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    सीमा कुमारी

    महाराष्ट्र का महापर्व ‘गुड़ी पड़वा, इस साल 02 अप्रैल, शनिवार को है। यह पर्व हर साल चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि ‘गुड़ी पड़वा’ (Gudi Padwa) यानि, वर्ष प्रतिपदा के दिन ही ब्रम्हा जी ने संसार का निर्माण किया था। इसलिए इस दिन को ‘नव संवत्सर’ यानि, नए साल के रूप में भी मनाया जाता है।

    मराठियों के सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार में से एक ‘गुड़ी पड़वा’ का महापर्व होता है, जो हिंदू पंचांग के अनुसार, वर्ष के पहले महीने के पहले दिन मनाया जाता है।

    पंचांग के अनुसार, चैत्र मास वर्ष का पहला महीना होता है। इस वर्ष 02 अप्रैल, को प्रतिपदा है, जिस दिन से चैत्र मास की नवरात्रि प्रारंभ हो रही है।

    इसी के साथ 02 अप्रैल को ‘गुड़ी पड़वा’ का पर्व महाराष्ट्र सहित अन्य राज्‍यों में बहुत ही धूमधाम एवं श्रद्धाभाव के साथ मनाया जाएगा, जिसे भारत के दक्षिणी प्रांतों में ‘उगादी’ कहा जाता है। सनातन धर्म में आस्था रखने वाले श्रद्धालुओं के लिए ‘गुड़ी पड़वा’का पर्व बहुत ही शुभ और मंगलकारी माना जाता है। जानकारों के अनुसार, बहुत समय पहले इसी दिन भगवान ब्रह्मा ने इस सृष्टि का निर्माण किया था। कहा जाता है कि, इसी दिन से सबसे पहला युग यानी सतयुग प्रारंभ हुआ था। आइए जानें ‘गुड़ी पड़वा’से जुडी रोचक तथ्य के बारे में –

    इस विशेष महापर्व पर घर की महिलाएं नए साल की तरह अपने घरों में साफ-सफाई करती हैं तथा सुंदर रंगोली भी बनाती हैं। पूजा में उपयोग किए जाने वाले आम के पत्तों से बंदनवार बनाकर लोग अपने घरों के आगे इन्हें सजाते हैं। परंपराओं के अनुसार, गुड़ी पड़वा पर महिलाएं अपने घर के बाहर गुड़ी लगाती हैं।

    जानकारों के अनुसार, ‘गुड़ी पड़वा’पर लोग सबसे पहले नीम की पत्तियों को खाते हैं। कहते हैं कि, नीम की पत्तियों का सेवन करने से खून साफ होता है तथा इंसान रोग मुक्त रहता है। ऐसे में नीम की पत्तियों का सेवन करना सेहत के लिए बेहद फायदेमंद हो सकता है।

    परंपराओं के मुताबिक, इस दिन घर में गुड़ी लाया जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि यह घर की सुख-समृद्धि को बढ़ाता है तथा बुरी आत्मा समेत बुरी शक्तियों को दूर रखता है।

    ऐसा माना जाता है कि,’गुड़ी पड़वा’ के दिन रावण का वध करने के बाद राम माता सीता को लेकर अपनी नगरी यानी राम नगरी अयोध्या लौटे थे।

    जानकारों के मुताबिक, युद्ध जीतने के बाद मराठों के प्रख्यात ‘राजा छत्रपति शिवाजी’ ने पहली बार ‘गुड़ी पड़वा’ का पर्व मनाया था। कहा जाता है कि, छत्रपति शिवाजी के ‘गुड़ी पड़वा’ पर्व मनाने के बाद हर एक मराठा इस पर्व को हर साल मनाता है।