नई दिल्ली. केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने बिहार के चर्चित मुजफ्फरपुर बालिका आश्रय गृह कांड में एक लड़की के लापता होने के मामले में नयी प्राथमिकी दर्ज की है, जिसे फर्जी दास्तेवेजों के आधार पर वर्ष 2015 में उसके माता-पिता के पास भेजने की जानकारी दी गई थी। मुजफ्फरपुर का बालिका आश्रय गृह 2018 में इसमें रहने वाली लड़कियों की कथित यौन उत्पीड़न का खुलासा होने के बाद चर्चा में आया था। सीबीआई की विशेष अदालत ने ब्रजेश ठाकुर को उम्रकैद की सजा सुनाई है। ठाकुर का गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) उक्त बालिका गृह चलाता था।
सीबीआई ने जांच के दौरान पाया कि शारीरिक और मानसिक रूप से दिव्यांग लड़की के 2015 में अपने माता-पिता से मिलने का जिक्र केवल कागजी है, लेकिन वह अब भी लापता है। प्राथमिकी में कहा गया, ‘‘मामले की जांच के दौरान खुलासा हुआ कि शारीरिक और मानसिक रूप से दिव्यांग एक नाबालिग लड़की को सीतामढ़ी की बाल कल्याण समिति के 10 नवंबर 2015 के आदेश का अनुपालन की पृष्ठभूमि में उसी दिन उसके पिता को सौंपने का जिक्र है।”
CBI registers a fresh FIR against unidentified officials of Balika Grih, a shelter home for girls in Muzaffarpur in Bihar. The case is related to a minor girl who claimed to be reunited with her parents in 2015 on the basis of forged documents: CBI pic.twitter.com/YsTX2erRZj
— ANI (@ANI) July 29, 2023
एजेंसी ने बताया कि जब उसने मामले की गहराई से जांच की तो पाया कि जिस व्यक्ति ने बालिका का पिता होने का दावा किया था उसका और उसकी पत्नी का मतदाता पहचान पत्र फर्जी है।
सीबीआई ने आरोप लगाया, “जांच से इस बात का भी खुलासा हुआ कि लड़की के कथित पिता एवं माता की पहचान करने वाला नथुनी मुखिया भी काल्पनिक व्यक्ति है और इस नाम का कोई व्यक्ति कथित गांव का मुखिया नहीं रहा है। इतना ही नहीं, यह 10 नवंबर 2015 के रिलीज ऑर्डर से भी स्पष्ट होता है कि इस आदेश पर सीतामढ़ी की बाल कल्याण समिति की तत्कालीन अध्यक्ष मानसी समादर और सदस्य रेणू कुमारी सिंह के हस्ताक्षर भी नहीं है। बच्ची को सौंपने का आदेश बाद में फर्जी पाया गया।”
इस रिपोर्ट के आधार पर बिहार सरकार ने इस साल मार्च में मामले की जांच सीबीआई को सौंपी जिसने अब प्राथमिकी दर्ज की है। बालिका आश्रय गृह मामले में दिल्ली की अदालत ने फरवरी 2020 को ठाकुर को ‘अंतिम सांस तक सश्रम कैद’ की सजा सुनाई और 32.20 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया। बालिका गृह में रहने वाली लड़कियों के यौन शोषण का खुलासा 26 मई 2018 को तब हुआ जब टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज ने अपनी रिपोर्ट बिहार सरकार को सौंपी। (एजेंसी)