‘चंद्रयान 3’ मिशन- ‘ऑटोमैटिक लैंडिंग सीक्वेंस’ के जरिए चंद्रयान-3 को दक्षिणी ध्रुव पर उतारकर रचा इतिहास

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मुंबई: आखिरकार वो लम्हा आ ही गया जिसके इंतजार में भारत ही नहीं पूरी दुनिया की सांसे थमी हुई थी। इसरो के चंद्रयान से चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर भेजे गए लैंडर ‘विक्रम’ ने जैसे ही चांद की सतह को छुआ भारत ने एक नया कीर्तिमान रच दिया। ‘चंद्रयान 3’ का लैंडर मॉड्यूल ने शाम 6 बजकर 4 मिनट पर चांद के साउथ पोल पर सॉफ्ट लैंडिंग की पूरा देश खुशी से झूम उठा।

कीर्तिमान रचने वाला दुनिया का पहला देश बना भारत

पूरी दुनिया की नजरें इस ऐतिहासिक मिशन पर टिकी हुई थी। यह एक ऐसी उपलब्धि है, जो अब तक किसी भी देश को हासिल नहीं हुई है। बता दें कि चांद की सतह पर चीन, अमेरिका और रूस सॉफ्ट लैंडिंग कर चुके हैं, लेकिन कोई भी साउथ पोल पर नहीं पहुंचा। भारत ये कीर्तिमान रचने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है। भारत इससे पहले भी ऐसी कोशिशें कर चुका है। साल 2019 में भारत का ‘चंद्रयान 2’ दक्षिणी ध्रुव पर लैंडिंग से कुछ दूरी पर ही क्रैश कर गया था। जिसके बाद मिशन ‘चंद्रयान 3’ की घोषणा की गई थी।

सॉफ्ट लैंडिंग के लिए रखा गया ‘पॉवर ब्रेकिंग फेज’

इसरो के अधिकारियों के मुताबिक, लैंडिंग के लिए लगभग 30 किलोमीटर की ऊंचाई पर लैंडर ‘पॉवर ब्रेकिंग फेज’ में रखा गया था और गति को धीरे-धीरे कम करके, चंद्रमा की सतह तक पहुंचने के लिए अपने चार थ्रस्टर इंजन की ‘रेट्रो फायरिंग’ करके उनका इस्तेमाल किया गया। ऐसा यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है कि चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव के कारण लैंडर ‘क्रैश’ न कर जाए। अधिकारियों के अनुसार, 6.8 किलोमीटर की ऊंचाई पर पहुंचने पर केवल दो इंजन का इस्तेमाल हुआ और बाकी दो इंजन बंद कर दिए गए। जिसका उद्देश्य सतह के और करीब आने के दौरान लैंडर को ‘रिवर्स थ्रस्ट’ देना था। अधिकारियों ने बताया कि लगभग 150 से 100 मीटर की ऊंचाई पर पहुंचने पर लैंडर अपने सेंसर और कैमरों का इस्तेमाल कर सतह की जांच की और फिर सॉफ्ट-लैंडिंग करने के लिए नीचे उतरना शुरू किया।

लैंडर के अंदर से चंद्रमा की सतह पर उतरा

इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने हाल में कहा था कि, ‘लैंडर की गति को 30 किलोमीटर की ऊंचाई से अंतिम लैंडिंग तक कम करने की प्रक्रिया और अंतरिक्ष यान को क्षैतिज से ऊर्ध्वाधर दिशा में पुन: निर्देशित करने की क्षमता लैंडिंग का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा थी। अधिकारियों के मुताबिक, सॉफ्ट-लैंडिंग के बाद रोवर अपने एक साइड पैनल का उपयोग करके लैंडर के अंदर से चंद्रमा की सतह पर उतरा। इसरो के अनुसार, चंद्रमा की सतह और आसपास के वातावरण का अध्ययन करने के लिए लैंडर और रोवर के पास एक चंद्र दिवस (पृथ्वी के लगभग 14 दिन के बराबर) का समय था। हालांकि, वैज्ञानिकों ने दोनों के एक और चंद्र दिवस तक सक्रिय रहने की संभावनाओं से इनकार नहीं किया है।

इस तरह पूरी हुई प्रवेश की प्रक्रिया

इस तरह पूरी हुई प्रवेश की प्रक्रिया भारत ने 14 जुलाई को ‘चंद्रयान 3’ मिशन लॉन्च किया था। 15 जुलाई को आईएसटीआरएसी/इसरो, बेंगलुरु से कक्षा बढ़ाने की पहली प्रक्रिया सफलतापूर्वक पूरी की गई। 17 जुलाई को दूसरी कक्षा में प्रवेश की प्रक्रिया को अंजाम दिया गया। ‘चंद्रयान 3′ ने 41603 किलोमीटर x 226 किलोमीटर कक्षा में प्रवेश किया। 22 जुलाई को  अन्य कक्षा में प्रवेश की प्रक्रिया पूरी हुई। 25 जुलाई को  इसरो ने एक बार फिर एक कक्षा से अन्य कक्षा में जाने की प्रक्रिया पूरी की। 1 अगस्त को इसरो ने ‘ट्रांसलूनर इंजेक्शन’ को सफलतापूर्वक पूरा किया और अंतरिक्ष यान को ट्रांसलूनर कक्षा में स्थापित किया। इसके साथ यान 288 किलोमीटर x 369328 किलोमीटर की कक्षा में पहुंच गया। 14 अगस्त को  चंद्रमा के निकट पहुंचने की एक और प्रक्रिया के पूरा होने के बाद ‘चंद्रयान 3′ कक्षा का चक्कर लगाने के चरण में पहुंचा। 16 अगस्त को ‘फायरिंग’ की एक और प्रक्रिया पूरी होने के बाद यान को 153 किलोमीटर x 163 किलोमीटर की कक्षा में पहुंचाया गया। यान में एक रॉकेट होता है, जिससे उपयुक्त समय आने पर यान को चंद्रमा के और करीब पहुंचाने के लिए विशेष ‘फायरिंग’ की जाती है। 17 अगस्त को  लैंडर मॉड्यूल को प्रणोदन मॉड्यूल से सफलतापूर्वक अलग किया गया। 19 अगस्त को  इसरो ने अपनी कक्षा को घटाने के लिए लैंडर मॉड्यूल की डी-बूस्टिंग की प्रक्रिया की। लैंडर मॉड्यूल अब चंद्रमा के निकट 113 किलोमीटर x 157 किलोमीटर की कक्षा में पहुंचा। 20 अगस्त को  लैंडर मॉड्यूल पर एक और डी-बूस्टिंग यानी कक्षा घटाने की प्रक्रिया पूरी की गई। लैंडर मॉड्यूल 25 किलोमीटर x 134 किलोमीटर की कक्षा में पहुंचा। 21 अगस्त  को ‘चंद्रयान 2’ ऑर्बिटर ने औपचारिक रूप से ‘चंद्रयान 3′ लैंडर मॉड्यूल का ‘वेलकम बडी’ कहकर स्वागत किया। दोनों के बीच दो तरफा संचार कायम हुआ। ‘इसरो टेलीमेट्री, ट्रैकिंग और कमांड नेटवर्क’ में स्थित मिशन ऑपरेशंस कॉम्प्लेक्स को अब लैंडर मॉड्यूल से संपर्क के और तरीके मिले। 22 अगस्त को  इसरो ने चंद्रयान-3 के लैंडर पोजिशन डिटेक्शन कैमरा से करीब 70 किलोमीटर की ऊंचाई से ली गई चंद्रमा की तस्वीरें जारी कीं।

चंद्रयान 3 के लैंडर की सुरक्षित एवं सॉफ्ट लैंडिंग 

23 अगस्त को शाम छह बजकर चार मिनट पर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर ‘चंद्रयान 3’ के लैंडर मॉड्यूल के सुरक्षित एवं सॉफ्ट लैंडिंग हुई। ‘चंद्रयान 3’ चांद के साउथ पोल पर उतरा। ये चांद का वो हिस्सा है जहां अभी तक कोई नहीं पहुंच पाया। इससे पहले भी भारत के साथ-साथ कई देश इस हिस्से पर पहुंचने की कोशिश कर चुके हैं, लेकिन किसी को कामयाबी नहीं मिल सकी। साल 2019 में भारत का ‘चंद्रयान 2’ दक्षिणी ध्रुव पर लैंडिंग से कुछ दूरी पर ही क्रैश कर गया था। जिसके बाद मिशन चंद्रयान-3 की घोषणा की गई थी।