बैतूल : हमारा देश अजीबोगरीब परंपराओं और मान्यताओं से भरा हुआ है। यहां आज के विज्ञान के दौर में भी कुछ लोग ऐसी चीज किया करते हैं, जिनको देखकर आपको आश्चर्य होता होगा। लेकिन लोग अपने धार्मिक और आध्यात्मिक मान्यताओं की वजह से ऐसा करने पर मजबूर हैं।
मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के पूर्णामाई मंदिर में हर साल एक ऐसी परंपरा निभाई जाती है, जिसको देखकर आप दातों तले उंगली दबा लेंगे। यहां के ग्रामीण अपनी अंगूठी परंपरा को निभाने के लिए अपने कलेजे के टुकड़े को पालने में डालकर नदी में बहते हुए पानी में छोड़ देते हैं। ऐसी प्रक्रिया हर साल लगभग 1000 बच्चों के साथ की जाती है।
आपको बता दें कि भैंसदेही की पूर्णा नदी पर कार्तिक पूर्णिमा से 15 दिनों का एक मेला लगता है। इसके बारे में मान्यता है कि जिन दंपतियों के संतान नहीं होते हैं, वे यहां आकर अपनी मन्नतें मांगते हुए अर्जी लगाते हैं। इसके बाद संतान होने के बाद में बच्चों को बहती नदी की धारा में बहाने की अनूठी परंपरा को निभाते हैं।
लगता है 15 दिनों का मेला
स्थानीय लोगों का कहना है कि पूर्णा नदी के किनारे 15 दिन तक लगने वाले इस मेले में केवल मध्य प्रदेश ही नहीं बल्कि आसपास के कई राज्यों के लोग यहां आते हैं और अपने संतान की मनोकामना के लिए स्थानीय भगत और भुमका (पुजारी) के साथ अपनी अर्जी लगाकर चले जाते हैं। जब उनको संतान होती है तो वापस लौटकर यहां पूजा अर्चना करते हैं। इसके बाद भगत इन बच्चों को मां पूर्णा के आंचल में डालने के लिए लकड़ी के पालने में डालकर बहते पानी में छोड़ देते हैं। कुछ देर के लिए ये बच्चे लकड़ी के पालने में डालकर पानी की बहती नदी में बहाए जाते हैं।
बहुत पुरानी है परंपरा
गांव के पंडित हरिराम दडोरे का कहना है कि यह परंपरा कई सौ साल पुरानी है। कार्तिक पूर्णिमा और उसके बाद के दो दिनों में 500 से अधिक बच्चों को हर साल पूर्णा नदी में बहते हुए देखा जा सकता है। यहां पर आज तक कोई दुर्घटना नहीं हुई है, जिसकी वजह से यहां की मान्यता में दिन पर दिन बढ़ोतरी हो रही है। यहां पर मध्य प्रदेश के अलावा छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और बंगाल के भी श्रद्धालु आते हैं और पूर्णा माई उनकी मनोकामना पूर्ण करती हैं, जिससे ऐसी मान्यता पर लोगों का विश्वास दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।