Madrasa will shut down in Uttar Pradesh
योगी आदित्यनाथ- मदरसे में बच्चे (डिजाइन फोटो)

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लखनऊ: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में मदरसों (Madrassas) पर चल रहे विवाद पर शुक्रवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) की लखनऊ (Lucknow) पीठ ने बड़ा फैसला सुनाया है। जहां यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004 (UP Board of Madrasa Education Act 2004) को असंवैधानिक (Unconstitutional) करार दिया गया है। पीठ ने कहा की ह एक्ट धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन करने वाला है।

पीठ ने यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004 को असांविधानिक करार देते हुआ राज्य सरकार से मदरसे में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को बुनियादी शिक्षा व्यवस्था में तत्काल समायोजित करने का निर्देश दिया है। साथ ही सरकार को यह भी सुनिश्चित करने का आदेश दिया कि छह से 14 साल तक के बच्चे मान्यता प्राप्त संस्थानों में दाखिले से न छूटें।

कोर्ट ने क्या कहा?
कोर्ट ने मदरसा छात्रों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए यूपी सरकार से उन्हें सरकारी स्कूलों में समायोजित कर शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ने का निर्देश दिया है। उप्र मदरसा बोर्ड कानून 2004 के अंतर्गत प्रदेश में अभी तक मदरसों का संचालन किया जा रहा है। हाईकोर्ट ने कानून को धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के खिलाफ बताते हुए आदेश दिया है कि सरकार मदरसे में पढ़ने वाले छात्रों को बुनियादी शिक्षा व्यवस्था में समायोजित करे।

हुई थी जांच
दरअसल, कोर्ट में मामले की गुहार लगाए जाने के बाद प्रदेश में मदरसों की जांच के लिए सरकार ने अक्तूबर 2023 में एसआईटी का गठन किया था। जांच में अवैध तरीके संचालित होते पाए गए हजारों मदरसे पाए गए थे। अब आदेश के बाद इन्हें बंद करने की तैयारी चल रही है।

याचिका में उठाए गए ये अहम सवाल
उप्र मदरसा बोर्ड कानून 2004 को कोर्ट में चुनौती देने वाली याचिका में कहा गया कि इस कानून को बेहद गलत तरीके से बनाया गया। इसमें धर्मनिरपेक्षता और शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन किया गया।

आगे कहा गया कि ‘इस देश में सभी बच्चों को बुनियादी शिक्षा देने का कानून है, जबकि मदरसों में इसे दीनी तालीम तक सीमित कर दिया गया है। सरकार अगर किसी शैक्षिक संस्था को अनुदान दे रही है तो उसे बच्चों से फीस नहीं लेनी चाहिए। लेकिन, मदरसों ने इसका भी उल्लंघन किया है।

अब सुप्रीम कोर्ट पहुंचेगा मामला
वहीं कोर्ट का फैसला आने के बाद ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (All India Muslim Personal Law Board) के सदस्य मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली (Maulana Khalid Rasheed Farangi Mahali) का कहना है की 20 साल के बाद इस कानून को असांविधानिक करार दिया गया है। जरूर कहीं कोई गड़बड़ी हुई है। हमारे वकील कोर्ट में पक्ष सही से नहीं रख सके। उन्होंने कहा कि हम इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे।