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नई दिल्ली: आज यानी 14 मार्च को ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ (One Nation-One Election) यानी ‘एक देश-एक चुनाव’ पर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (Ramnath Kovind) की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (President Draupadi Murmu) को अपनी अतिमहत्वपूर्ण रिपोर्ट सौंप दी है। इस 18,626 पन्नों की ख़ास रिपोर्ट में समिति ने देश में एकसाथ लोकसभा, विधानसभा चुनावों के लिए संविधान में संशोधन की सिफारिश कर दी है। 

क्या हो सकते हैं एक साथ चुनाव

जी हाँ, पूर्व राष्ट्रपति कोविंद की अध्यक्षता वाली इस समिति ने देश में एक साथ चुनाव कराने के लिए राष्ट्रपति से संविधान के अंतिम 5 अनुच्छेदों में संशोधन की सिफारिश की है। बता दें कि, 5 अनुच्छेदों में- संसद के सदनों की अवधि से संबंधित अनुच्छेद 83, लोक सभा के विघटन से संबंधित अनुच्छेद 85, राज्य विधानमंडलों की अवधि से संबंधित अनुच्छेद 172, राज्य विधानमंडलों के विघटन से संबंधित अनुच्छेद 174, और राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाने अनुच्छेद 356 है। 

‘एकसाथ चुनाव’ पर ज्यादातर दल सहमत

कोविंद की अध्यक्षता वाली इस समिति की यह रिपोर्ट 191 दिनों के शोध कार्य का परिणाम है। इसमें कहा गया है कि पहले चरण में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं, इसके बाद 100 दिन के अंदर दूसरे चरण में स्थानीय निकायों के चुनाव कराए जा सकते हैं। समिति की रिपोर्ट के मुताबिक, लोकसभा, ​विधानसभा और पंचायत चुनाव को एक साथ कराने को लेकर ज्यादातर राजनीतिक दल सहमत हैं।

बीते साल 2 सितंबर को हुआ था गठन 

जानकारी दें कि इस समिति का गठन बीते साल 2 सितंबर को किया गया था और इसके अध्यक्ष पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद हैं। वहीं राज्यसभा में विपक्ष के पूर्व नेता गुलाम नबी आजाद, वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एन.के.सिंह, पूर्व लोकसभा महासचिव सुभाष कश्यप और वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे भी इसमें शामिल हैं। इसके साथ ही विधि मंत्री अर्जुन राम मेघवाल समिति के विशेष आमंत्रित सदस्य हैं। 

कौन-कौन है समिति में 

गौरतलब है कि, लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी को भी समिति का सदस्य बनाया गया था लेकिन उन्होंने समिति को पूरी तरह से छलावा करार देते हुए इससे मना कर दिया था। वहीँ विधि मंत्री अर्जुन राम मेघवाल समिति के विशेष आमंत्रित सदस्य हैं। याद हो कि, BJP के 2014 और 2019 के घोषणापत्र में पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने की वकालत की गई थी, लेकिन इसे लागू करने के लिए संविधान में कम से कम पांच अनुच्छेद और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम में बदलाव करना होगा। फिलहाल इस पर भी निर्णय होना है।