Maratha Reservation: Sub Committee decides to write a letter to Narendra Modi and President regarding Maratha Reservation

    Loading

    नयी दिल्ली.एक बड़ी खबर के अनुसार सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की  पांच न्यायाधीश की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया कि मराठा समुदाय को आरक्षण (Maratha Arakshan) देने वाला महाराष्ट्र का कानून 50% सीमा का उल्लंघन करता है। इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण पर फैसला देते हुए स्पष्ट कर दिया है कि आरक्षण के लिए 50% की तय सीमा का उल्लंघन नहीं किया जा सकता है।

    सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने यह भी कहा कि मामले में इंदिरा साहनी केस पर आया फैसला सही है, इसलिए उसपर पुनर्विचार करने की जरूरत नहीं है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ़ कर दिया कि मराठा समुदाय को शिक्षा और नौकरियों में 50% की सीमा पार करके आरक्षण नहीं दिया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी स्पष्ट किया है कि मराठा समुदाय के लोग शैक्षिक और सामाजिक तौर पर इतने पिछड़े नहीं हैं कि उन्हें भी आरक्षण के दायरे में लाया जाए।

    संविधान पीठ ने रखा 50% की सीमा बरकरार :

    दरअसल सुप्रीम कोर्ट में बंबई उच्च न्यायालय (Bombay High Court) के एक फैसले को चुनौती दी गई थी जिसमें महाराष्ट्र के शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में मराठाओं के लिए आरक्षण के फैसले को बरकरार रखा था। इस मामले पर न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि 50% आरक्षण की सीमा लांघी नहीं जा सकती है। हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने बीते 26 मार्च को याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

    इंदिरा साहनी फैसले पर पुनर्विचार की कतई जरूरत नहीं: SC

    वहीं अदालत ने इस मुद्दे पर लंबी सुनवाई में दायर उन हलफनामों पर भी गौर किया गया कि क्या 1992 के इंदिरा साहनी फैसले (इसे मंडल फैसला भी कहा जाता है) पर बड़ी पीठ द्वारा पुनर्विचार करने की जरूरत आ पड़ी है, जिसमें आरक्षण की सीमा 50% निर्धारित की गई थी। इसके बाद जस्टिस भूषण ने अपना फैसला पढ़ते हुए कहा कि इसकी अभी जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि जहां तक बात संविधान की धारा 342ए का सवाल है तो हमने संविधान संसोधन को फिलहाल बरकरार रखा है और यह किसी संवैधानिक प्रावधान का बिल्कुल भी उल्लंघन नहीं करता है।

    क्या कहता है है आर्टिकल 342ए :

    गौरतलब है कि देश की संसद ने संविधान संसोधन के जरिए आर्टिकल 342ए जोड़ा है। इसमें यह प्रावधान किया गया है कि, राष्ट्रपति किसी राज्य अथवा केंद्रशासित प्रदेश के किसी समुदाय को सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग की मान्यता अब दे सकते हैं। इसमें यह भी कहा गया है कि संसद भी कानून बनाकर किसी समुदाय को सामाजिक या शैक्षिक रूप से पिछड़े समुदायों की सूची में शामिल कर सकता है या निकाल सकता है।यह उस पर निर्भर करेगा।