(Image-Twitter)
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    सीमा कुमारी

    नई दिल्ली: खुशियों का त्यौहार ‘ईद उल फितर’ (Eid ul Fitar) इस साल 3 मई यानी आज पूरे देश में धूमधाम से मनाई जाएगी। अगर 2 मई को चांद दिखाई दिया तो ईद आज 3 मई को मनाई जा रही है। ‘ईद उल फितर’ यानी ‘ईद’ के त्योहार को इस्लाम धर्म के लोग पूरे जोश और उत्साह के साथ मनाते हैं। एक माह तक अल्लाह की इबादत वाले माह रमजान के बाद आने वाली ईद हर किसी को खुशी के अलग एहसास से भर देती है। चाहे गरीब हो या अमीर यह त्यौहार हर किसी को अलग खुशी देता है।

    खास बात ये है कि ईद में मुस्लिमों के अलावा काफी संख्या में दूसरे धर्मों के लोग भी शिरकत करते हैं और मुस्लिमों को बधाई देते हैं। लेकिन इनमें से कम लोग ही जानते होंगे की ईद क्यों मनाई जाती है, रमजान के महीने में रोजे क्यों रखे जाते हैं, क्यों लोग चांद देखकर ही ईद की घोषणा करते हैं? आइए हम आपको कुछ ऐसे ही सवालों के जवाबों से रूबरू कराते हैं।

    आखिर क्यों मनाई जाती है ‘ईद’

    मुस्लिमों के लिए दो ही दिन विशेष खुशी वाले होते हैं ईद उल फितर और ईद उल जुहा (अजहा)। रमजान में पूरे महीने रोजे रखने के बाद इसकी समाप्ति के रूप में ईद मनाई जाती है। ईद अल्लाह से इनाम लेने का दिन है। ईद मनाने से पहले एक परंपरा निभाई जाती है जिसे फितरा कहा जाता है, इसके तहत ईद मनाने वाले हर मुस्लिम को अपने पास से गरीबों को कुछ अनाज देना जरूरी होता है जिससे वह भी खुशी से ईद मना सके।

    इस्लामिक धर्मगुरु के अनुसार, रमजान के महीने के बाद चांद देखकर ही ईद की शुरुआत होती है। असल में त्योहारों में चांद का बड़ा महत्व है, हिंदुओं में भी कई त्यौहार चांद देखकर ही मनाए जाते हैं। ईद का चांद से बड़ा गहरा संबंध है। ईद उल फितर हिजरी कैलेंडर के दसवें महीने के पहले दिन मनाई जाती है और इस कैलेंडर में नया महीना चांद देखकर ही शुरू होता है। ईद भी रमजान के बाद नए महीने की शुरुआत के रूप में मनाई जाती है जिसे ‘शव्वाल’ कहा जाता है। जब तक चांद न दिखे रमजान खत्म नहीं होता और शव्वाल शुरू नहीं हो सकता। वैसे इसका संबंध एक ऐतिहासिक घटना से भी है। कहा जाता है कि इसी दिन हजरत मुहम्मद ने मक्का शहर से मदीना के लिए कूच किया था।

    ईद को लेकर एक बात ये भी कही जाती है कि इस दिन नए कपड़े पहनने की विशेष परंपरा भी है। हालांकि यह कथन सत्य नहीं है, ईद पर साफ कपड़े जरूरी होते हैं नए नहीं। साफ भी वो जो सबसे साफ हों, इसलिए नए कपड़े पहनने की कोई बाध्यता नहीं है। कपड़ों पर इत्र लगाने की भी परंपरा है, लेकिन यह भी जरूरी नहीं है।

    यूं तो ईद खुशियां मनाने का त्यौहार है, लेकिन कुछ नियम भी हैं जिनका पालन इस दिन करना जरूरी होता है। मसलन ईद वाले दिन की शुरुआत सुबह जल्दी उठकर फजर की नमाज अदा करने से होती है। उसके बाद खुद की सफाई जैसे, गुस्ल और मिस्वाक करना। इसके बाद साफ कपड़े पहनना सबसे साफ फिर उन पर इत्र लगाना और कुछ खाकर ईदगाह जाना। नमाज से पहले फिकरा करना भी जरूरी होता है। ईद की नमाज खुले में ही अदा की जाती है। सबसे खास बात ये है कि ईदगाह आने और जाने के लिए अलग अलग रास्तों का इस्तेमाल किया जाता है।