाने से लोगों की हिचकिचाहट दूर होगी.

    सभी वैक्सीन का एक ही सिद्धांत

    सभी वैक्सीन एक सिद्धांत पर काम करती है. इंजेक्शन द्वारा हल्की खुराक के जरिए रोगाणु का आंशिक हिस्सा मनुष्य की प्रतिरोधी प्रणाली में प्रविष्ट कर दिया जाता है. इसके जवाब में प्रतिरोधी प्रणाली एंटीबाडीज उत्पन्न करती है. ये एंटीबाडीज रोगाणु से लड़ना सीख जाती हैं. उन्हें अपना दुश्मन याद रहता है. यदि दोबारा कभी वायरस अपने कुदरती रूप में हमला करता है तो एंटीबाडीज उसे तुरंत पहचान लेती हैं. चिंता इसलिए है कि कोरोना का स्ट्रेन बदलता रहा है और वह अधिक खतरनाक होकर लौटा है. वैक्सीन लगाने के बाद भी मास्क व सामाजिक दूरी जरूरी है.