नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बिहार सरकार (Bihar Government) को जातिगत गणना (Caste Census) को सार्वजनिक करने का आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने जातिगत गणना पर सुनवाई के बाद मंगलवार को बिहार सरकार से जाति सर्वेक्षण डेटा ब्रेकअप को सार्वजनिक डोमेन में रखने को कहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद अपना फैसला सुनाते हुए कहा, “वह बिहार जाति सर्वेक्षण में डेटा के टूटने को जनता के लिए उपलब्ध नहीं कराए जाने को लेकर चिंतित है, क्योंकि अगर कोई निकाले गए किसी विशेष निष्कर्ष को चुनौती देने को तैयार है तो उसे वह डेटा प्राप्त करने में सक्षम होना चाहिए।” उल्लेखनीय है कि शीर्ष अदालत ने 2 अगस्त, 2023 के पटना उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 29 जनवरी को सुनवाई तय की है। जिसमें जाति-आधारित सर्वेक्षण करने के बिहार सरकार के फैसले को बरकरार रखा गया था।
Supreme Court tells Bihar government that caste survey data breakup be put in the public domain. Supreme Court says it is concerned about the breakdown of data in the Bihar caste survey not being made available to the public, because if somebody is willing to challenge a… pic.twitter.com/UaNVARg1Q6
— ANI (@ANI) January 2, 2024
पीठ ने कहा, “अंतरिम राहत का कोई सवाल ही नहीं है, क्योंकि उनके (सरकार के) पक्ष में उच्च न्यायालय का आदेश है। अब, जब विवरण सार्वजनिक मंच पर डाल दिया गया है, तो दो-तीन पहलू बचे हैं। पहला कानूनी मुद्दा है-उच्च न्यायालय के फैसले का औचित्य और इस तरह की कवायद की वैधता के बारे में।”
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन ने कहा कि चूंकि सर्वेक्षण का डाटा सामने आ गया है, अधिकारियों ने इसे अंतरिम रूप से लागू करना शुरू कर दिया है और एससी, एसटी, अन्य पिछड़ा वर्ग, अत्यंत पिछड़ा वर्ग और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए आरक्षण को मौजूदा 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 75 प्रतिशत कर दिया है। पीठ ने कहा कि इस मुद्दे पर विस्तार से सुनवाई की जरूरत है। पीठ ने रामचंद्रन से कहा, ‘‘जहां तक आरक्षण बढ़ाने की बात है, तो आपको इसे उच्च न्यायालय में चुनौती देनी होगी।”
रामचंद्रन ने अदालत से कहा कि इसे पहले ही उच्च न्यायालय में चुनौती दी जा चुकी है।उन्होंने कहा कि मुद्दा महत्वपूर्ण है, और चूंकि राज्य सरकार डेटा पर काम कर रही है, इसलिए मामले को अगले सप्ताह सूचीबद्ध किया जाना चाहिए, ताकि याचिकाकर्ता अंतरिम राहत के लिए दलील दे सकें। पीठ ने कहा, ‘‘कैसी अंतरिम राहत? उनके (बिहार सरकार के) पक्ष में उच्च न्यायालय का फैसला है।” बिहार सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने कहा कि अलग-अलग विवरण सहित डेटा को सार्वजनिक कर दिया गया है और कोई भी इसे निर्दिष्ट वेबसाइट पर देख सकता है।
न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा, “मैं जिस चीज को लेकर अधिक चिंतित हूं, वह डेटा के अलग-अलग विवरण की उपलब्धता है। सरकार किस हद तक डेटा को रोक सकती है। आप देखिए, डेटा का पूरा विवरण सार्वजनिक होना चाहिए, ताकि कोई भी इससे निकले निष्कर्ष को चुनौती दे सके। जब तक यह सार्वजनिक नहीं होगा, वे इसे चुनौती नहीं दे सकते।” बिहार में मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने नीतीश कुमार सरकार पर जाति सर्वेक्षण कराने में अनियमितताओं का आरोप लगाया है और एकत्र किए गए आंकड़ों को “फर्जी” बताया है। इसके बाद, पीठ ने दीवान से जाति सर्वेक्षण पर एक रिपोर्ट दाखिल करने को कहा और मामले की अगली सुनवाई के लिए पांच फरवरी की तारीख निर्धारित कर दी।