जानें क्या है चंद्र ग्रहण की पौराणिक और वैज्ञानिक मान्यता, पढ़े रोचक जानकारी

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नवभारत डिजिटल टीम: आज यानी 28 अक्टूबर 2023, शनिवार को इस साल का आखिरी आंशिक चंद्रग्रहण (The last Chandra Grahan ) है। ये चंद्र ग्रहण भारत में भी दिखाई देगा। जी हां भारत के कई हिस्सों में साल का आखिरी चंद्र ग्रहण देखा जा सकेगा। भारत में यह ग्रहण 28 अक्टूबर की देर रात 01 बजकर 06 मिनट पर दिखना शुरू होगा और 02 बजकर 22 मिनट पर समाप्त होगा। इस मौके पर आइए जानते है चंद्रग्रहण की पौराणिक एवं वैज्ञानिक मान्यता क्या है। 

चंद्र ग्रहण की पौराणिक कथा

एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार समुद्र मंथन के दौरान असुरों और दानवों के बीच अमृत के लिए घमासान चल रहा था इस मंथन में अमृत देवताओं को मिला लेकिन असुरों ने उसे छीन लिया अमृत को वापस लाने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी नाम की सुंदर कन्या का रूप धारण किया और असुरों से अमृत ले लिया जब वह उस अमृत को लेकर देवताओं के पास पहुंचे और उन्हें पिलाने लगे तो राहु नामक असुर भी देवताओं के बीच जाकर अमृत पीने के लिए बैठ गया जैसे ही वो अमृत पीकर हटा, भगवान सूर्य और चंद्रमा को भनक हो गई कि वह असुर है तुरंत उससे अमृत छिना गया और विष्णु जी ने अपने सुदर्शन चक्र से उसकी गर्दन धड़ से अलग कर दी। 

क्योंकि वो अमृत पी चुका था इसीलिए वह मरा नहीं उसका सिर और धड़ राहु और केतु नाम के ग्रह पर गिरकर स्थापित हो गए। ऐसी मान्यता है कि इसी घटना के कारण सूर्य और चंद्रमा को ग्रहण लगता है, इसी वजह से उनकी चमक कुछ देर के लिए चली जाती है। इसके साथ यह भी माना जाता है कि जिन लोगों की राशि में सूर्य और चंद्रमा मौजूद होते हैं उनके लिए यह ग्रहण बुरा प्रभाव डालता है।  

चंद्र ग्रहण को लेकर विज्ञान

 वहीं, विज्ञान के अनुसार यह एक प्रकार की खगोलीय स्थिति है. जिनमें चंद्रमा, पृथ्वी और पृथ्वी तीनों एक ही सीधी रेखा में आ जाते हैं। इससे चंद्रमा पृथ्वी की उपछाया से होकर गुजरता है, जिस वजह से उसकी रोशनी फीकी पड़ जाती है।