एयर इंडिया जैसा हाल न हो बैंक निजीकरण की दिशा में बढ़ते कदम

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    सार्वजनिक क्षेत्र के 4 बैंकों का निजीकरण  (Banks Privatisation) प्रस्तावित है. निश्चित रूप से श्रमिक यूनियन इस कदम का विरोध करेंगे क्योंकि निजीकरण की प्रक्रिया में समूचे स्टाफ का समायोजन नहीं हो पाता और अनावश्यक कर्मचारियों की छंटनी कर दी जाती है. निजीकरण के बाद बैंक की कार्यशैली भी काफी हद तक परिवर्तित हो जाती है और कर्मियों से अधिक चुस्ती की अपेक्षा की जाती है. सरकारी बैंकों वाली सुविधाएं व निश्चिंतता निजी क्षेत्र नहीं दे सकता. राजनीतिक पार्टियां भी निजीकरण के पक्ष में नहीं दिखाई देतीं.

    मोदी सरकार (Modi Government) के बजट में निजीकरण का संदेश दिया गया लेकिन अब तक निजीकरण के जो भी प्रयास हुए हैं, उनमें विशेष सफलता नहीं मिल पाई. इसलिए सिर्फ इरादा कर लेना ही काफी नहीं होता. भारत के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में पिछले 3 वर्षों के दौरान सरकार ने विलय की दिशा में प्रयास किए. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का संगठनीकरण करने के 3 दौर के बाद कुछ नतीजा अवश्य हासिल हुआ. मार्च 2017 में जो 27 बैंक थे वे अप्रैल 2020 में घटकर 12 रह गए. अब 4 सरकारी बैंकों का निजीकरण करने की चुनौती है. सरकार वित्तीय क्षेत्र के व्यावसायिक कामकाज से अलग हटना चाहती है. यह ऐसा नीतिगत क्षेत्र है जहां सरकार अपनी न्यूनतम उपस्थिति चाहती है. सरकार यदि यह सोचती है कि मुनाफा कमाने वाले बैंकों को अपने पास रखकर वह सिर्फ कमजोर बैंकों को बेचेगी तो यह काम इतना आसान नहीं है.

    उदाहरण के तौर पर सरकार ने 3 वर्ष पहले भारी घाटे में चल रही सरकारी एयरलाइन एयर इंडिया (Airline Air India) बेचने का प्रयास किया परंतु एक भी बोली सामने नहीं आई. वजह यह थी कि सरकार ने बिक्री के लिए जो शर्तें रखी थीं, वे अनाकर्षक थीं. इसीलिए अब तक एयर इंडिया का विनिवेश नहीं हो पाया. बैंकों का भी यही हाल है. सरकारी बैंकों के कमजोर व अकुशल प्रबंधन ने उन्हें किसी भी खरीदार के लिए अनाकर्षक बना दिया है. यदि सरकार को निजीकरण की दिशा में आगे बढ़ना है तो मजबूत सरकारी बैंकों से इसकी शुरुआत करे. खरीदी बोली सिर्फ भारतीयों तक सीमित न रहे, ऐसे विदेशी बैंकों को भी मौका दिया जा सकता है जो लंबे समय से भारत में मौजूद हैं.